अयोध्या में धर्मसभा का आयोजन कही शिवसेना का खौफ तो नहीं ?
लोकसभा चुनाव में भाजपा के वोट बैंक पर असर डाल सकती है शिवसेना
शिवसेना की आमद पर त्रिकोणीय हो सकता है लोकसभा चुनाव
(ज़की भारतीय)
लखनऊ (सवांददाता) “रामलला हम आएंगे मंदिर वही बनाएंगे” के नारे से मुकरी हुई भाजपा के विरुद्ध जहाँ साधु संतों सहित विश्व हिन्दू परिषद ने अयोध्या में राममंदिर निर्माण मामले में धर्मसभा करके अपना ऐलान दर्ज करा दिया है, वही महाराष्ट्र में कमजोर पड़ती हुई शिवसेना के प्रमुख उद्रव ठाकरे ने भी अयोध्या में राममंदिर निर्माण का लाभ लेने के लिए धर्मसभा से एक दिन पूर्व ही अयोध्या पहुंच कर हिन्दू वोटरों को रिझाने का प्रयास किया| हालाँकि किसी हद तक वो अपने उद्देश्य में सफल भी हुए है | उनकी इस राजनीति से जहाँ आने वाले समय में उनकी पार्टी को महाराष्ट्र में भाजपा से अधिक लाभ होने की आशा हैं, वही वो उत्तर प्रदेश में भी अब भाजपा को टक्कर दे सकते है | जैसा की अभी कुछ माह पूर्व राममंदिर माममे में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने सक्रियता दिखाते हुए संघ की एक बड़ी बैठक करके भाजपा को उस बैठक में आने का आदेश दिया था और उसके बाद वो खुद पर्यावरण और जलसंचालन के प्रति लोगों में जागरूकता लाने के बहाने धर्मसभा के प्रति लोगों को जागरूक करने निकल गए थे | दरअस्ल उनको शायद इस बात की भनक मिल गई थी कि शिवसेना इस मंदिर मुद्दे को भाजपा के हाथ से छीनने की कोशिश करने वाली है | इसीलिए धर्मसभा का संघ द्धारा आयोजन किये जाने का ऐलान कराया गया | लेकिन ठाकरे धर्मसभा से हताश नहीं हुए और उन्होंने धर्मसभा से एक दिन पूर्व ही अयोध्या में अपनी आमद दर्ज कराके भाजपा से ये पूछा कि मंदिर निर्माण की तारीख बताई जाये | यही नहीं उद्रव ठाकरे ने मोदी के विरुद्ध ज़बान से जो ज़हर उगला उसमे उन्होंने मोदी का नाम लिए बिना यहाँ तक कह दिया कि वो सोये हुए कुम्भकर्ण को जगाने आये है | शायद इसीलिए भाजपा विरोधी दल द्धारा एक नारा बलन्द किया कि ” मंदिर वहीं बनाएंगे, तारीख नहीं बताएँगे” हालाँकि अभीतक जो भी अयोध्या में हो रहा है उसके पीछे संघ का ही हाथ है | क्योकि मोहन भागवत ने अभी जल्द ही सर्वोच्च न्यायालय द्धारा राममंदिर निर्माण मामले में जो बयान दिया था वो न्यायपालिका के विरुद्ध था | हालाँकि उन्होंने किसी हद तक फैसलों की देरी होने की बात सही कही थी | लेकिन न्यायपालिका नहीं है क्योकि बाबरी मस्जिद बनाम रामजन्म भूमि मामला दो पृष्ठ का नहीं है | इतने बड़े मामले पर शीर्ष अदालत उल्टा-सीधा फैसला नहीं कर सकती | न्यायपालिका किसी मामले को तथ्यों और सबूतों के आधार पर देखती है न की आस्था पर | अगर आस्था का ही मामला होता तो सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर अदालत फैसला न देती | इसलिए अदालत को किसी फैसले के लिए ज़ोर ज़बरदस्ती या दबाव बनाना सविधान के विरुद्ध है | अब तो इन्तिहा ये हो चुकी है कि मंदिर निर्माण को लेकर भाजपा के बड़े-बड़े नेता और विश्व हिन्दू परिषद के आलावा साधु संत भी ये कहते हुए नज़र आने लगे है कि हम अब अदालत के फैसले का इन्तेजार नहीं कर सकते है | उनका कहना है