लखनऊ,11 अप्रैल। वक्फ संशोधन बिल के कानून बनने के बाद शुरू हुए विरोध प्रदर्शनों ने मुस्लिम समुदाय के बीच गहरी नाराजगी को उजागर किया है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड और कई मुस्लिम विद्वानों व धर्मगुरुओं ने इस कानून को असंवैधानिक और धार्मिक मामलों में अनुचित हस्तक्षेप करार दिया है। उत्तर प्रदेश सहित पूरे भारत में इस बिल के खिलाफ धरने और प्रदर्शन हो रहे हैं, जिनमें लखनऊ के बड़े इमामबाड़े की आसिफी मस्जिद में जुमे की नमाज के बाद आज प्रदर्शन हुआ । इस शांतिपूर्ण प्रदर्शन में हजारों शिया समुदाय के लोगों ने हिस्सा लिया और बैनरों व नारों के माध्यम से अपनी आपत्तियां दर्ज कीं।
प्रदर्शनकारियों की मुख्य मांगें और तर्क
प्रदर्शनकारियों ने वक्फ संशोधन बिल को वक्फ संपत्तियों पर कब्जे की साजिश करार दिया। इसके अलावा, उन्होंने केंद्र सरकार से सऊदी अरब की सरकार पर दबाव डालने की मांग की, ताकि जन्नतुल बकी में पैगंबर साहब की बेटी हजरत फातिमा और इमामों की मजारों का पुनर्निर्माण हो सके। उन्होंने यह भी प्रस्ताव रखा कि यदि सऊदी सरकार अनुमति दे, तो मुस्लिम समुदाय अपने खर्चे पर इन मजारों की तामीर करेगा। मौलाना कल्बे जव्वाद नकवी और मौलाना रजा हुसैन जैसे धर्मगुरुओं ने प्रदर्शन का नेतृत्व किया।
मौलाना कल्बे जव्वाद ने अपने संबोधन में कहा कि यह बिल पारदर्शिता या सुधार के नाम पर लाया गया है, लेकिन इसका असल उद्देश्य वक्फ की जमीनों को हड़पना है। उन्होंने बिल के समर्थन में दिए गए तर्कों को खारिज करते हुए कहा,
बिल के समर्थकों का दावा है कि वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसले अंतिम होने के कारण, पारदर्शिता की कमी होने के कारण और महिलाओं की भागीदारी न होने के कारण ये नया कानून बनाया गया है।
उन्होंने कहा कि अब वक़्फ़ की संपत्ति पर कलेक्ट्रेट को अधिकार दिया गया है, अगर कोई शिकायत वक़्फ़ की संपत्ति की जिलाधिकारी के पास जाती है तो जिलाधिकारी सबसे पहले उस संपत्ति को वक़्फ़ नहीं मानेगा जो की बिल्कुल गलत कानून है।
मौलाना ने इस मामले पर कहा,पहले भी ट्रिब्यूनल के फैसलों को हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती थी। कई मामलों में ऐसा हुआ भी है। इसलिए, डीएम को यह अतिरिक्त अधिकार देना अनावश्यक और संदिग्ध है। उन्होंने कहा कि यह प्रावधान वक्फ संपत्तियों को गैर-वक्फ घोषित करने और उन्हें हड़पने की राह आसान बनाता है।
उन्होंने कहा कि बिल में यह दावा किया गया कि वक्फ बोर्ड में मुस्लिम महिलाओं की भागीदारी नहीं है, और यह कानून उनकी भागीदारी सुनिश्चित करेगा। मौलाना ने इसे पूरी तरह निराधार बताया। उन्होंने उदाहरण दिया कि उत्तर प्रदेश सहित देश के कई वक्फ बोर्डों में महिलाएं न केवल सदस्य रही हैं, बल्कि मुतवल्ली (ट्रस्टी) और कुछ राज्यों में अध्यक्ष भी बनी हैं। उत्तर प्रदेश के रामपुर से एक महिला सांसद वक्फ बोर्ड की सदस्य रही हैं। इसलिए, यह आरोप तथ्यों से परे है और केवल बिल को जायज ठहराने का बहाना है।
उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि बिल में कहा गया है कि वक्फ बोर्ड में पारदर्शिता की कमी के कारण यह संशोधन जरूरी है। मौलाना ने इस दावे को भी खारिज करते हुए कहा कि वक्फ बोर्ड पहले से ही नियमों के तहत काम करते हैं, और उनकी कार्यप्रणाली में कोई बड़ी खामी नहीं थी जिसके लिए इतना बड़ा बदलाव जरूरी हो। उन्होंने जोर देकर कहा कि अगर पारदर्शिता बढ़ानी थी, तो मौजूदा ढांचे में सुधार किए जा सकते थे, न कि बोर्ड की स्वायत्तता पर हमला करके डीएम जैसे बाहरी अधिकारियों को संपत्तियों पर फैसला करने का अधिकार दिया जाए।
वक्फ संपत्तियों की धार्मिक प्रकृति:
मौलाना ने यह भी तर्क दिया कि वक्फ संपत्तियां वे हैं जो लोग अपनी खरीदी हुई जमीन को अल्लाह के नाम पर दान करते हैं। यह पूरी तरह धार्मिक कार्य है, और इसलिए वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों को शामिल करना अनुचित और धार्मिक स्वायत्तता के खिलाफ है। उन्होंने इसे मजहबी मामलों में दखलअंदाजी करार दिया और कहा कि यह बिल वक्फ की मूल भावना को कमजोर करता है।
जन्नतुल बकी का मुद्दा
मौलाना रजा हुसैन ने अपने संबोधन में जन्नतुल बकी के मजारों के पुनर्निर्माण की मांग को प्रमुखता दी। उन्होंने कहा कि सऊदी अरब में पैगंबर की बेटी और इमामों की मजारों को तोड़ा गया, जो मुस्लिम समुदाय के लिए गहरे दुख का विषय है। उन्होंने केंद्र सरकार से अपील की है कि वह सऊदी सरकार पर दबाव बनाए,ताकि इन मजारों का पुनर्निर्माण हो सके। यदि यह संभव न हो, तो मुस्लिम समुदाय को अपने संसाधनों से यह कार्य करने की अनुमति दी जाए। उन्होंने इसे न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक और भावनात्मक मुद्दा बताया, जो विश्व भर के मुसलमानों के लिए महत्वपूर्ण है।
व्यापक आंदोलन की चेतावनी
यह आंदोलन केवल लखनऊ तक सीमित नहीं है। पूरे भारत में मुस्लिम समुदाय इस कानून को वापस लेने की मांग कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट में भी इसकी वैधानिकता को चुनौती दी गई है, और कई याचिकाएं दायर हो चुकी हैं। प्रदर्शनकारी चेतावनी दे रहे हैं कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो वे देशव्यापी आंदोलन को और तेज करेंगे। मौलाना सैफ अब्बास ने कहा कि यह कानून न केवल वक्फ संपत्तियों को खतरे में डालता है, बल्कि मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्वायत्तता और पहचान पर भी हमला है।