HomeINDIAजानिए वक्फ के नए कानून पर सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ?

जानिए वक्फ के नए कानून पर सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ?

लखनऊ 16 अप्रैल। सुप्रीम कोर्ट में वक्फ (संशोधन) विधेयक की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली 73 से अधिक याचिकाओं पर आज सुनवाई हुई। सुनवाई मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की तीन जजों की पीठ द्वारा दोपहर 2 बजे से की गई। हालांकि, इस दिन कोई अंतिम फैसला नहीं हुआ, और कोर्ट ने सुनवाई को 17 अप्रैल 2025 (गुरुवार) दोपहर 2 बजे तक के लिए स्थगित कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाइयाँ और टिप्पणियाँ

सुनवाई का दायरा और याचिकाओं की जांच

कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से विधेयक की उन विशिष्ट धाराओं पर ध्यान केंद्रित करने को कहा, जिन्हें वे असंवैधानिक मानते हैं। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने स्पष्ट किया कि कोर्ट सभी याचिकाओं के तर्कों को विस्तार से सुनेगा, लेकिन सुनवाई को व्यवस्थित और केंद्रित रखना जरूरी है।

कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि क्या वह हिंदू धार्मिक ट्रस्टों में मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने की अनुमति देने को तैयार है, जिससे विधेयक में गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड में शामिल करने के प्रावधान की तुलना की जा सके।

वक्फ-बाय-यूजर पर सवाल

कोर्ट ने “वक्फ-बाय-यूजर” की अवधारणा को हटाने पर चिंता जताई, जिसके तहत लंबे समय से धार्मिक उद्देश्यों के लिए उपयोग की जाने वाली संपत्तियों को वक्फ माना जाता था। मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा, “ऐसे वक्फ-बाय-यूजर को कैसे रजिस्टर किया जाएगा? उनके पास कौन से दस्तावेज होंगे? इससे कई वास्तविक वक्फ संपत्तियों को नुकसान हो सकता है।”
कोर्ट ने एक अंतरिम आदेश का प्रस्ताव दिया (हालांकि इसे पारित नहीं किया गया) कि जिन संपत्तियों को कोर्ट ने पहले वक्फ घोषित किया है, उन्हें वक्फ-बाय-यूजर हो या डीड द्वारा, डी-नोटिफाई (वक्फ की स्थिति से हटाया) नहीं किया जाएगा।

हिंसा पर चिंता

मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने विधेयक के पारित होने के बाद पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद और त्रिपुरा के उनाकोटी जैसे स्थानों पर हुई हिंसा की निंदा की और इसे “बेहद परेशान करने वाला” बताया।

केंद्र को जवाब देने का निर्देश

कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया और कहा कि वह याचिकाओं का जवाब दाखिल करे। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि केंद्र दो सप्ताह में जवाब दाखिल करेगा।

मामले को हाई कोर्ट में न भेजने का फैसला

याचिकाकर्ताओं के वकील, जैसे वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंहवी, ने तर्क दिया कि यह मामला पूरे देश को प्रभावित करता है, इसलिए इसे सुप्रीम कोर्ट में ही सुना जाना चाहिए, न कि हाई कोर्ट में भेजा जाना चाहिए। कोर्ट ने इस पर सहमति जताई और कहा कि उनके पास तीन विकल्प हैं: (1) सुप्रीम कोर्ट में फैसला करना, (2) मामले को एक हाई कोर्ट में भेजना, या (3) हाई कोर्ट की याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में लाकर फैसला करना। फिलहाल, कोर्ट ने मामले को अपने पास रखने का फैसला किया।

वक्फ बोर्ड की तुलना अन्य धार्मिक निकायों से

कोर्ट ने चर्चा की कि वक्फ बोर्ड एक वैधानिक निकाय (statutory body) है, न कि विशुद्ध धार्मिक निकाय, जैसा कि हिंदू या सिख धार्मिक ट्रस्ट हो सकते हैं। मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने कहा कि अनुच्छेद 26 (धार्मिक मामलों के प्रबंधन का अधिकार) इस मामले में कानून बनाने से संसद को नहीं रोकता, क्योंकि यह सभी धर्मों पर समान रूप से लागू होता है।

याचिकाकर्ताओं के प्रमुख तर्क कपिल सिबल

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिबल ने कहा कि गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद में शामिल करना अनुच्छेद 26 का उल्लंघन है। उन्होंने तर्क दिया कि यह कानून 20 करोड़ मुस्लिमों की धार्मिक आस्था पर “संसदीय अतिक्रमण” है। उन्होंने धारा 3(आर) का हवाला दिया, जिसमें वक्फ बनाने के लिए पांच साल तक इस्लाम का अभ्यास करने की शर्त है, और कहा, “अगर मैं जन्म से मुस्लिम हूँ, तो मुझे यह साबित क्यों करना पड़ेगा?”
वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने कहा कि वक्फ-बाय-यूजर इस्लाम की स्थापित प्रथा है, और इसे हटाया नहीं जा सकता।
अभिषेक सिंहवी ने तर्क दिया कि जिला कलेक्टर जैसे सरकारी अधिकारियों को वक्फ संपत्तियों की स्थिति तय करने का अधिकार देना “प्राकृतिक न्याय” के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि 8 लाख वक्फ संपत्तियों में से अधिकांश वक्फ-बाय-यूजर हैं, और इस प्रावधान को हटाने से ये संपत्तियाँ खतरे में पड़ जाएँगी।

केंद्र सरकार का पक्ष

केंद्र ने कोर्ट में एक कैविएट दायर किया है, ताकि कोई आदेश पारित होने से पहले उनकी बात सुनी जाए। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह विधेयक वक्फ संपत्तियों में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के लिए है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि अगर कोई मुस्लिम वक्फ के बजाय अन्य तरीके से दान करना चाहता है, तो यह कानून उसे ऐसा करने की सुविधा देता है।
सात भाजपा शासित राज्य (राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, महाराष्ट्र, असम, उत्तराखंड, और छत्तीसगढ़) ने विधेयक के समर्थन में हस्तक्षेप याचिकाएँ दायर की हैं। राजस्थान ने तर्क दिया कि नया कानून संपत्तियों को वक्फ घोषित करने से पहले 90 दिन का सार्वजनिक नोटिस अनिवार्य करता है, जो पारदर्शिता सुनिश्चित करता है।

अगली सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 17 अप्रैल 2025 को दोपहर 2 बजे निर्धारित की है। कोर्ट ने संकेत दिया कि वह याचिकाकर्ताओं और केंद्र के तर्कों को और विस्तार से सुनेगा। कोई अंतरिम आदेश अभी तक पारित नहीं किया गया है, लेकिन कोर्ट ने वक्फ-बाय-यूजर संपत्तियों की सुरक्षा के लिए एक अंतरिम आदेश पर विचार करने की बात कही है।

यह अलग बात है, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अभी कोई अंतिम फैसला नहीं दिया है, लेकिन उसने कई महत्वपूर्ण सवाल उठाए हैं, खासकर वक्फ-बाय-यूजर, गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति, और सरकारी हस्तक्षेप के मुद्दों पर। अगली सुनवाई में केंद्र के जवाब और याचिकाकर्ताओं के अतिरिक्त तर्कों पर विचार किया जाएगा।

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