कि या तो सरकार मंदिर निर्माण पर क़ानून लाये वरना मंदिर हरहाल में बनाया जायेगा | अब शीर्ष अदालत के फैसले के आने से पूर्व ही इस तरह का बयान दिया जाना सरासर अदालत की अवमानना है | बावजूद इसके इस तरह के निरंतर बयानात देने वालों के विरुद्ध कौन आवाज़ उठाये ? मुस्लिम धर्मगुरुओं की बात की जाये तो भाजपा सरकार में न जाने क्यों सबकी ज़बाने खामोश है | या तो इनकी अपनी कोई मज़बूरी है या फिर किसी वजह से कोई खौफ है जो इन्हे दहलाये हुए है | चाहे विश्व हिन्दू परिषद हो, चाहे बजरंग दल हो या और कोई हिन्दू संगठन सब संघ की शाखाये हैं | संघ को ये मालूम है कि मोदी सरकार को लगभग साढ़े चार वर्ष व्यतीत हो चुके है और ऐसे में जिन हिन्दुओं ने भाजपा की मंदिर मामले को देखते हुए कई बार सरकारे बनवाई वो अब मंदिर निर्माण न होने से नाराज़ होंगे | यदि मंदिर प्रकरण को फिर से ज़िंदा नहीं किया तो बरसों की मेहनत की मौत हो जाएगी | इसलिए संघ द्धारा इस मामले को गरमाया गया है, जिससे देखने में ये महसूस हो कि हिन्दू दल ही भाजपा के विरोध में उतर आये है और मजबूर होकर भाजपा को मंदिर निर्माण के लिए क़ानून बनाना पड़ा | ज़ाहिर है संघ को लोकसभा चुनाव से पूर्व मंदिर का निर्माण करवाना ही पड़ेगा, वरना भाजपा का इस बार अगर नामों निशा मिटा तो दुबारा किसी भी मुद्दे को लाने के बावजूद भाजपा कई हज़ार क़दम पीछे हो जाएगी | हालाँकि शिवसेना के तेवर बता रहे है कि आने वाले समय में भाजपा के वोटों का धुर्वीकरण कोई और पार्टी करे या न करे लेकिन शिवसेना भाजपा के लिए नासूर का काम ज़रूर कर सकती है | अभी तक भाजपा के वोटरों का धुर्वीकरण कोई भी पार्टी करती हुई नज़र नहीं आ रही है | इस समय भारत में दो ही पार्टियां आमने सामने है जिसमे एक भाजपा और दूसरी कांग्रेस है | इसके अलावा अधिकतर क्षेत्रीय पार्टियां चुनाव मैदान में आकर मुसलमानों, यादव और दलित वोटरों का ध्रुवीकरण करा देती है , जिसका सीधा लाभ भाजपा को पहुँचता है | संघ खूब जानता है कि इस बार अगर मंदिर मुद्दे को हाईलाइट नहीं किया गया तो भाजपा का अस्तित्व ही मिट जायेगा | इसीलिए चुनाव से पूर्व इस मुद्दे को उठाया जा रहा है | लेकिन जनता भाजपा की गलत कार्यप्रणाली और साढ़े चार वर्ष की सरकार को देख चुकी है | इसीलिए वो मूर्ख बनने को तैयार नज़र नहीं आ रही है | इसलिए आने वाले लोकसभा चुनाव में जनता कांग्रेस को बड़ा समर्थन दे सकती है | क्योकि वोटर अब अपने मतों का सही प्रयोग करना चाह रहा है | इसके अलावा भी शिवसेना यदि भाजपा के विरुद्ध अपने उम्मीदवार उतारती है तो भाजपा को खुद भी बहुत बड़ी हानि का सामना करना पड़ सकता है | प्रदेश भाजपा अध्यक्ष डॉ० महेंद्र नाथ पाण्डेय की ज़बान पर फिर चुनाव से पूर्व मंदिर निर्माण मुद्दा आस्था का विषय बन चुका है | जब्कि न्यायपालिका में आस्था किसी भी मक़ाम पर नहीं ठहरती है | अगर तीन तलाक़ मुसलमानों की आस्था और मज़हब का मामला था तो न्यायपालिका ने तीन तलाक़ पर रोक क्यों लगाई ? वैसे भाजपा केंद्र में प्रचंड बहुमत से है वो इस मामले पर क़ानून बनाकर या मुसलमानों से आपसी बातचीत करके मंदिर का निर्माण तो चुनाव से पूर्व करके ही दम लेगी |