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सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन अधिनियम पर सुनवाई: क्या लगेगी रोक, या रद्द होगा बिल?

नई दिल्ली, 4 मई । भारत के सर्वोच्च न्यायालय में सोमवार, 5 मई 2025 को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर एक महत्वपूर्ण सुनवाई होने जा रही है। इस अधिनियम के खिलाफ 100 से अधिक याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें इसे असंवैधानिक करार देने और रद्द करने की मांग की गई है। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, जस्टिस पीवी संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ इस मामले की सुनवाई करेगी। इस सुनवाई से यह तय होगा कि क्या सुप्रीम कोर्ट इस विवादास्पद कानून पर अंतरिम रोक लगाएगा, अगली तारीख देगा, या इसे पूरी तरह खारिज करेगा।

पृष्ठभूमि और प्रमुख विवाद

वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025, जिसे केंद्र सरकार ने 8 अप्रैल 2025 को लागू किया, वक्फ बोर्ड के प्रशासन, संपत्तियों के पंजीकरण और गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने जैसे प्रावधानों को लेकर विवादों में है। याचिकाकर्ताओं, जिनमें AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी, AAP विधायक अमानतुल्लाह खान, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष अरशद मदनी और राजद सांसद मनोज कुमार झा शामिल हैं, ने इसे संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 का उल्लंघन बताया है। उनका तर्क है कि यह कानून धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों पर अतिक्रमण करता है। दूसरी ओर, हरियाणा, मध्य प्रदेश, और राजस्थान जैसे सात भाजपा शासित राज्यों ने इसकी संवैधानिक वैधता का समर्थन किया है, यह तर्क देते हुए कि यह वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता लाएगा।

सुनवाई में प्रमुख बिंदु

सुप्रीम कोर्ट ने पहले 16 अप्रैल 2025 को इस मामले पर दो घंटे की सुनवाई की थी, जिसमें केंद्र सरकार से जवाब मांगा गया। कोर्ट ने ‘वक्फ बाय यूजर’ प्रावधान को हटाने पर सवाल उठाए, जो उन संपत्तियों को वक्फ मानता है जिन्हें लंबे समय तक धार्मिक उद्देश्यों के लिए उपयोग किया गया हो। कोर्ट ने पूछा था कि 14वीं-16वीं शताब्दी की मस्जिदों, जिनके पास औपचारिक दस्तावेज नहीं हैं, का पंजीकरण कैसे होगा। इसके अलावा, गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड में शामिल करने और पुरानी वक्फ संपत्तियों के पुनर्मूल्यांकन पर भी चर्चा हुई।

क्या हो सकता है 5 मई को?

सोमवार की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट इन बिंदुओं पर गहन विचार कर सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि कोर्ट तीन दिशाओं में फैसला ले सकता है:अंतरिम रोक: कोर्ट अधिनियम के कुछ प्रावधानों, जैसे गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति या संपत्तियों के पुनर्पंजीकरण, पर अंतरिम रोक लगा सकता है। 17 अप्रैल 2025 को कोर्ट ने पहले ही वक्फ बोर्ड और परिषदों में नई नियुक्तियों पर रोक लगाई थी, जिसे अगले आदेश तक बढ़ाया जा सकता है।

अगली तारीख: यदि कोर्ट को लगता है कि मामले में और विस्तृत सुनवाई की जरूरत है, तो यह अगली तारीख दे सकता है, जिससे केंद्र और याचिकाकर्ताओं को अपनी दलीलें और मजबूत करने का समय मिलेगा।

बिल का रद्दीकरण: यदि कोर्ट पाता है कि यह अधिनियम संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करता है, तो इसे पूरी तरह रद्द करने का ऐतिहासिक फैसला भी संभव है। हालांकि, यह कदम दुर्लभ होगा, क्योंकि कोर्ट आमतौर पर संसद के कानूनों को रद्द करने से पहले गहन जांच करता है।राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव इस मामले का फैसला न केवल कानूनी, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर भी व्यापक प्रभाव डालेगा। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने ‘वक्फ बचाव अभियान’ शुरू किया है और 1 करोड़ हस्ताक्षरों के साथ विरोध जताने की योजना बनाई है। पश्चिम बंगाल में इस कानून के खिलाफ हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए, जिसमें तीन लोगों की मौत हो चुकी है। कांग्रेस सांसद प्रमोद तिवारी ने इसे संविधान का उल्लंघन बताया, जबकि भाजपा सांसद जगदंबिका पाल ने वक्फ बोर्ड को एक प्रशासनिक संस्था करार देते हुए संशोधन का बचाव किया।

5 मई की सुनवाई न केवल वक्फ अधिनियम की दिशा तय करेगी, बल्कि यह भी स्पष्ट करेगी कि सुप्रीम कोर्ट धार्मिक और प्रशासनिक मामलों में संतुलन कैसे बनाता है। यह मामला संवैधानिक अधिकारों, अल्पसंख्यक स्वायत्तता और सरकारी सुधारों के बीच टकराव का प्रतीक बन चुका है। सभी की निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हैं कि क्या यह एक नया कानूनी इतिहास रचेगा या विवाद को और लंबा खींचेगा।

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