ज़की भारतीय
लखनऊ,16 जून। मध्य पूर्व में एक बार फिर युद्ध की आग भड़क उठी है। इजरायल और ईरान के बीच चल रहा संघर्ष अब छद्म युद्ध से खुले मैदान की लड़ाई में बदल चुका है। जहां इजरायल अपनी सैन्य ताकत और अमेरिकी समर्थन के बल पर क्षेत्र में दबदबा कायम रखने की कोशिश कर रहा है, वहीं ईरान ने अपनी साहसिक जवाबी कार्रवाइयों से न केवल इजरायल की कमजोरियों को उजागर किया है, बल्कि यह भी साबित कर दिया है कि वह किसी भी अत्याचारी ताकत के सामने झुकने वाला नहीं है। इस युद्ध ने न केवल क्षेत्रीय समीकरणों को बदल दिया है, बल्कि यह भी दिखाया है कि फिलिस्तीन पर दशकों से हो रहे अत्याचारों का हिसाब अब प्रकृति और समय मांग रहे हैं।
इजरायल की कमजोरियां: तेल अवीव की तबाही और रणनीतिक चूक
इजरायल, जो अपनी सैन्य शक्ति और तकनीकी श्रेष्ठता के लिए जाना जाता है, इस युद्ध में कई मोर्चों पर कमजोर पड़ता दिख रहा है। 13 जून 2025 को ईरान द्वारा तेल अवीव पर दागी गई 100 से अधिक बैलिस्टिक मिसाइलों ने इजरायल के आयरन डोम और डेविड स्लिंग जैसे रक्षा तंत्रों की सीमाओं को उजागर कर दिया। इन मिसाइलों ने तेल अवीव के आसमान को आतिशबाजियों से भर दिया और शहर की कई इमारतें खंडहर में तब्दील हो गईं। यह हमला इजरायल की उस रणनीति पर करारा प्रहार था, जिसके तहत उसने ईरान के परमाणु और सैन्य ठिकानों पर हमले किए थे। इजरायल की सबसे बड़ी कमजोरी उसकी आक्रामक नीति और अति आत्मविश्वास है। उसने यह मान लिया था कि ईरान केवल प्रॉक्सी युद्ध (हिजबुल्ला, हमास, हूती विद्रोहियों के जरिए) ही लड़ सकता है। लेकिन ईरान की सीधी जवाबी कार्रवाई ने इजरायल को सकते में डाल दिया। इजरायल की वायु सेना, जिसमें 340 अत्याधुनिक लड़ाकू विमान (F-16, F-35) शामिल हैं, भले ही ईरान से बेहतर हो, लेकिन वह ईरान की मिसाइल और ड्रोन क्षमता का मुकाबला करने में असमर्थ रही। इजरायल की साइबर युद्ध क्षमता और मोसाद की खुफिया ताकत भी इस बार ईरान की खुफिया एजेंसियों के सामने कमजोर पड़ती दिखीं, जिन्होंने दावा किया कि उन्होंने इजरायल के परमाणु ठिकानों से संवेदनशील दस्तावेज हासिल किए हैं। इजरायल की एक और बड़ी कमी है। उसकी अर्थव्यवस्था अब युद्ध के दबाव को सहन करने की स्थिति में नहीं है। युद्ध के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में 13% की वृद्धि हुई, जिसका असर इजरायल की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ रहा है।
इसके अलावा, इजरायल की जनता में भी नेतन्याहू सरकार के प्रति असंतोष बढ़ रहा है। लगातार युद्ध और आर्थिक दबाव ने इजरायल को अंदर से कमजोर कर दिया है।
ईरान की बहादुरी: अत्याचार के खिलाफ डटकर मुकाबला
