HomeCITYराजकीय आयुर्वेदिक महाविधालय एवं चिकित्सालय के प्रधानाचार्य का तुगलकी फरमान बरक़रार

राजकीय आयुर्वेदिक महाविधालय एवं चिकित्सालय के प्रधानाचार्य का तुगलकी फरमान बरक़रार

पदों के परिवर्तन में शासनादेश के साथ हो रहा हैं खिलवाड़,हिटलर की तरह करते हैं कार्य

लखनऊ (ज़की भारतीय) लखनऊ के राजकीय आयुर्वेदिक महाविद्यालय एवं चिकित्सालय में नए प्राचार्य के आने के बाद से अस्पताल के मरीज़ों और कर्मचारियों के उत्पीड़न का दौर जारी हैं | मरीज़ों को जहां सरकार की तरफ से मिलने वाले भोजन के लिए लाले लग जाते हैं , तो वहीँ प्रधानचार्य की हिटलर शाही मानसिकता के चलते कर्मचारियों से वो काम लिए जा रहे हैं, जिसके वो लायक नहीं हैं | हालाँकि कर्मचारी भी ये बात खुद स्वीकार रहे हैं कि उनका जो काम है वो उनसे न लेकर दूसरा काम लिया जा रहा है | जैसे कि खाना बनाने वाले (रसोइया) से वार्डबॉय का काम लिया जा रहा है , ड्राइवर से प्रधानाचार्य अपने कार्यलय के बाहर सुरक्षा का कार्य करा रहे है ; यही नहीं, अपने कार्यालय के बाहर 6-7 कर्मचारियों का जमावड़ा रखकर जहां कामों को प्रभावित कर रहे है, वही खुद का फ़र्ज़ी भौकाल बनाने में भी कामयाब हो रहे हैं | दरअस्ल प्रधानचार्य को कर्मचारियों के बीच चलना, उठना और बैठना बेहद पसंद है | ये चाहते है कि राजा न होते हुए भी वो सरकारी कर्मचारियों के माध्यम से लोगों को राजा दिखाई दें | संस्था में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों जो कि मूलपद स्वच्छक था उन कर्मचारियों का पद परिवर्तन करते हुए परिवर्तित पद से कार्य लिया जा रहा है | हालाँकि प्रधानाचार्य ने ये पद परिवर्तन किन नियमों व शासनादेश के अंतर्गत किया है इसका जवाब खुद प्रधानचार्य डॉ. बेदार सहाय के पास भी नहीं है | उनकी तानाशाही और उनके तुगलकी फरमान के विरुद्ध कर्मचारियों ने विरोध प्रदर्शन भी किया और अपने उच्चाधिकारियों को भी इस मामले में अवगत कराया लेकिन अभी तक किसी भी अधिकारी ने कोई संज्ञान नहीं लिया है | बताते चलें कि सूरज यादव, राज कुमार, रामू , राममूरत वर्मा, मुनिराम गुप्ता, इम्तियाज़ , सुभाष वर्मा, फूलचंद्र प्रजापति और गोकरन नाथ वर्मा ने जनसूचना अधिकारी से इन्ही प्रश्नों के उत्तर भी मांगे थे, लेकिन उनको अभी तक कोई जवाब नहीं दिया गया | कर्मचारियों का आरोप है कि प्रधानचार्य संस्था में सफाई कराने के लिए आदेश तो देते है लेकिन सिर्फ व्हाट्सअप के माध्यम से | जबकी सफाई के लिए प्रयुक्त सामग्री नहीं दी जाती है | गौरतलब है कि ये सामग्री जब दी नहीं जाती है तो आख़िर ये सामग्री कहाँ चली जाती है ? साफ-सफाई न होने के कारण संस्था में मच्छरों का भयंकर प्रकोप है, जिससे दूसरे मर्ज़ में भर्ती मरीज़ों को मलेरिया जैसे बुखार अपना शिकार बना