लखनऊ, 10 मई । 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पाहलगाम में हुए आतंकी हमले ने देश को हिलाकर रख दिया था। लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े आतंकियों ने 26 निर्दोष लोगों की हत्या की, जिनमें ज्यादातर पर्यटक थे। इनमें कई ऐसे पुरुष थे, जिनकी पत्नियों के सिंदूर हमेशा के लिए उजड़ गए। भारत ने 7 मई को “ऑपरेशन सिंदूर” शुरू किया, जिसका नाम उन महिलाओं के सम्मान में रखा गया, जिनके पति आतंकवाद की भेंट चढ़े। लेकिन 10 मई को घोषित संघर्ष विराम ने जनता के मन में सवाल खड़े कर दिए: क्या यह ऑपरेशन अधूरा रह गया? क्या भारत ने अमेरिका की मध्यस्थता को जल्दबाजी में स्वीकार कर लिया?
ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारतीय सेना ने पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में 9 आतंकी ठिकानों को नष्ट किया, जिसमें 100 से अधिक आतंकवादी मारे गए। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा, “हमने आतंकियों को करारा जवाब दिया, बिना किसी नागरिक नुकसान के।” भारतीय वायुसेना के राफेल जेट्स और S-400 रक्षा प्रणालियों ने पाकिस्तान के ड्रोन और मिसाइल हमलों को नाकाम किया। बावजूद इसके, पाकिस्तान ने 8 और 9 मई को जम्मू-कश्मीर, पंजाब, और राजस्थान में हमले किए, जिसमें 15 नागरिक और कई जवान शहीद हुए।
संघर्ष विराम और अमेरिका की भूमिका
10 मई को भारत और पाकिस्तान ने अमेरिका की मध्यस्थता में संघर्ष विराम की घोषणा की। विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने कहा कि दोनों देशों के सैन्य संचालन महानिदेशकों (DGMO) ने शाम 5 बजे से सभी सैन्य कार्रवाइयाँ रोकने पर सहमति जताई। हालांकि, भारत ने स्पष्ट किया कि यह समझौता दोनों देशों की सीधी बातचीत से हुआ, न कि अमेरिकी दबाव से। लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इसे अपनी मध्यस्थता का परिणाम बताया। सवाल ये पैदा होता है कि जब भारत आतंकवाद के खिलाफ इतनी मजबूती से लड़ रहा था, तो संघर्ष विराम क्यों स्वीकार किया गया? पाहलगाम हमले के जिम्मेदार आतंकियों के चेहरे चिह्नित हैं। भारत ने अमेरिका के सामने यह शर्त क्यों नहीं रखी कि पाकिस्तान इन आतंकियों को सौंपे? अगर ऑपरेशन सिंदूर सही था, तो इसे आधे रास्ते में क्यों रोका गया? और अगर गलत था, तो इतना नुकसान क्यों करवाया गया?
पाकिस्तान का दुस्साहस
संघर्ष विराम के कुछ ही घंटों बाद, पाकिस्तान ने फिर से नियंत्रण रेखा (LoC) पर गोलीबारी शुरू कर दी। जम्मू-कश्मीर के उरी, अखनूर, बारामूला, और राजस्थान के बाड़मेर में ड्रोन हमले और गोलीबारी की खबरें आईं। श्रीनगर में रात बड़े विस्फोट हुए, जिसके बाद ब्लैकआउट लागू करना पड़ा। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने X पर लिखा, “यह कैसा संघर्ष विराम है? श्रीनगर में विस्फोटों की आवाज़ सुनाई दी!” भारतीय सेना ने इसका जवाब देते हुए सियालकोट के लूनी में एक आतंकी लॉन्च पैड को नष्ट किया। यह साफ है कि पाकिस्तान ने भारत की शांति की पहल का दुरुपयोग किया।
जनता का आक्रोश
भारतीय जनता में भारी गुस्सा है। पाहलगाम हमले में मारे गए लोगों की पत्नियाँ आज भी न्याय की आस में हैं। उनके आँसू अभी सूखे नहीं, और संघर्ष विराम ने उनके जख्मों पर नमक छिड़क दिया। जनता पूछ रही है: “जब हमारे जवान शहीद हुए, लाखों लोग ब्लैकआउट और प्रतिबंधों से जूझे, तो यह लड़ाई क्यों शुरू की गई? और अगर शुरू की, तो बिना आतंकियों को सजा दिए क्यों रोकी गई?” पंजाब, राजस्थान, और जम्मू-कश्मीर में स्कूल बंद रहे, 90 उड़ानें रद्द हुईं, और 43 लोग घायल हुए। क्या यह सब व्यर्थ गया?
भारत की ताकत: तब और अब
भारत कभी कमजोर नहीं रहा। 1971 में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारत ने पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर किया, बांग्लादेश को आजादी दिलाई। आज भी हमारी सेना का हौसला और ताकत अटूट है। कर्नल सोफिया कुरैशी ने कहा, “पाकिस्तान के दावे कि उन्होंने हमारे S-400 या ब्रह्मोस ठिकानों को नुकसान पहुँचाया, पूरी तरह झूठे हैं।” भारतीय सेना ने लाहौर तक जवाबी हमले किए, बिना नागरिकों को नुकसान पहुँचाए। लेकिन जनता की माँग है कि सरकार सेना को पूरी आजादी दे। जैसा कि एक नागरिक ने कहा, “हमारे जवानों को सिर्फ आदेश चाहिए, बाकी वे संभाल लेंगे।
आतंकवादियों को सौंपने की माँग
विशेषज्ञों और जनता का मानना है कि भारत को संघर्ष विराम से पहले यह शर्त रखनी चाहिए थी कि पाकिस्तान पाहलगाम हमले के जिम्मेदार आतंकियों को सौंपे। AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, “जब तक पाकिस्तान अपनी जमीन से आतंकवाद को खत्म नहीं करता, स्थायी शांति संभव नहीं।” अगर भारत ने यह शर्त रखी होती, तो पाकिस्तान पर दबाव बढ़ता और वह दोबारा संघर्ष विराम तोड़ने की हिम्मत नहीं करता।
सोशल मीडिया पर नफरत की निंदा
इस तनाव के बीच, सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने भारतीय मुसलमानों के खिलाफ नफरत भरे कमेंट्स किए, जैसे “पाकिस्तान को जलाने” या “मुसलमानों को निशाना बनाने” की बातें। यह निंदनीय है। भारतीय सेना में हर धर्म के जवान कंधे से कंधा मिलाकर लड़ते हैं। शहीद लांस नायक दिनेश कुमार जैसे सैनिकों ने देश के लिए बलिदान दिया। ऐसी नफरत देश की एकता को कमजोर करती है और उन शहीदों का अपमान है जो हमारी रक्षा करते हैं।
आगे की राह
भारत ने हमेशा शांति की वकालत की है, लेकिन इसका मतलब कमजोरी नहीं। सरकार को जनता के आक्रोश को समझना होगा। जिन महिलाओं के सिंदूर उजड़े, उनके लिए न्याय सुनिश्चित करना होगा। पाकिस्तान को यह समझना चाहिए कि भारत की चुप्पी उसकी ताकत है। सरकार को सेना को हथियार, संसाधन, और निर्णय लेने की पूरी आजादी देनी चाहिए। जैसा कि 1971 में इंदिरा गांधी ने दिखाया, भारत जानता है कि दुश्मन को कैसे सबक सिखाया जाता है। आज भी हमारी सेना और जनता तैयार हैं। बस जरूरत है दृढ़ इच्छाशक्ति की।