ईरान ने इस युद्ध में न केवल अपनी सैन्य क्षमता का प्रदर्शन किया, बल्कि यह भी साबित कर दिया कि वह अत्याचार और साम्राज्यवाद के खिलाफ डटकर खड़ा हो सकता है। इजरायल द्वारा ईरान के परमाणु ठिकानों और सैन्य अड्डों पर हमले के बाद, जिसमें कई वरिष्ठ सैन्य अधिकारी और वैज्ञानिक मारे गए, ईरान ने तुरंत जवाबी कार्रवाई की। 13 जून की रात को तेल अवीव पर दागी गई मिसाइलें न केवल इजरायल के लिए एक चेतावनी थीं, बल्कि यह संदेश भी था कि ईरान किसी भी हमले का मुंहतोड़ जवाब दे सकता है। ईरान की सैन्य ताकत को कम आंकना इजरायल की सबसे बड़ी भूल थी। ईरान के पास 6,10,000 सक्रिय सैनिक, 3,50,000 रिजर्व सैनिक और 2,20,000 अर्धसैनिक बल (बासिज) हैं, जो कुल मिलाकर 11,80,000 सैन्य कर्मी बनाते हैं। इसके अलावा, ईरान की मिसाइल और ड्रोन तकनीक ने इजरायल के रक्षा तंत्र को चुनौती दी। ईरान का क्षेत्रीय प्रभाव भी उसकी ताकत है। हिजबुल्ला (लेबनान), हमास (गाजा), और हूती विद्रोही (यमन) जैसे प्रॉक्सी समूह ईरान को इजरायल और उसके सहयोगियों पर अप्रत्यक्ष रूप से हमला करने की क्षमता देते हैं।
ईरान की सबसे बड़ी ताकत उसका साहस और आत्मसम्मान है। अमेरिका और इजरायल जैसे ताकतवर देशों के दबाव के बावजूद, ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को जारी रखा और अपनी संप्रभुता की रक्षा की। IAEA की रिपोर्ट, जिसमें ईरान पर 60% संवर्धित यूरेनियम रखने का आरोप लगाया गया, को ईरान ने साजिश करार दिया और नई यूरेनियम संवर्धन साइट शुरू करने की चेतावनी दी। यह दिखाता है कि ईरान किसी भी कीमत पर अपनी स्वतंत्रता से समझौता नहीं करेगा।
फिलिस्तीन पर अत्याचार: इजरायल की क्रूरता का हिसाब
इस युद्ध का एक बड़ा संदर्भ फिलिस्तीन है, जहां दशकों से इजरायल द्वारा अत्याचार किए जा रहे हैं। 7 अक्टूबर 2023 को हमास के हमले, जिसमें 1,200 इजरायली मारे गए, के बाद इजरायल ने गाजा पर अब तक के सबसे क्रूर हमले शुरू किए। पिछले 600 दिनों में गाजा में 54,000 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं, जिनमें ज्यादातर बच्चे और महिलाएं हैं। मस्जिदें, स्कूल, अस्पताल, और राहत कैंप तक को निशाना बनाया गया। गाजा अब कब्रिस्तान में तब्दील हो चुका है, जहां बच्चे भूख से बिलख रहे हैं और दवाइयों की कमी से लोग मर रहे हैं। इजरायल ने भूख को भी युद्ध का हथियार बनाया है। राहत सामग्री को रोककर और सहायता केंद्रों पर हमले करके उसने गाजा की जनता को तड़पने के लिए छोड़ दिया।
खान यूनुस में बमबारी से निर्दोष लोग जिंदा जल गए, लेकिन अंतरराष्ट्रीय समुदाय और मानवाधिकार संगठन खामोश रहे। यह इजरायल की वह क्रूरता है, जिसके खिलाफ आज ईरान और उसके सहयोगी खड़े हैं।
अमेरिका की नीतियां: अत्याचार का समर्थन