लेते हैं | इन्तिहा ये है कि इमरजेंसी ईश्वर के भरोसे है, क्योकि इमरजेंसी में कोई भी डॉक्टर नज़र नहीं आता है | कभी-कभी यदि बहुत ज़रूरत पड़ती है तो रसोइया या ड्राइवर को इमरजेंसी जैसे विभाग में भेज दिया जाता है जो सिर्फ मलहम पट्टी करने के अलावा और कुछ नहीं जनता है, यही नहीं ऐसे ही लोग मरीज़ों के इंजेक्शन भी लगा देते है, जिन्हे ये भी नहीं मालूम कि इंटरमस्कुलर कौन सा इंजेक्शन लगाया जाता है और कौन सा इंटरवेनस ? बहरहाल प्रधानचार्य उन उपकरणों को मगवाने में बेहद रूचि रखते है जिनमे उन्हें मोटी रिश्वत मिलती है | अब वो चाहे रिवाल्विंग चेयर हो, कम्प्यूटर या फिर इसी तरह का कोई और सामान ही क्यों न हो | खास बात ये है कि अगर कोई कर्मचारी अपनी आवाज़ उठाना चाहता भी है तो उसे बरख्वास्त कर देने की धमकी दे दी जाती है |
सबसे अधिक कमाई जड़ी-बूटी से बनने वाली दवाइयों से की जाती है | जिसमे बेश क़ीमती जड़ी बूटियां मरीज़ों के इलाज के लिए सरकार देती है | होता ये है कि अधिकतर मरीज़ों को महंगी दवाइयां बाहर से लिख दी जाती हैं और सस्ती दवाइयां अस्पताल से देकर टरका दिया जाता है | मरीज़ों के नाम पर जो लेखा-जोखा सरकार को प्रस्तुत किया जाता है उसमे उन मरीज़ों को भी शामिल किया जाता है जिनको वो महँगी दवाइया दी ही नहीं जाती हैं | इसके अलावा भी बहुत सी जड़ी- बूटियों को ख़राब दिखाकर वो जड़ी बूटियां भी खरीदारों की नज़्र कर दी जाती है और उनसे मोटी रकम कमाकर ख़राब जड़ी-बूटियां ले ली जाती है, जो इंस्पेक्शन के दौरान दिखा दी जाती हैं | बताते चलें कि अगर आप जनसूचना अधिकार अधिनियम 2005 के अंतर्गत जड़ी बूटी के बारे में जानने के लिए यदि मांग भी करेंगे तो आप को सूचना उपलब्ध नहीं कराई जाएगी, बल्कि एक ही जवाब आएगा कि जनसूचना अधिनियम 2005 के अंतर्गत आपके द्वारा मांगी गई सूचना नहीं दी जा सकती हैं | हालाँकि जनसूचना अधिकारी को ये भी बता देना चाहिए कि कौन-कौन सी सूचना देने योग्य हैं और कौन सी नहीं ! अगर दवाइयों में घोटाला नहीं होता तो 28 सितम्बर 2018 पत्रांक संख्यां जू० सू० /44/ 2018 द्वारा जनसूचना अधिकारी ने जो उत्तर एन.एस लाइव न्यूज़ को दिया वो हैरतअंगेज़ था | क्योकि एन.एस लाइव न्यूज़ ने जड़ी बूटियों के बारे में जानकारी चाही थी | हालाँकि अब एन.एस लाइव न्यूज़ जल्द ही सूचना के अधिकार के तहत ये जानने वाला हैं कि कौन-कौन सी सूचनाएं विभाग दे सकता हैं और कौन-कौन सी नहीं |
इंन्दिरा गाँधी गर्ल्स छात्रावास में टॉयलेट और बाथरूम की मरम्मत में तीन लाख का भुगतान दिखाया गया हैं, जब्कि मरम्मत में एक लाख रूपए से ज्यादा खर्च नहीं आया होगा | ये कहना हैं वही के एक कर्मचारी का, जिसने अपना नाम नहीं बताया हैं |

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