लखनऊ, 13 अप्रैल।संसद में राणा सांगा को “गद्दार” कहने वाले समाजवादी पार्टी (सपा) के सांसद रामजी लाल सुमन के बयान के बाद करणी सेना ने आगरा और वाराणसी में हिंसक प्रदर्शन किए। आगरा में 26 मार्च 2025 को करणी सेना के कार्यकर्ताओं ने सांसद के आवास पर हमला किया, जिसमें तोड़फोड़, पथराव और कुर्सियां फेंकने की घटनाएं हुईं। पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प में कई लोग घायल हुए, जिनमें दर्जनभर पुलिसकर्मी और सपा के आठ समर्थक शामिल हैं।
वाराणसी में 12 अप्रैल 2025 को सपा नेता हरीश मिश्रा पर हमला हुआ, जिसमें वे और दो अन्य लोग घायल हो गए। करणी सेना ने इन हमलों को सांगा के अपमान का जवाब बताया।
अखिलेश यादव ने करणी सेना को “बीजेपी की सेना” बताया
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने इन हमलों की निंदा करते हुए करणी सेना को “बीजेपी की सेना” करार दिया और योगी आदित्यनाथ को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि सपा अपने कार्यकर्ताओं के साथ मजबूती से खड़ी है और दलित-पिछड़ा -अल्पसंख्यक (PDA) एकजुटता को और मजबूत करेगी।
असलहों के प्रदर्शन और साम्प्रदायिक तनाव की चिंता
करणी सेना के हालिया प्रदर्शनों, विशेष रूप से 12 अप्रैल 2025 को आगरा में आयोजित “रक्त स्वाभिमान सम्मेलन” में, कार्यकर्ताओं ने तलवारें और हथियार लहराए, जिससे तनाव बढ़ा। यह केवल करणी सेना तक सीमित नहीं है। सोशल मीडिया पर कई वीडियो सामने आए हैं, जिनमें मस्जिदों के बाहर जुलूसों में लोग लाठी-डंडों और हथियारों का खुला प्रदर्शन कर रहे हैं। कुछ प्रदर्शनकारी डीजे पर आपत्तिजनक नारे और मुस्लिम-विरोधी गाली-गलौज करते दिखे। ये घटनाएं उत्तर प्रदेश ही नहीं, पूरे देश के लिए खतरे की घंटी हैं।ऐसे प्रदर्शन साम्प्रदायिक तनाव को भड़का सकते हैं। सवाल ये उठता है कि यदि एक पक्ष लगातार मस्जिदों के बाहर उकसाने वाली हरकतें करता रहा और अभद्र नारेबाजी जारी रखी, तो दूसरा पक्ष कब तक चुप रहेगा? यदि मुस्लिम समुदाय भी जवाब में हथियार उठाने या एकजुट होने की राह चुनता है, तो देश में अशांति और हिंसा का माहौल बन सकता है। इससे सामाजिक सौहार्द को गंभीर नुकसान होगा और इसका असर 2027 के विधानसभा चुनावों तक दिख सकता है।
कट्टर पंथियों की तरह यदि मुस्लिम समुदाय ने भी असलहे लहराना शुरू किए तो देश में फैलेगी अशांति
योगी सरकार से सख्ती की मांग करने वाले लोगों का कहना है, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने संभल हिंसा (दिसंबर 2024) जैसी घटनाओं में उपद्रवियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए थे, लेकिन असलहों के खुले प्रदर्शन और साम्प्रदायिक तनाव भड़काने वाले प्रदर्शनों पर अभी तक कोई ठोस कदम नहीं दिखा। यदि सरकार ने जल्दी कार्रवाई नहीं की, तो ऐसे प्रदर्शन बढ़ सकते हैं, जो कानून-व्यवस्था के लिए चुनौती बनेंगे। करणी सेना और अन्य समूहों को कानून अपने हाथ में लेने की छूट नहीं दी जानी चाहिए। उन्हें शांतिपूर्ण प्रदर्शन और FIR जैसे कानूनी रास्ते अपनाने चाहिए। योगी सरकार को चाहिए कि हथियारों के प्रदर्शन, उकसावे वाली नारेबाजी और मस्जिदों के बाहर होने वाले प्रदर्शनों पर तुरंत रोक लगाए। पुलिस को सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो की जांच कर दोषियों पर कार्रवाई करनी चाहिए।
राणा सांगा विवाद और असलहों के प्रदर्शन ने उत्तर प्रदेश में तनाव को बढ़ा दिया है। यह केवल सपा और करणी सेना का मसअला नहीं, बल्कि सामाजिक एकता का सवाल है। योगी आदित्यनाथ को निष्पक्ष और सख्त कार्रवाई करनी होगी, ताकि हथियारों का प्रदर्शन और उकसाने वाली हरकतें रुकें। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो साम्प्रदायिक तनाव बढ़ेगा, जिसके लिए जिम्मेदार वो होंगे जो अबतक चुप हैं। सरकार, पुलिस और दोनों पक्षों को संयम और कानूनी रास्ते अपनाकर इस संकट को टालना होगा, वरना देश में अशांति का खतरा बढ़ सकता है।