इस युद्ध में अमेरिका की भूमिका भी संदिग्ध रही है। एक तरफ वह शांति की बात करता है, दूसरी तरफ इजरायल को सैन्य और आर्थिक समर्थन देता है। कतर में स्थित अमेरिकी वायु सेना अड्डे से इजरायली बमवर्षक विमानों को ईंधन दिया जा रहा है। इसके अलावा, ईरान द्वारा इजरायल पर दागे गए ड्रोनों को अमेरिका ने मार गिराया। यह दिखाता है कि अमेरिका न केवल इजरायल का समर्थक है, बल्कि क्षेत्र में अस्थिरता फैलाने का जिम्मेदार भी है।ईरान ने अमेरिका की इन नीतियों का खुलकर विरोध किया है। वह न केवल अपने परमाणु कार्यक्रम को बचाने के लिए लड़ रहा है, बल्कि क्षेत्रीय देशों को अमेरिकी हस्तक्षेप से मुक्त कराने की कोशिश भी कर रहा है। यह ईरान की वह बहादुरी है, जो उसे क्षेत्र के अन्य देशों के लिए प्रेरणा बनाती है।
“फ़स्ल जख्मों की मिली है तो तड़पना कैसा, बीज खंजर के जो बोए थे तो खंजर निकले ।”
यह युद्ध केवल सैन्य शक्ति का प्रदर्शन नहीं है, बल्कि नैतिकता और न्याय की लड़ाई भी है। इजरायल ने दशकों तक फिलिस्तीन, सीरिया, और लेबनान में आतंकवाद को बढ़ावा दिया। उसने आतंकवादी संगठनों को समर्थन देकर क्षेत्र को अस्थिर किया। लेकिन अब समय बदल चुका है। ईरान की जवाबी कार्रवाइयों ने इजरायल को यह अहसास करा दिया है कि उसकी हर गलत नीति का हिसाब लिया जाएगा।तेल अवीव की तबाही और इजरायल की बौखलाहट यह दिखाती है कि फिलिस्तीन पर किए गए अत्याचारों की सजा अब इजरायल को मिल रही है। यह एक सबक है कि जुल्म की फसल बोने वालों को फूल नहीं, खंजर मिलते हैं।
कल जो इजरायल ने ख़ुद बोया था, आज वो ख़ुद अपने हाथों से काट रहा है। आज मुझे इस हालात पर खुद अपना एक शेर याद आ गया,“फ़स्ल जख्मों की मिली है तो तड़पना कैसा, बीज खंजर के जो बोए थे तो खंजर निकले ।”
इजरायल को यह समझना होगा कि दूसरों पर जुल्म करने से पहले अपने भविष्य के बारे में सोचना चाहिए।
शांति की राह और इजरायल पर अंकुश
इस युद्ध को रोकने की जिम्मेदारी केवल ईरान या इजरायल की नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भी है। लेकिन शांति तभी संभव है, जब इजरायल पर पूर्ण प्रतिबंध लगाए जाएं। उसे अपनी हद में रहना होगा और क्षेत्रीय देशों की संप्रभुता का सम्मान करना होगा। इजरायल को यह समझना होगा कि अपनी तरक्की के लिए वह कुछ भी कर सकता है, लेकिन दूसरों की जमीन पर कब्जा करना, आतंकवाद को बढ़ावा देना, और अत्याचार करना उसे विनाश की ओर ले जाएगा।ईरान की बहादुरी और साहस को सलाम है। उसने न केवल इजरायल की कमजोरियों को उजागर किया, बल्कि यह भी दिखाया कि अत्याचार के खिलाफ खड़ा होना कितना जरूरी है। यह युद्ध न केवल सैन्य है, बल्कि एक नैतिक लड़ाई भी है, जिसमें सच और न्याय की जीत होगी। फिलिस्तीन के मासूम लोगों के लिए, जो भूख, बमबारी, और अत्याचार का शिकार हो रहे हैं, यह युद्ध उम्मीद की किरण है। इजरायल को सबक मिलेगा, और फिलिस्तीन एक दिन आजाद होगा।