लखनऊ ,9 अप्रैल। लखनऊ में आज विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति और अन्य संगठनों के नेतृत्व में हजारों बिजली कर्मचारी और अभियंताओं विशाल प्रदर्शन किया। ये प्रदर्शन पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (PVVNL) और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (DVVNL) के निजीकरण के प्रस्ताव के खिलाफ था। प्रदर्शन की शुरुआत हाइडिल फील्ड हॉस्टल से हुई, जहां से कर्मचारियों ने रैली निकाली और शक्ति भवन तक पहुंचे। शक्ति भवन, जो उत्तर प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन (UPPCL) का मुख्यालय है, वहां भारी भीड़ ने निजीकरण के खिलाफ नारेबाजी की और सरकार से इस फैसले को वापस लेने की मांग की।
प्रदर्शन में थीं हाथों में तख्तियां ,बैनर और निजीकरण की खिलाफ थे ज़बान पर नारे
कर्मचारियों ने हाथों में तख्तियां और बैनर लिए थे, जिन पर लिखा था – “निजीकरण बंद करो”, “बिजली जनता की, निजी कंपनियों की नहीं”, और “न बंटेंगे, न बिकेंगे”। रैली में काली पट्टियां बांधकर और मानव श्रृंखला बनाकर विरोध जताया गया।
प्रदेशभर के कर्मचारियों ने निभाई अपनी भागीदारी
लखनऊ में यह प्रदर्शन सिर्फ स्थानीय कर्मचारियों तक सीमित नहीं था। वाराणसी, आगरा, मेरठ, कानपुर, गोरखपुर, प्रयागराज जैसे शहरों से भी बड़ी संख्या में कर्मचारी और इंजीनियर शामिल हुए।
मज़बूत थी सुरक्षा व्यवस्था
प्रदर्शन को देखते हुए लखनऊ में भारी पुलिस बल तैनात किया गया था। शक्ति भवन के आसपास बैरिकेड्स लगाए गए, और प्रशासन ने किसी भी अप्रिय घटना से निपटने के लिए कड़े व्यापक इंतजाम किए थे।
देशभर में समर्थन
यह प्रदर्शन केवल उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं रहा। नेशनल कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इम्प्लॉइज एंड इंजीनियर्स (NCCOEEE) के आह्वान पर देश के कई राज्यों ने इसे समर्थन दिया। चेन्नई में हुई एक बैठक में यह फैसला लिया गया था कि 9 अप्रैल को लखनऊ में होने वाले इस प्रदर्शन में देशभर से प्रतिनिधि शामिल होंगे।
10 राज्यों का मिला है समर्थन
खबरों के मुताबिक, कम से कम 10 राज्यों (जैसे राजस्थान, चंडीगढ़, महाराष्ट्र, तमिलनाडु आदि) के बिजली संगठनों के पदाधिकारियों ने इस आंदोलन का समर्थन किया और अपने-अपने क्षेत्रों में भी समानांतर प्रदर्शन किए।
ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (AIPEF) के चेयरमैन शैलेंद्र दुबे ने कहा कि अगर निजीकरण की प्रक्रिया नहीं रुकी, तो यह आंदोलन पूरे देश में फैल सकता है, जिसमें हड़ताल और बिजली आपूर्ति ठप करने जैसे कदम भी शामिल हो सकते हैं।
आइए जाने विरोध के कारण
बिजली कर्मचारी और संगठन निजीकरण के खिलाफ इसलिए है क्योंकि, कर्मचारियों का कहना है कि निजीकरण से 68,000 से ज्यादा नौकरियां खतरे में पड़ेंगी। संविदा कर्मियों की छंटनी और नियमित कर्मचारियों को रिवर्ट करने की आशंका है।
यूनियन का दावा है कि निजी कंपनियां मुनाफे के लिए बिजली की दरें बढ़ाएंगी। मुंबई और दिल्ली जैसे शहरों का उदाहरण देते हुए कहा गया कि वहां निजीकरण के बाद दरें 15-18 रुपये प्रति यूनिट तक पहुंच गईं, जबकि यूपी में अभी 6-8 रुपये हैं।
सरकारी संपत्ति को निजी हाथों में सौंपने की साजिश का आरोप
कर्मचारी इसे सरकारी संपत्ति को निजी हाथों में सौंपने की साजिश मानते हैं। चंडीगढ़ में 22,000 करोड़ की संपत्ति को 871 करोड़ में बेचे जाने का हवाला दिया गया।
किसानों और गरीबों पर असर
मुफ्त बिजली और सब्सिडी खत्म होने की आशंका से किसान और गरीब उपभोक्ता प्रभावित होंगे। हालांकि
उत्तर प्रदेश सरकार और UPPCL प्रबंधन का कहना है कि निजीकरण से घाटे में चल रहे बिजली वितरण निगमों को फायदा होगा। उनका तर्क है कि निजी कंपनियां तकनीकी सुधार और निवेश लाएंगी, जिससे बिजली चोरी और वितरण हानियां कम होंगी।
सरकार ने यह भी कहा कि कर्मचारियों के हितों की रक्षा की जाएगी, लेकिन यूनियन इन वादों पर भरोसा नहीं कर रही।
आंदोलन की चेतावनी
प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी दी है कि अगर सरकार ने निजीकरण की प्रक्रिया को रोका नहीं, तो अनिश्चितकालीन हड़ताल और बड़े पैमाने पर आंदोलन शुरू होगा।
लखनऊ में हुआ बिजली कर्मचारियों का यह प्रदर्शन एक ऐतिहासिक घटना बन गया है। यह न केवल कर्मचारियों की एकजुटता को दर्शाता है, बल्कि निजीकरण जैसे बड़े नीतिगत फैसले पर जनता और सरकार के बीच तनाव को भी उजागर करता है।