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ट्रंप की तेहरान खाली करने की धमकी पर ईरान का जवाब, कहा अपने सैनिकों के लिए 50 हज़ार ताबूतो का रखना इंतेज़ाम

लखनऊ, 17 जून । मध्य पूर्व में बढ़ते तनाव के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कनाडा में आयोजित G7 शिखर सम्मेलन को एक दिन पहले ही छोड़कर वाशिंगटन लौटने का सनसनीखेज फैसला लिया। इस दौरान उन्होंने ईरान की राजधानी तेहरान को तुरंत खाली करने की कड़ी चेतावनी दी, जिसने वैश्विक स्तर पर हलचल मचा दी है। ट्रंप के इस बयान के पीछे उनका मकसद क्या है? क्या अमेरिका इजरायल के समर्थन में ईरान पर सैन्य हमले की तैयारी कर रहा है? क्या यह चेतावनी ईरान को डराने की रणनीति है, या यह तीसरे विश्व युद्ध की आहट है? आइए, इस खबर को विस्तार से समझते हैं।

G7 समिट और ट्रंप की वापसी

17 जून 2025 को कनाडा में चल रहे G7 शिखर सम्मेलन में सभी सदस्य देशों (अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, और ब्रिटेन) ने इजरायल के प्रति खुला समर्थन जताया और ईरान पर परमाणु हथियार विकसित न करने का दबाव बनाया। G7 नेताओं ने कहा कि ईरान क्षेत्रीय अस्थिरता का कारण बन रहा है और उसे परमाणु हथियार बनाने का अधिकार नहीं है। इस बीच, ट्रंप ने अचानक घोषणा की कि वे मध्य पूर्व में बढ़ते तनाव के कारण समिट को बीच में छोड़कर वापस लौट रहे हैं। व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने कहा कि ट्रंप “कई अहम मुद्दों पर ध्यान देने” के लिए वाशिंगटन लौट रहे हैं।ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर पोस्ट किया, “सभी को तुरंत तेहरान खाली कर देना चाहिए! ईरान को मेरे द्वारा सुझाए गए समझौते को स्वीकार करना चाहिए था। यह कितनी शर्मनाक बात है, और मानव जीवन की बर्बादी है। मैंने बार-बार कहा है कि ईरान को परमाणु हथियार नहीं मिलना चाहिए।

ट्रंप की इस चेतावनी के पीछे कई संभावित मकसद हो सकते हैं लेकिन ट्रंप का यह कदम इजरायल के प्रति अमेरिका की अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाता है। इजरायल और ईरान के बीच पिछले पांच दिनों से लगातार हमले हो रहे हैं, जिसमें इजरायल ने ईरान के परमाणु ठिकानों को निशाना बनाया है। ट्रंप ने पहले भी कहा है कि अमेरिका इजरायल का “नंबर वन सहयोगी” है और ईरान के खिलाफ उसके हमलों की जानकारी थी। अमेरिका ने मध्य पूर्व में B-2 स्टील्थ बॉम्बर्स और नौसैनिक बेड़े तैनात किए हैं, जो संभावित सैन्य कार्रवाई की ओर इशारा करते हैं।

अमेरिकी विदेश मंत्री ने कहा था कि इजरायल के हाल के हालातों पर हमारा ध्यान गया है और हम इसमें शामिल नहीं थे, लेकिन क्षेत्र में अपनी सेनाओं की सुरक्षा प्राथमिकता है। ट्रंप ने भी कहा, “देखते हैं क्या होता है,” जो उनकी रणनीति में अनिश्चितता को बनाए रखता है।

ईरान ने डरने के बजाय कड़ा रुख अपनाया है

ट्रंप की चेतावनी के बावजूद, ईरान ने डरने के बजाय कड़ा रुख अपनाया है। ईरान ने इजरायल पर जवाबी हमले किए हैं, जिसमें तेल अवीव में अमेरिकी दूतावास पर मिसाइलें गिरीं। ईरान ने यह भी चेतावनी दी है कि वह अमेरिकी ठिकानों को निशाना बना सकता है। ईरान के सर्वोच्च नेता ने कहा है कि वे अपने परमाणु कार्यक्रम को नागरिक हितों के लिए चला रहे हैं, लेकिन अमेरिका और इजरायल के “षडयंत्र” का जवाब देंगे।ईरान को रूस और चीन जैसे देशों का परोक्ष समर्थन मिला है, जो G7 के फैसले की निंदा कर चुके हैं। हालांकि, रूस यूक्रेन युद्ध और चीन अपने व्यापारिक हितों के कारण सीधे युद्ध में शामिल होने से बच रहे हैं। फिर भी, अगर अमेरिका ने ईरान पर हमला किया, तो ईरान के साथ उसके क्षेत्रीय सहयोगी जैसे हिजबुल्लाह और हौती विद्रोही भी जवाब दे सकते हैं, जिससे क्षेत्रीय युद्ध का दायरा बढ़ सकता है।

तीसरे विश्व युद्ध का खतरा?

ट्रंप की चेतावनी और अमेरिका की सैन्य तैनाती ने तीसरे विश्व युद्ध की आशंकाओं को हवा दी है। X पर कई यूजर्स ने इसे “विश्व युद्ध की आहट” करार दिया। चीन द्वारा अपने नागरिकों को तेल अवीव छोड़ने की सलाह और भारत द्वारा 74 भारतीय सिखों को ईरान से निकालने जैसे कदम इस तनाव की गंभीरता को दर्शाते हैं।हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप का यह कदम युद्ध से ज्यादा डिप्लोमेसी का हिस्सा है। फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैन्यूल मैक्रों ने दावा किया था कि ट्रंप इजरायल और ईरान के बीच युद्धविराम की कोशिश कर रहे हैं, हालांकि ट्रंप ने इसे खारिज करते हुए कहा कि मैक्रों को उनके इरादों की पूरी जानकारी नहीं है। ट्रंप ने पहले भारत और भारत के बीच सीजफायर कराने का दावा किया था, जिसे वह इस मामले में दोहरा सकते हैं।

अमेरिका की तबाही का जोखिम

अगर अमेरिका युद्ध में कूदता है, तो उसे भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। ईरान ने जिस तरह इजरायल को जवाब दिया है, उसी तरह वह अमेरिका के खिलाफ भी आक्रामक रुख अपना सकता है। ईरान की बैलिस्टिक मिसाइल क्षमता और क्षेत्रीय सहयोगियों की मौजूदगी अमेरिका के लिए चुनौती है। यदि रूस और चीन जैसे देश अप्रत्यक्ष रूप से ईरान का साथ देते हैं, तो यह संघर्ष वैश्विक स्तर पर फैल सकता है।इसके अलावा, मध्य पूर्व में युद्ध से तेल की कीमतें आसमान छू सकती हैं, जिसका असर भारत जैसे देशों की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा। संयुक्त राष्ट्र की आपात बैठक में कोई ठोस फैसला न हो पाना इस तनाव की जटिलता को दर्शाता है।
हालांकि ट्रंप के बयान पर ईरान संसद की नेशनल सिक्योरिटी कमेटी के डिप्टी चेयरमैन महमूद नबिवयान ने कहा है,”हमारे लिए अमेरका के सैन्य ठिकानों पर हमला करना, इज़रायल पर हमले से भी आसान है। अगर अमेिरका ने ईरान पर हमला किया , तो उसे अपने सिनेकों के लिए 50, 000 ताबूत तैयार रखने होंगे।

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