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लखनऊ के चौक में अवैध बिल्डिंग पर LDA की चली कार्रवाई की चाबुक

लखनऊ, 8 मई । लखनऊ विकास प्राधिकरण (LDA) ने चौक थाना क्षेत्र में एक अवैध व्यावसायिक बिल्डिंग को देर रात सील कर दिया, जिससे स्थानीय बिल्डरों में हड़कंप मच गया। यह बिल्डिंग, जिसका नाम “शाही प्लाज़ा” है, बिना स्वीकृत नक्शे के बन रही थी। सूत्रों के अनुसार, यह बिल्डिंग बिल्डर मोहम्मद रियाज़ की थी, जो पिछले दो वर्षों से निर्माणाधीन थी। LDA की इस कार्रवाई ने अवैध निर्माण और प्रशासनिक लापरवाही पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।

कार्रवाई का विवरण

LDA के उपाध्यक्ष के आदेश पर एक विशेष टीम ने चौक की तंग गलियों में छापेमारी की। जाँच में पता चला कि “शाही प्लाज़ा” का नक्शा स्वीकृत नहीं था, और बिल्डिंग में अनधिकृत फ्लोर्स जोड़े गए थे। बिल्डिंग को सील करने के साथ-साथ बिल्डर के खिलाफ FIR दर्ज की गई। यह कार्रवाई स्थानीय निवासियों की शिकायतों के बाद हुई, जिन्होंने सड़क अतिक्रमण और सुरक्षा खतरों की बात उठाई थी।
लेकिन सवाल यह है कि जब बिल्डिंग का निर्माण शुरू हुआ, तब LDA के क्षेत्रीय निरीक्षक और सर्वेयर कहाँ थे? सूत्र बताते हैं कि LDA के कुछ कर्मचारी, जैसे ज़ोनल इंस्पेक्टर और सर्वेयर नियमित दौरा करते हैं, लेकिन अवैध निर्माण पर चुप्पी साध लेते हैं। इसके पीछे रिश्वतखोरी का खेल बताया जाता है। बिल्डर प्रति मंजिल के हिसाब से “सेटलमेंट” करते हैं, जिसके बाद निर्माण बेरोकटोक चलता है। जब बिल्डिंग पूरी हो जाती है, तो दूसरा समूह वसूली के लिए सक्रिय हो जाता है। यह समूह RTI के ज़रिए जानकारी जुटाता है और फिर बिल्डर से मोटी रकम माँगता है। रकम न मिलने पर शिकायत LDA के उच्च अधिकारियों तक पहुँचती है, और तब जाकर कार्रवाई होती है।पिछली कार्रवाइयाँ: लखनऊ में हाल के वर्षों में कई अवैध बिल्डिंगों पर LDA ने कार्रवाई की। 2024 में गोमती नगर के “रॉयल टॉवर्स” और हजरतगंज के “प्राइम कॉम्प्लेक्स” को सील किया गया था। इन मामलों में भी नक्शा स्वीकृति और NOC की कमी थी। विशेषज्ञों का कहना है कि LDA की प्रक्रियाएँ जटिल हैं, जिसके चलते बिल्डर अवैध निर्माण को प्राथमिकता देते हैं। सबसे बड़ा नुकसान उन लोगों का होता है, जो अपनी मेहनत की कमाई से फ्लैट या दुकान खरीदते हैं। “शाही प्लाज़ा” में कई फ्लैट बिक चुके थे, और खरीदारों को अब अनिश्चितता का सामना करना पड़ रहा है। एक खरीदार, रमेश गुप्ता, ने कहा, “हमने 50 लाख रुपये का फ्लैट खरीदा, लेकिन अब बिल्डिंग सील है। बिल्डर गायब है।” ऐसे मामलों में बिल्डर अक्सर फरार हो जाते हैं, और खरीदार बुलडोजर की मार झेलते हैं।समाधान की ज़रूरत: विशेषज्ञों का मानना है कि LDA को नक्शा स्वीकृति और NOC की प्रक्रिया को सरल करना चाहिए। एक महीने के भीतर नक्शा स्वीकृत करने और कंपाउंडिंग चार्ज जमा करने की समय-सीमा तय होनी चाहिए। अगर कोई अधिकारी जानबूझकर देरी करता है, तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई हो। अवैध बिल्डिंगों को नियमित करने का मौका देना चाहिए। कंपाउंडिंग चार्ज और NOC के ज़रिए बिल्डिंग को वैध किया जा सकता है, जिससे सरकार का राजस्व बढ़ेगा और खरीदारों का नुकसान रुकेगा।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को इस मुद्दे पर ध्यान देना होगा। अगर बिल्डिंग नियमों को सरल किया जाए और पारदर्शिता लाई जाए, तो अवैध निर्माण रुक सकते हैं। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि खरीदारों की मेहनत की कमाई बर्बाद न हो। बुलडोजर चलाना अंतिम उपाय होना चाहिए, न कि पहला कदम।
लखनऊ में अवैध निर्माण एक पुरानी समस्या है, जिसका समाधान केवल सख्ती से नहीं, बल्कि सुधार और पारदर्शिता से संभव है। सरकार, LDA और बिल्डरों को मिलकर ऐसी व्यवस्था बनानी होगी, जिसमें न बिल्डर का नुकसान हो, न सरकार का, और न ही आम लोगों का।

 

 

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