ज़की भारतीय
हृदय—यह छोटा-सा अंग हमारे शरीर का वह इंजन है, जो हर धड़कन के साथ जिंदगी को रंग देता है। मगर आज की भागदौड़ भरी जिंदगी, तनाव, और गलत आदतें इसे चुपके-चुपके कमजोर कर रही हैं। भारत में हृदय रोग अब सिर्फ बुजुर्गों की बीमारी नहीं रहा; यह 30-40 साल के युवाओं को भी अपनी चपेट में ले रहा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की चेतावनी को देखा जाए तो हृदय रोग दुनिया में मृत्यु का सबसे बड़ा कारण है। लेकिन उम्मीद की किरण यह है कि जटिल हृदय समस्याओं को होने से पहले रोका जा सकता है। लखनऊ के एरा मेडिकल कॉलेज के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. बशीर अहमद जैसे समर्पित डॉक्टर इस राह को आसान बना रहे हैं। उनकी मरीजों के प्रति सहानुभूति और जान बचाने की जिद उन्हें खास बनाती है। यह लेख डॉ. बशीर अहमद की सलाह, भारतीय विशेषज्ञों जैसे डॉ. के.के. अग्रवाल और डॉ. अम्बुज रॉय के विचारों, और एरा मेडिकल कॉलेज की हकीकत को मिलाकर हृदय को स्वस्थ रखने की राह दिखाएगा।
डॉ. बशीर अहमद: मरीजों का हमदर्द
लखनऊ के एरा मेडिकल कॉलेज में डॉ. बशीर अहमद का नाम सिर्फ एक डॉक्टर का नहीं, बल्कि मरीजों के लिए एक उम्मीद का प्रतीक है। उनकी सहानुभूति और समर्पण ऐसी चीजें हैं, जो आजकल कम ही देखने को मिलती हैं। जोखिम भरे मरीज, जिनके ठीक होने की उम्मीद कम होती है, उनकी देखभाल में डॉ. बशीर बार-बार राउंड लेते हैं। वे मरीजों को हौसला देते हैं, कहते हैं, “घबराएँ नहीं, आप जल्दी ठीक होंगे।” उनकी यह बात मरीजों को मानसिक ताकत देती है। अगर किसी को सर्जरी की जरूरत हो, तो वे तुरंत सलाह देते हैं और कार्डियक सर्जन डॉ. खालिद अहमद से समन्वय करते हैं।डॉ. बशीर का मानना है कि हृदय रोग से बचाव के लिए जागरूकता सबसे बड़ा हथियार है। वे कहते हैं, “अगर लोग अपनी जीवनशैली सुधार लें और समय पर जाँच कराएँ, तो हार्ट अटैक जैसी आपात स्थितियों को काफी हद तक रोका जा सकता है।” उनकी कोशिश रहती है कि दवाइयों से मरीज की जान बचाई जाए, खासकर तब जब सर्जरी जोखिम भरी हो। हालांकि एरा में कुछ सीमाएँ हैं। उदाहरण के लिए, जिन मरीजों का इजेक्शन फ्रैक्शन 25% से कम होता है, उनके लिए ओपन हार्ट सर्जरी या बाईपास सर्जरी के लिए जरूरी उन्नत उपकरण यहाँ उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे मामलों में सर्जन खालिद अहमद मरीजों को अन्य बड़े अस्पतालों, जैसे लखनऊ,दिल्ली या मुंबई के मेडिकल सेंटर, में रेफर करते हैं। फिर भी, उनकी कोशिश आखिरी साँस तक मरीज को बचाने की रहती है।
एरा की खामियाँ में सुधार की जरूरत
एरा मेडिकल कॉलेज का कार्डियक विभाग भले ही अपनी सेवाओं के लिए जाना जाता हो, लेकिन यहाँ कुछ खामियाँ भी हैं, जो मरीजों के अनुभव को प्रभावित करती हैं। शौचालयों में गंदगी का अंबार रहता है, और सफाई का अभाव साफ दिखता है। बेडशीट और तकिए इतने गंदे होते हैं कि मरीजों को उन पर लेटना मुश्किल लगता है। कई बार मरीजों ने शिकायत की कि बेडशीट बदलने की बात पर स्टाफ कहता है, “अभी तो बदला गया है,” लेकिन हकीकत कुछ और होती है। ये समस्याएँ शायद अस्पताल प्रशासन की अनदेखी का नतीजा हैं। अगर इनका समाधान हो जाए, तो मरीजों को बेहतर सुविधाएँ मिल सकती हैं। फिर भी, डॉ. बशीर और उनकी टीम इन कमियों के बावजूद मरीजों की जान बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ते।
स्वस्थ जीवन शैली: हृदय का पहला कवच
