लखनऊ,20 मई। लखनऊ में प्रोफेसर खान की 14 दिन की न्यायिक हिरासत की खबर ने सामाजिक और कानूनी हलकों में हलचल मचा दी। दोपहर के बाद यह खबर सामने आई कि पुलिस द्वारा मांगी गई रिमांड को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया और प्रोफेसर खान को न्यायिक हिरासत में भेजा गया। यह मामला सेकुलर मूल्यों और न्याय की निष्पक्षता का प्रतीक बन गया है।प्रोफेसर खान, जो एक प्रतिष्ठित शिक्षाविद और सामाजिक कार्यकर्ता हैं, पर कुछ विवादास्पद बयानों के आधार पर पुलिस ने कार्रवाई की थी। पुलिस ने रिमांड की मांग की थी, ताकि उनसे पूछताछ की जा सके। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस मांग को ठुकरा दिया। पुलिस रिमांड में अक्सर थर्ड डिग्री का इस्तेमाल होता है, जिससे जबरन बयान लिए जा सकते हैं। इसके बजाय, न्यायिक हिरासत का फैसला सुनिश्चित करता है कि प्रोफेसर खान जेल में रहेंगे, और पुलिस को उनसे पूछताछ के लिए कोर्ट की अनुमति लेनी होगी।
X पर एक यूजर ने लिखा, “प्रोफेसर खान के साथ जो हो रहा है, वह सेकुलर भारत के लिए एक चुनौती है। हमें उनके जैसे लोगों की आवाज की रक्षा करनी होगी।” यह फैसला न केवल प्रोफेसर खान के पक्ष में है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि भारतीय न्याय व्यवस्था निष्पक्षता और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।उम्मीद है कि जल्द ही होने वाले सुनवाई में प्रोफेसर खान को बेगुनाह करार दिया जाएगा और उनकी रिहाई सुनिश्चित होगी। यह मामला सेकुलर भारत के लिए एक प्रेरणा है, जहाँ हर व्यक्ति को अपनी आवाज उठाने का हक है।