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वक़्फ़ के नए क़ानून के गुब्बारे की निकाली जा रही है सुप्रीम कोर्ट में हवा

न्याय की कैची, अन्याय के नए क़ानून के परों को काट कर ही दम लेगी

लखनऊ, 17 अप्रैल। सुप्रीम कोर्ट में आज वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 के खिलाफ दायर 72 याचिकाओं पर सुनवाई हुई। कोर्ट ने केंद्र सरकार से विधेयक के कुछ प्रावधानों पर स्पष्टीकरण मांगा और इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 18 अप्रैल 2025 की तारीख तय की। यह विधेयक मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता और संपत्ति अधिकारों को लेकर गहन विवाद का विषय बना हुआ है।
यह मामला धार्मिक स्वतंत्रता, संपत्ति अधिकार, और संवैधानिक समानता के सवालों को जन्म दे रहा है।

सुप्रीम कोर्ट की अगली सुनवाई में सरकार के जवाब और याचिकाकर्ताओं की दलीलों पर विचार होगा। इस विधेयक का राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव व्यापक हो सकता है, और सभी की नजरें कोर्ट के अंतिम फैसले पर टिकी हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने किए केंद्र सरकार से इन मुद्दों पर सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने आज वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 की संवैधानिकता पर विचार करते हुए केंद्र सरकार से सवाल किया कि वक्फ बोर्ड और वक्फ काउंसिल में दो गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति न्यूनतम आवश्यकता है या अधिकतम। कोर्ट ने मौखिक रूप से यह भी कहा कि उपयोगकर्ता या न्यायालय द्वारा घोषित वक्फ संपत्तियों को अधिसूचित नहीं किया जाएगा। इस मामले में अगली सुनवाई कल, 18 अप्रैल को होगी, जिसमें सरकार को अपने जवाब पेश करने होंगे।

विपक्ष की ओर से दी गईं दलीलें

याचिकाकर्ताओं, जिनमें AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जमीयत उलमा-ए-हिंद, DMK, और कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी शामिल हैं, ने विधेयक को संविधान के अनुच्छेद 14, 25, 26, और 29 का उल्लंघन बताया।

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल के तर्क

कपिल सिब्बल के तर्क दिया कि यह विधेयक धार्मिक समुदायों के अपने मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता को छीनता है। राजीव धवन ने इसे इस्लाम की आंतरिक व्यवस्था के खिलाफ बताया, जबकि अभिषेक मनु सिंघवी ने संसद भवन की जमीन को वक्फ संपत्ति बताए जाने की अफवाह का जिक्र किया।

सरकार की ओर से रखा गया पक्ष

केंद्र सरकार ने विधेयक का बचाव करते हुए कहा कि यह वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के लिए है। केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने पहले दावा किया था कि यह कानून मुसलमानों के खिलाफ नहीं है, बल्कि वक्फ बोर्ड की अनियंत्रित शक्तियों को सीमित करने और अवैध कब्जों को रोकने के लिए है। सरकार ने 8 अप्रैल को कैविएट दायर कर कोर्ट से अनुरोध किया था कि कोई आदेश पारित करने से पहले उसका पक्ष सुना जाए।
प्रस्तावित बदलाव और प्रतिबंध: विधेयक में कई अहम बदलाव शामिल हैं, जैसे:
1.वक्फ बोर्ड बिना जांच के संपत्ति को वक्फ घोषित नहीं कर सकेंगे।

2.सरकारी जमीन अब वक्फ संपत्ति नहीं मानी जाएगी।

3.वक्फ काउंसिल और बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों और दो महिलाओं की नियुक्ति अनिवार्य होगी।

4.संपत्ति विवादों का फैसला जिला कलेक्टर की रिपोर्ट के आधार पर होगा।

5.नई वक्फ संपत्तियों का रजिस्ट्रेशन और सत्यापन अनिवार्य होगा।

यह मामला धार्मिक स्वतंत्रता, संपत्ति अधिकार, और संवैधानिक समानता के सवालों को उठा रहा है। सुप्रीम कोर्ट की अगली सुनवाई में सरकार के जवाब और याचिकाकर्ताओं की दलीलों पर विचार होगा। इस विधेयक का राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव व्यापक हो सकता है, और सभी की नजरें कोर्ट के अंतिम फैसले पर टिकी हैं।

 

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