निशिकांत दुबे के खिलाफ अवमानना याचिका पर क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने
लखनऊ, 21 अप्रैल। भारतीय जनता पार्टी के सांसद निशिकांत दुबे की सुप्रीम कोर्ट और मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना के खिलाफ की गई टिप्पणियों को लेकर उनकी मुश्किलें बढ़ गई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक याचिकाकर्ता की अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया कि दुबे के खिलाफ अवमानना का केस दायर करने के लिए कोर्ट की अनुमति की आवश्यकता नहीं है। हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि इसके लिए अटॉर्नी जनरल से मंजूरी लेनी होगी।मामले की पृष्ठभूमि झारखंड के गोड्डा से चार बार के लोकसभा सांसद निशिकांत दुबे ने शनिवार (19 अप्रैल 2025) को सुप्रीम कोर्ट और सीजेआई संजीव खन्ना के खिलाफ विवादित बयान दिए थे। उन्होंने कहा था कि अगर सुप्रीम कोर्ट को ही कानून बनाना है, तो संसद और राज्य विधानसभाओं को बंद कर देना चाहिए। इसके अलावा, उन्होंने सीजेआई खन्ना पर देश में “गृह युद्ध” और “धार्मिक युद्ध” भड़काने का आरोप लगाया। दुबे ने सुप्रीम कोर्ट पर संसद की विधायी शक्तियों में अतिक्रमण करने और अपनी संवैधानिक सीमाओं को लांघने का भी इल्जाम लगाया।इन बयानों के बाद सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गईं, जिनमें दुबे के खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्यवाही शुरू करने की मांग की गई।
याचिकाकर्ताओं में पूर्व आईपीएस अधिकारी अभिताभ ठाकुर और वकील अनस तनवीर शामिल हैं
याचिकाओं में कहा गया कि दुबे के बयान न केवल अपमानजनक और भड़काऊ हैं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट की गरिमा और स्वतंत्रता पर हमला भी हैं।सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई सोमवार को जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के समक्ष इस मामले की सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता के वकील ने दुबे की टिप्पणियों का हवाला देते हुए कहा कि वे अवमानना याचिका दायर करना चाहते हैं। इस पर जस्टिस गवई ने दो टूक जवाब दिया, “आप इसे दायर कीजिए। इसके लिए आपको हमारी अनुमति की जरूरत नहीं है। लेकिन आपको अटॉर्नी जनरल से मंजूरी लेनी होगी।”कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि बयान सार्वजनिक मंच पर दिए गए हैं और वे कोर्ट की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाले हैं, तो सुप्रीम कोर्ट सीधे नोटिस जारी कर सकता है। हालांकि, अभी तक कोई नोटिस जारी नहीं किया गया है।
अटॉर्नी जनरल की भूमिका
न्यायालय अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 15(1)(b) और सुप्रीम कोर्ट के 1975 के नियमों के अनुसार, अवमानना की कार्यवाही शुरू करने के लिए अटॉर्नी जनरल या सॉलिसिटर जनरल की सहमति आवश्यक है। इसीलिए याचिकाकर्ताओं ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी को पत्र लिखकर दुबे के खिलाफ कार्यवाही की अनुमति मांगी है। वकील शिवकुमार त्रिपाठी और अनस तनवीर ने अपने पत्रों में दुबे के बयानों को “घोर निंदनीय”, “भ्रामक” और “न्यायपालिका की अखंडता पर हमला” करार दिया है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
दुबे के बयानों पर विपक्षी दलों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। कांग्रेस ने इसे “लोकतंत्र और न्यायपालिका पर हमला” करार दिया। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि बीजेपी सांसद और संवैधानिक पदों पर बैठे लोग सुप्रीम कोर्ट को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं। कांग्रेस सांसद अभिषेक सिंघवी ने भी अटॉर्नी जनरल से तत्काल आपराधिक अवमानना की कार्यवाही शुरू करने की मांग की।वहीं, बीजेपी ने दुबे के बयानों से खुद को अलग कर लिया है। बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि ये बयान दुबे का निजी हो सकता है भाजपा का नहीं।