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बिस्तरे रसूल पर सोने वाले हज़रत अली की मंज़िलत के बराबर कोई नही : मौलाना मीसम ज़ैदी

लखनऊ (सवांददाता) मोहर्रम की आज 7 तारीख़ हज़रत इमाम हुसैन अ.स के भतीजे हजरत क़ासिम अ.स से मंसूब है, हालाँकि उनकी शहादत भी कर्बला के मैदान में 10 मोहर्रम को हुई थी, लेकिन आज की आयोजित सभी मजलिसों में उन्ही का ज़िक्र हुआ| रोज़ की तरह आज भी इमामबाड़ा गुफरानमाब में आयोजित सातवीं मजलिस को मौलाना कल्बे जव्वाद नक़वी ने सम्बोधित किया| यहाँ के बाद इमामबाड़ा आग़ाबाक़र में मौलाना मीसम ज़ैदी ने मजलिस को ख़िताब किया| जब्कि दो बजे मदरसे नाज़मिया में मौलाना हमीदुल हसन ने मजलिस को ख़िताब किया, इसके अलावा भी दिन भर लखनऊ मजलिसों का सिलसिला जारी रहा|

मौलाना कल्बे जव्वाद ने मजलिस को ख़िताब करते हुए हज़रत क़ासिम अ.स का जिक्र किया और उनकी शुजाअत के बारे में अज़ादारों को बताया| उन्होंने कहा कि हज़रत क़ासिम अ.स कमसिन ज़रूर थे लेकिन इमाम हुसैन अ.स पर अपनी जान देने के लिए बेक़रार थे | उन्होंने कहा कि इमाम हुसैन ये नहीं चाहते थे कि अपने भाई हज़रत इमाम हसन अ.स की निशानी को मैदान में भेजकर शहादत का जाम पिलाया जाये, लेकिन क़ासिम ने ज़िद करके और अपने बाबा का एक ख़त दिखा कर हुसैन से जंग की इजाज़त ले ली, उन्होंने इतनी कम उम्र में भी ऐसी जंग की के दुश्मनों के पसीने छूट गए | लेकिन आखिर में उनपर छुप कर वार किया गया और नैज़े की अनी उनके सीने में लग कर टूट गई |
जब इमाम हुसैन उनके पास पहुंचे तो क़ासिम ने कहा कि चचाजान सीने में बेहद दर्द हो रहा है, हुसैन ने अनी को निकालना चाहा तो अनी के साथ-साथ क़ासिम का दिल भी बाहर आ गया और क़ासिम शहीद हो गए | अक़ीदतमंदों ने जब ये मसायब सुने तो रोने की सदाएं बलन्द होने लगी|
इस मजलिस के बाद आगाबाक़र में आयोजित मजलिस को मौलाना मीसम ज़ैदी ने ख़िताब करते हुए हज़रत अली अ.स की फ़ज़ीलत बयान की | उन्होंने कहा कि यू तो रसूल के बहुत से सहाबी थे लेकिन हज़रत अली जैसा उनका दामाद, भाई और सहाबी कोई और नहीं था |उन्होंने जंगे खैबर, जंगे ओहद, जंगे ख़ंदक़, जंगे हुनैन जैसी तमाम जंगों का हवाला देते हुए कहा कि रसूल के अधिकतर सहबियों ने रसूल की राय पर जहा अपनी राय दी वही कुछ सहाबी तो उनके हुक्म के मुताबिक़ चलने को तैयार ही नहीं हुए| उन्होंने कहा कि रसूल की शहादत के बाद कुछ लोग उनके जनाज़े में शरीक तक नहीं हुए | रसूल के बाद अधिकतर हुक्मरान इंसाफ के फैसले करने में भी नाकामयाब रहे, कुछ ऐसे हुक्मरान भी थे जिन्होंने कहा कि अगर अली न होते तो मैं हलाक हो जाता |
उन्होंने कहा कि हज़रत अली अ.स की फ़ज़ीलत इतनी है कि ज़मीन कागज़ बन जाये और समंदर स्याही बन जाये और दुनियां भर के पेड़ क़लम बन जाये फिर भी हज़रत अली अ.स की फ़ज़ीलत नहीं लिखी जा सकती | उन्होंने कह कि जंगे खैबर में रसूल की फौज 39 दिन तक मरहब से डरकर भाग आती थी, लेकिन 40 वें दिन रसूल ने कहा कि आज मैं अलम उसको दूंगा जो मर्द होगा, कर्रार होगा और ग़ैरे फर्रार होगा | उन्होंने कहा कि रसूल के इन जुमलों के बाद ये साबित हो गया था कि अली के अलावा कोई उनके बराबर नहीं था, क्योकि हज़रत अली ने मरहब को एक ही वार में दो हिस्सों में तब्दील कर दिया था, जिसके दोनों टुकड़े वज़्न में बराबर निकले थे | यही नहीं चाहे अदल का मामला हो या शुजाअत का या फिर ग़ैब का इल्म हो हर मामले में हज़रत अली अ.स सरे फेहरिस्त थे | दुनिया में अकेले हज़रत अली ही थे जिनको नुसैरी ने खुदा कहा लेकिन हज़रत अली अ.स ने अपने को खुदा होने से इंकार कर दिया | दूसरी तरफ शद्दाद था जो अपने को खुदा होने का दावा कर रहा था, लेकिन उसे दुनिया ने खुदा तस्लीम नहीं किया | उन्होंने कहा कि जब रसूल मेराज पर गए तो अपने बिस्तर को हज़रत अली के हवाले कर गए |
उन्होंने आज हज़रत क़ासिम अ.स की शहादत का ज़िक्र किया, जिसे सुनकर अकीदतमंद अपनी आँखों में आंसू नहीं रोक सके | मजलिस के बाद हज़रत क़ासिम अ.स का ताबूत बरामद हुआ | मौलाना हमीदुल हसन ने हुसैन और इस्लाम के मौज़ू पर मजलिस को ख़िताब किया |

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