डॉ. बशीर अहमद मानते हैं कि हृदय रोग का सबसे बड़ा कारण हमारी जीवन शैली है। तला-भुना खाना, जैसे पकौड़े, समोसे, या मिठाइयाँ, धमनियों में कोलेस्ट्रॉल जमा करता है, जो ब्लॉकेज का रास्ता बनाता है। भारतीय खानपान में तेल और मसालों का जादू है, लेकिन संयम जरूरी है। हरी सब्जियाँ (पालक, ब्रोकली), फल (सेब, अनार), साबुत अनाज (जई, बाजरा), और नट्स (बादाम, अखरोट) हृदय को ताकत देते हैं। देसी घी को थोड़ा-सा इस्तेमाल करें, लेकिन चिप्स, बर्गर, और पैकेज्ड स्नैक्स से परहेज करें। व्यायाम हृदय का सबसे अच्छा दोस्त है। डॉ. बशीर सलाह देते हैं कि रोजाना 30 मिनट की सैर या योग रक्तचाप और कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित रखता है। अगर जिम जाने का समय न हो, तो सीढ़ियाँ चढ़ें या घर का काम करें। धूम्रपान और शराब हृदय के लिए जहर हैं। डॉ. बशीर बताते हैं कि एक सिगरेट हृदय रोग का जोखिम 50% बढ़ा सकती है, लेकिन इसे छोड़ने के एक साल बाद यह खतरा आधा हो जाता है। तनाव भी हृदय का दुश्मन है। योग, ध्यान, या दोस्तों के साथ हँसी-मजाक तनाव को कम करता है।अन्य बीमारियाँ और नियमित जाँचहृदय अकेले नहीं लड़ता। क्रोनिक ब्रॉन्काइटिस, अस्थमा, या फेफड़ों की अन्य बीमारियाँ हृदय पर अतिरिक्त बोझ डालती हैं। क्रोनिक ब्रॉन्काइटिस में फेफड़े पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं भेज पाते, जिससे हृदय को रक्त पंप करने में दोगुनी मेहनत करनी पड़ती है। यह स्थिति हार्ट फेल्योर का कारण बन सकती है। डॉ. बशीर सलाह देते हैं कि अगर आपको साँस लेने में तकलीफ, लगातार खाँसी, या सीने में भारीपन हो, तो तुरंत जाँच कराएँ। मधुमेह और उच्च रक्तचाप भी हृदय रोग के बड़े जोखिम हैं। भारत में मधुमेह के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, और यह धमनियों को नुकसान पहुँचाता है। इनसे बचने के लिए नियमित दवाइयाँ और स्वस्थ आहार जरूरी है।नियमित जाँच हृदय रोगों को पकड़ने का सबसे आसान तरीका है। डॉ. बशीर सुझाते हैं कि 30 साल की उम्र के बाद हर साल लिपिड प्रोफाइल, ब्लड प्रेशर, ब्लड शुगर, और ECG कराएँ। अगर परिवार में हृदय रोग का इतिहास है, तो जाँच 25 साल से शुरू करें। महिलाओं में लक्षण अलग हो सकते हैं, जैसे थकान या जबड़े में दर्द, इसलिए उन्हें विशेष सावधानी बरतनी चाहिए।
सर्जरी और समय पर कार्रवाई
एरा मेडिकल कॉलेज में कार्डियक सर्जन डॉ. खालिद अहमद कई जटिल सर्जरी करते हैं, जैसे बाईपास और वाल्व रिप्लेसमेंट। लेकिन कम इजेक्शन फ्रैक्शन (25%) वाले मरीजों के लिए ओपन हार्ट सर्जरी या बाईपास में उपकरणों की कमी एक बड़ी बाधा है। डॉ. बशीर और डॉ. खालिद ऐसे मामलों में मरीजों को बड़े अस्पतालों में भेजते हैं, लेकिन दवाइयों से जान बचाने की हरसंभव कोशिश करते हैं। अगर आपको सीने में दर्द, साँस की तकलीफ, या अनियमित धड़कन जैसे लक्षण दिखें, तो तुरंत कार्डियोलॉजिस्ट से मिलें। हार्ट अटैक के लक्षण दिखने पर तुरंत अस्पताल जाएँ। अंतिम बात हृदय रोग कोई लाइलाज बीमारी नहीं। डॉ. बशीर अहमद जैसे डॉक्टरों की मेहनत और सलाह से हम अपने हृदय को सुरक्षित रख सकते हैं। स्वस्थ खानपान, व्यायाम, तनाव से दूरी, और नियमित जाँच इसके मूल मंत्र हैं। एरा मेडिकल कॉलेज की कुछ कमियों को सुधारने की जरूरत है, लेकिन डॉ. बशीर और उनकी टीम का समर्पण मरीजों के लिए वरदान है। अपने हृदय की हर धड़कन को संभालें। आज से शुरुआत करें—एक फल खाएँ, 10 मिनट टहलें, और जाँच की योजना बनाएँ। जैसा कि डॉ. बशीर कहते हैं, “हृदय की देखभाल आज करें, ताकि कल मुस्कुराएँ।”