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जन्नतुल बक़ी के पुनर्निर्माण के लिए मौलाना यासूब के नेतृत्व में हुआ प्रदर्शन

लखनऊ, 7 अप्रैल। आज लखनऊ के शहीद स्मारक पर शिया समुदाय ने मौलाना यासूब अब्बास की अगुवाई में सऊदी अरब सरकार के खिलाफ एक शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन का मुख्य उद्देश्य जन्नतुल बक़ी कब्रिस्तान के पुनर्निर्माण की मांग करना था, जिसे सऊदी अरब में ध्वस्त कर दिया गया था। प्रदर्शनकारियों ने काले कपड़े पहने और काली पट्टियाँ बाँधीं, जो उनके शोक और विरोध का प्रतीक थीं। मौलाना यासूब अब्बास ने कहा कि जन्नतुल बक़ी में पैगंबर हजरत मोहम्मद (स.अ.व.) की बेटी हजरत फातिमा ज़हरा और कई इमामों के रौज़े (मकबरे) मौजूद थे, जिन्हें नष्ट कर दिया गया। उन्होंने भारत सरकार से अपील की कि वह सऊदी अरब पर दबाव बनाए ताकि इन पवित्र स्थानों का फिर से निर्माण हो सके।
प्रदर्शन के दौरान शिया समुदाय ने जन्नतुल बक़ी की तबाही को इस्लामी इतिहास और धरोहर पर हमला करार दिया। मौलाना यासूब अब्बास ने अपने संबोधन में कहा कि यह सिर्फ शिया समुदाय का नहीं, बल्कि पूरी मुस्लिम दुनिया का मुद्दा है। प्रदर्शन में शामिल लोगों ने नारे लगाए और तख्तियाँ उठाईं, जिन पर जन्नतुल बक़ी के पुनर्निर्माण की मांग लिखी थी।

जन्नतुल बक़ी को किसने और क्यों ढहाया?

जन्नतुल बक़ी, जो मदीना (सऊदी अरब) में स्थित एक ऐतिहासिक कब्रिस्तान है, इस्लाम के शुरुआती दौर से ही महत्वपूर्ण रहा है। यहाँ पैगंबर हजरत मोहम्मद (स.अ.व.) की बेटी हजरत फातिमा ज़हरा, उनके कई परिजन और चार शिया इमामों – इमाम हसन, इमाम ज़ैनुल आबिदीन, इमाम मोहम्मद बाक़िर और इमाम जाफर सादिक के रौज़े/मकबरे थे। इन मकबरों को 20वीं सदी में सऊदी शासकों द्वारा ध्वस्त कर दिया गया। यह घटना सऊदी अरब के पहले शासक अब्दुल अज़ीज़ इब्न सऊद (शाह सऊद) के शासनकाल में हुई, जिसने 1925 में इस क्षेत्र पर कब्जा किया था।
जन्नतुल बक़ी को ढहाने का काम दो चरणों में हुआ था, पहला 1806 में और दूसरा 1925-26 में। यह वास्तव में वहाबी विचारधारा के प्रभाव में किया गया, जो उस समय सऊदी शासकों की धार्मिक नीति का हिस्सा थी। वहाबी मत के अनुसार, मकबरों और रौज़ों का निर्माण शिर्क (ईश्वर का साझीदार ठहराना) माना जाता है। इस विचारधारा के तहत, सऊदी शासकों ने जन्नतुल बक़ी में मौजूद सभी मकबरों को तोड़ दिया और उसे एक साधारण कब्रिस्तान में बदल दिया। इस कार्रवाई का उद्देश्य धार्मिक स्थलों की पूजा को रोकना और इस्लाम को “शुद्ध” रूप में लागू करना था, जैसा कि वहाबी विद्वानों ने व्याख्या की थी। हालाँकि, इस कदम की शिया और सुन्नी समुदाय के एक बड़े हिस्से ने कड़ी आलोचना की, क्योंकि इसे इस्लामी इतिहास और पैगंबर के परिवार की विरासत पर हमला माना गया।

दुनिया भर में जन्नतुल बक़ी के पुनर्निर्माण के लिए प्रदर्शन

जन्नतुल बक़ी के पुनर्निर्माण की मांग लंबे समय से शिया समुदाय और कुछ अन्य मुस्लिम संगठनों द्वारा उठाई जा रही है। 7 अप्रैल 2025 को इस मुद्दे पर दुनिया भर में कई जगहों पर प्रदर्शन हुए। इनमें लखनऊ के शहीद स्मारक पर मौलाना यासूब अब्बास के नेतृत्व में प्रदर्शन हुआ।
उत्तर प्रदेश के उन्नाव में भी शिया मुस्लिम समुदाय ने सऊदी सरकार के खिलाफ विरोध दर्ज कराया और जन्नतुल बक़ी के पुनर्निर्माण की मांग की।

यही नहीं इराक़ के करबला में शिया समुदाय ने बड़े पैमाने पर रैलियाँ निकालीं, जिसमें हज़रत फातिमा और इमामों के मकबरों को फिर से बनाने की अपील की गई।

ईरान के तेहरान में भी शिया धार्मिक नेताओं ने प्रदर्शन का नेतृत्व किया और सऊदी नीतियों की निंदा की।

वहीं लंदन में रहने वाले शिया समुदाय ने सऊदी दूतावास के बाहर शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया।
अमेरिका के न्यूयॉर्क में भी शिया संगठनों ने सड़क पर उतरकर जन्नतुल बक़ी की बहाली की मांग की।
ये प्रदर्शन आमतौर पर हर साल शव्वाल महीने की 8 तारीख को आयोजित किए जाते हैं, क्योंकि 1925 में इसी दिन जन्नतुल बक़ी को दूसरी बार ध्वस्त किया गया था। आज के प्रदर्शन भी इसी ऐतिहासिक घटना की याद में आयोजित किए गए। शिया समुदाय का मानना है कि जन्नतुल बक़ी का पुनर्निर्माण उनकी धार्मिक भावनाओं और इस्लामी विरासत के सम्मान का प्रतीक होगा।

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