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वक्फ संशोधन बिल के विरुद्ध वोट देकर सांसदों ने बचाई लोकतांत्रिक देश की परिभाषा

ज़की भारतीय के कलम से✍️

मुस्लिम वक्फ संशोधन बिल – एक नया अध्याय और चुनौतियां

मुस्लिम वक्फ संशोधन बिल, जिसने हाल ही में लोकसभा और राज्यसभा में अपनी यात्रा पूरी की है, अब भारतीय राजनीति और समाज में एक नए विवाद और बहस का केंद्र बन चुका है। यह बिल दोनों सदनों से पारित हो चुका है, और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की अगुवाई वाली केंद्र सरकार और उसके सहयोगी दलों ने इसे सर्वसम्मति से बहुमत की मोहर प्रदान कर दी है। अब यह विधेयक राष्ट्रपति के सम्मुख प्रस्तुत होने के लिए तैयार है, जहां उनकी स्वीकृति के बाद यह औपचारिक रूप से कानून का रूप ले लेगा। लेकिन इस प्रक्रिया के बीच मुस्लिम समुदाय में एक गहरी चिंता और हताशा व्याप्त है। आइए, इस बिल के विभिन्न पहलुओं, इसके प्रभाव और इससे जुड़े तर्क-वितर्क पर एक नजर डालें।

बिल का पारित होना: एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया

मुस्लिम वक्फ संशोधन बिल को लोकसभा में 288 मतों के समर्थन और 232 मतों के विरोध के साथ पारित किया गया, जबकि राज्यसभा में 236 सदस्यों में से 121 ने इसके पक्ष में और 85 ने विरोध में वोट दिया। इन आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि इस बिल को रोकने के लिए विपक्ष ने भरपूर प्रयास किया, लेकिन भाजपा और उसके सहयोगियों के पूर्ण बहुमत के सामने यह संभव नहीं हो सका। फिर भी, विरोधी मतों की संख्या यह दर्शाती है कि भारत में सेकुलर विचारधारा के समर्थक अभी भी मजबूत हैं और मुस्लिम समुदाय के प्रति उनकी संवेदनशीलता बरकरार है। यह भारत के लोकतांत्रिक ढांचे की जीवंतता को भी उजागर करता है।

भाजपा का दृष्टिकोण: पारदर्शिता या छिपा एजेंडा?

भाजपा और केंद्र सरकार का दावा है कि यह बिल वक्फ संपत्तियों में पारदर्शिता, जवाबदेही और महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए लाया गया है। उनका कहना है कि इस कानून के जरिए वक्फ संपत्तियों पर अवैध कब्जों को रोकना, उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना और अन्य समुदायों को भी इसमें शामिल करना उनका उद्देश्य है। सरकार इसे वक्फ हित में एक कदम बताती है। लेकिन मुस्लिम समुदाय इसे एक अलग नजरिए से देखता है। उनके लिए यह बिल भविष्य में उनकी संपत्तियों को खतरे में डालने वाला कदम है। यह सवाल उठता है कि क्या यह पारदर्शिता का प्रयास है या इसके पीछे कोई छिपा हुआ एजेंडा काम कर रहा है?

मुस्लिम समुदाय की चिंताएं: संपत्ति का भय

मुस्लिम समुदाय में यह आशंका गहरी है कि यह कानून उनकी वक्फ संपत्तियों को कमजोर करेगा। अभी यह बिल कानून की शक्ल भी नहीं ले पाया है, लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जिलाधिकारियों को वक्फ संपत्तियों की जांच शुरू करने और सरकारी अभिलेखों में दर्ज न होने वाली संपत्तियों को अपने नियंत्रण में लेने के निर्देश दे दिए हैं। इससे यह संकेत मिलता है कि सरकार इस कानून को लागू करने में कोई देरी नहीं करना चाहती। मुस्लिम संगठनों का मानना है कि इससे उनकी धार्मिक और सामुदायिक संपत्तियों पर संकट मंडरा रहा है। एक संगठन के अध्यक्ष ने समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव के उस बयान का समर्थन किया, जिसमें उन्होंने संसद में कहा था कि केंद्र सरकार को पहले भारत की उस जमीन पर ध्यान देना चाहिए, जिस पर चीन कब्जा कर रहा है, न कि वक्फ की जमीनों पर नजर गड़ाने की जरूरत है।

विपक्ष का रुख: सेकुलरिज्म की मिसाल

विपक्षी दलों, खासकर सेकुलर सांसदों ने इस बिल के खिलाफ मजबूती से आवाज उठाई। अखिलेश यादव जैसे नेताओं ने इसे संसद में जोरदार तरीके से चुनौती दी और मुस्लिम समुदाय के हितों को सामने रखा। राज्यसभा और लोकसभा में विरोधी मतों की संख्या यह दर्शाती है कि भारत में अभी भी ऐसे लोग मौजूद हैं जो धर्मनिरपेक्षता और समानता के सिद्धांतों को जीवित रखना चाहते हैं। यह मुस्लिम समुदाय के लिए एक उम्मीद की किरण है कि वे इस लोकतंत्र में अकेले नहीं हैं।

भविष्य की राह: चुनौतियां और संभावनाएं

मुस्लिम वक्फ संशोधन बिल के लागू होने से निश्चित रूप से कई बदलाव आएंगे। एक तरफ सरकार इसे सुधार के रूप में पेश कर रही है, वहीं दूसरी तरफ मुस्लिम समुदाय इसे अपने अधिकारों पर हमले के रूप में देख रहा है। इस कानून का असली प्रभाव तो इसके लागू होने के बाद ही सामने आएगा, लेकिन अभी से यह स्पष्ट है कि यह समाज में एक गहरे ध्रुवीकरण को जन्म दे सकता है। मुस्लिम समुदाय को यह भी विचार करना होगा कि पूर्ण बहुमत वाली सरकार के सामने उनकी आवाज को मजबूत करने के लिए नए रास्ते तलाशने होंगे।

लोकतंत्र का इम्तिहान

भारत एक लोकतांत्रिक देश है, और यह बिल उसकी लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा है। लेकिन यह भी सच है कि लोकतंत्र में बहुमत के साथ-साथ अल्पमत की चिंताओं को सुनना जरूरी होता है। मुस्लिम वक्फ संशोधन बिल न केवल एक कानून है, बल्कि यह भारत के सेकुलर और समावेशी चरित्र का इम्तिहान भी है। आने वाला समय बताएगा कि यह कानून वक्फ संपत्तियों के लिए वरदान साबित होता है या अभिशाप। तब तक, यह बहस और विचार-मंथन का दौर जारी रहेगा।

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