मोहन भागवत की सामाजिक एकता की अपील, ‘एक मंदिर, एक कुआं, एक श्मशान’ पर जोर; कांग्रेस ने लगाया विभाजन का आरोप
लखनऊ,20 अप्रैल। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने हिंदू समाज में जातिगत भेदभाव को खत्म करने और सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देने की जोरदार अपील की है। अलीगढ़ में अपनी पांच दिवसीय यात्रा के दौरान, भागवत ने ‘एक मंदिर, एक कुआं, एक श्मशान’ के सिद्धांत को अपनाने का आह्वान किया, जिसका अर्थ है कि सभी वर्गों के लिए पूजा स्थल, जल स्रोत और श्मशान घाट समान रूप से सुलभ होने चाहिए। इस बयान पर कांग्रेस ने तीखी प्रतिक्रिया दी है, इसे आरएसएस और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की “विभाजनकारी साजिश” का हिस्सा करार दिया।मोहन भागवत का बयान: ‘एक मंदिर, एक कुआं, एक श्मशान’ का क्या अर्थ?मोहन भागवत ने अलीगढ़ के एचबी इंटर कॉलेज और पंचन नगरी पार्क में आयोजित दो शाखाओं में स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए कहा कि भारत को शांति का वैश्विक दूत बनने के लिए वास्तविक सामाजिक एकता की आवश्यकता है। उनके ‘एक मंदिर, एक कुआं, एक श्मशान’ के नारे का उद्देश्य हिंदू समाज में व्याप्त जातिगत भेदभाव को समाप्त करना है। इस नारे का अर्थ है:एक मंदिर: सभी जातियों और वर्गों को समान रूप से मंदिरों में प्रवेश और पूजा का अधिकार होना चाहिए। ऐतिहासिक रूप से, कुछ मंदिरों में दलितों और अन्य निचली जातियों के प्रवेश पर प्रतिबंध रहा है। भागवत का कहना है कि मंदिर, जो हिंदू समाज का आध्यात्मिक केंद्र है, सभी के लिए खुला होना चाहिए।एक कुआं: जल स्रोत, जैसे कुएं, जो सामुदायिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, सभी के लिए सुलभ होने चाहिए। अतीत में, ऊंची जातियों द्वारा निचली जातियों को कुओं से पानी लेने से रोका जाता था। भागवत का यह संदेश इस भेदभाव को खत्म करने की दिशा में है।एक श्मशान: श्मशान घाट, जहां अंतिम संस्कार किए जाते हैं, सभी वर्गों के लिए समान होने चाहिए। कई जगहों पर अलग-अलग जातियों के लिए अलग श्मशान घाट होते हैं, जो सामाजिक असमानता को दर्शाता है। भागवत इस प्रथा को समाप्त करने की वकालत करते हैं।भागवत का यह संदेश हिंदू समाज को एकजुट करने और जातिगत विभाजन को मिटाने की दिशा में एक कदम है। उन्होंने कहा कि “हमारी विविधता इतनी बढ़ गई है कि हमने अपने संतों और देवताओं को भी बांट दिया है।” उन्होंने उदाहरण दिया कि वाल्मिकी जयंती केवल वाल्मिकी समुदाय में क्यों मनाई जाती है, जबकि वाल्मिकी ने रामायण पूरे हिंदू समाज के लिए लिखी थी।भागवत ऐसा क्यों चाहते हैं?मोहन भागवत का यह बयान कई कारणों से महत्वपूर्ण है और इसके पीछे सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक उद्देश्य छिपे हैं:सामाजिक एकता और हिंदू एकीकरण: आरएसएस लंबे समय से हिंदू समाज को एकजुट करने की दिशा में काम कर रहा है। भागवत का मानना है कि जातिगत भेदभाव हिंदू समाज को कमजोर करता है और इसे एकजुट करने के लिए इन प्रथाओं को समाप्त करना जरूरी है। उनका कहना है कि एक एकजुट हिंदू समाज भारत को वैश्विक स्तर पर मजबूत बनाएगा।संस्कार और सांस्कृतिक मूल्य: भागवत ने हिंदू समाज की नींव के रूप में ‘संस्कार’ (मूल्यों) के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने स्वयंसेवकों से आग्रह किया कि वे सभी वर्गों के लोगों को अपने घरों में आमंत्रित करें और सामाजिक सद्भाव का संदेश फैलाएं। उनका मानना है कि परिवार समाज की मूल इकाई है, और सांस्कृतिक मूल्यों से मजबूत परिवार ही एक मजबूत समाज का निर्माण कर सकते हैं।
राष्ट्रीय एकता और वैश्विक भूमिका
भागवत ने कह कि भारत को शांति का वैश्विक दूत बनने के लिए सामाजिक एकता जरूरी है। उनका मानना है कि भारत की सांस्कृतिक और नैतिक ताकत ही उसे विश्व गुरु बनाने में मदद करेगी। इसके लिए, हिंदू समाज को आंतरिक विभाजनों से मुक्त होना होगा।राजनीतिक संदर्भ: हाल के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को पूर्ण बहुमत न मिलने और विपक्ष, खासकर कांग्रेस, द्वारा जातिगत जनगणना और आरक्षण जैसे मुद्दों को उठाने के बाद, आरएसएस का यह बयान सामाजिक समावेशिता को बढ़ावा देने की रणनीति का हिस्सा हो सकता है। भागवत का यह संदेश दलितों और अन्य पिछड़े वर्गों को आकर्षित करने का प्रयास भी हो सकता है, जो हाल के वर्षों में आरएसएस और बीजेपी के लिए महत्वपूर्ण वोट बैंक बन गए हैं।
आरएसएस की शताब्दी उत्सव की तैयारी
भागवत की यह यात्रा और बयान आरएसएस के शताब्दी समारोह (1925-2025) की तैयारियों का हिस्सा हैं। इस अवसर पर, आरएसएस सामाजिक सुधार और एकता को अपने प्रमुख एजेंडे के रूप में पेश करना चाहता है।कांग्रेस की प्रतिक्रिया: “विभाजनकारी साजिश”कांग्रेस ने भागवत के बयान पर तीखा हमला बोला है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने बिहार के बक्सर में एक रैली में कहा, “बीजेपी-आरएसएस गरीबों, महिलाओं और कमजोर वर्गों के खिलाफ काम कर रहे हैं। वे समाज को जाति और धर्म के आधार पर बांटते हैं।” खरगे ने वक्फ (संशोधन) विधेयक को बीजेपी और आरएसएस की “समुदायों को बांटने की साजिश” करार दिया।कांग्रेस नेता हर्षवर्धन सपकाल ने हाल ही में सवाल उठाया था कि आरएसएस कब किसी दलित, मुस्लिम या महिला को अपना प्रमुख बनाएगा। उन्होंने दावा किया कि मल्लिकार्जुन खरगे जैसे दलित नेता कांग्रेस में शीर्ष पद पर हैं, लेकिन आरएसएस में ऐसी समावेशिता नहीं दिखती। कांग्रेस का कहना है कि भागवत का ‘एक मंदिर, एक कुआं, एक श्मशान’ का नारा केवल दिखावा है और इसका असली मकसद हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण करना है