जकी भारतीय
लखनऊ, 8 अप्रैल। वक्फ संशोधन बिल के कानून बनने के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ वक़्फ़ की उन संपत्तियों को सरकार के नियंत्रण में लेने के लिए जल्दी में नजर आ रहे हैं जिन संपत्तियों का रिकॉर्ड रेवेन्यू विभाग में नहीं होगा।
वक्फ बोर्ड की संपत्तियों पर योगी सरकार की नजर, जानिए क्या है मालिकाना हक का सच?
उत्तर प्रदेश में शिया और सुन्नी वक्फ बोर्ड की संपत्तियों को लेकर योगी सरकार ने बड़ा कदम उठाया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सभी जिलाधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि वक्फ बोर्ड की उन संपत्तियों की जांच की जाए, जिनका राजस्व विभाग के अभिलेखों में कोई रिकॉर्ड नहीं है। इस कदम के बाद सवाल उठ रहे हैं कि क्या सरकार का यह फैसला सिर्फ मुस्लिम समुदाय को निशाना बना रहा है या यह सभी धार्मिक संपत्तियों पर लागू होगा?
वक्फ बोर्ड और राजस्व विभाग के आंकड़े
सुन्नी वक्फ बोर्ड के पास 1,24,355 और शिया वक्फ बोर्ड के पास 7,785 संपत्तियां दर्ज हैं। लेकिन राजस्व विभाग के रिकॉर्ड में सुन्नी वक्फ बोर्ड की सिर्फ 2,533 और शिया वक्फ बोर्ड की 430 संपत्तियां ही पंजीकृत हैं। इसका मतलब है कि करीब 98% संपत्तियों का राजस्व अभिलेखों में कोई उल्लेख नहीं है। योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में एक बयान में कहा, “राजस्व विभाग के अनुसार, कुल 2,963 वक्फ संपत्तियां ही वैध रूप से दर्ज हैं। बाकी संपत्तियां अवैध तरीके से वक्फ घोषित की गई हैं, जिनमें तालाब, खलिहान और ग्राम समाज की जमीनें शामिल हैं।”
मालिकाना हक का सवाल
वक्फ संपत्तियां वे होती हैं, जो कोई व्यक्ति धार्मिक या सामाजिक उद्देश्य के लिए वक्फ बोर्ड को दान करता है। दानकर्ता अपनी संपत्ति का मालिकाना हक छोड़ देता है, और यह वक्फ बोर्ड के नियंत्रण में आ जाती है। वक्फ बोर्ड में इन संपत्तियों का खसरा-खतौनी या अभिलेख दर्ज होता है, लेकिन अगर राजस्व विभाग में इनका रिकॉर्ड नहीं है, तो क्या सरकार इन्हें अपने नियंत्रण में ले सकती है? विशेषज्ञों का कहना है कि अगर दानकर्ता के पास मालिकाना हक के वैध दस्तावेज थे और वक्फ बोर्ड में इसे दर्ज किया गया, तो इसे अवैध घोषित करना कानूनी रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
क्या सिर्फ मुसलमानों पर लागू होगा कानून?
यह सवाल भी उठ रहा है कि अगर सरकार ऐसी संपत्तियों पर नियंत्रण लेती है, तो क्या यह कानून सिर्फ वक्फ बोर्ड यानी मुस्लिम समुदाय पर लागू होगा? उत्तर प्रदेश में कई हिंदू मंदिर, अनाथालय और धार्मिक स्थल हैं, जिनका राजस्व अभिलेखों में रिकॉर्ड नहीं है, लेकिन वे सामुदायिक उपयोग में हैं। क्या सरकार इन पर भी कार्रवाई करेगी? अभी तक सरकार की ओर से इस बारे में कोई स्पष्ट जवाब नहीं आया है।
योगी के बयान पर पक्षपात का आरोप
योगी आदित्यनाथ ने कहा, “सार्वजनिक संपत्तियों पर वक्फ बोर्ड के मनमाने दावे अब बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे। अवैध संपत्तियों को चिह्नित कर कार्रवाई होगी।” इस बयान के बाद विपक्ष ने सरकार पर एकतरफा कार्रवाई का आरोप लगाया है। समाजवादी पार्टी के नेता फखरुल हसन चांद ने कहा, “यह मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने की साजिश है। हिंदू मंदिरों और ट्रस्टों की ऐसी संपत्तियों पर कोई बात क्यों नहीं हो रही?”
क्या साबित करना चाहते हैं योगी?
विश्लेषकों का मानना है कि वक्फ संशोधन विधेयक 2025 के पारित होने के बाद योगी सरकार इस मुद्दे को लेकर सख्त रुख अपना रही है। लेकिन अगर यह कार्रवाई सिर्फ वक्फ संपत्तियों तक सीमित रही, तो इसे पक्षपात के तौर पर देखा जा सकता है। सवाल यह भी है कि क्या सरकार का मकसद अवैध अतिक्रमण हटाना है या धार्मिक आधार पर राजनीतिक संदेश देना है।
क्या है न्यायसंगत?
वक्फ बोर्ड की संपत्तियों को लेकर सख्ती और मंदिरों की भूमि पर नरमी का अंतर सवाल उठाता है। अगर सरकार वक्फ की अनदर्ज संपत्तियों को ले सकती है, तो मंदिरों की ऐसी ही भूमियों पर क्यों कार्रवाई नहीं होती? यह असमानता तब और स्पष्ट होती है जब देखा जाता है कि वक्फ की जमीन को “अल्लाह का मालिकाना” माना जाता है, जबकि मंदिरों की जमीन पर सरकार सीधे नियंत्रण रखती है। न्याय की दृष्टि से दोनों पर एक समान नियम लागू होने चाहिए। अगर रिकॉर्ड न होने पर वक्फ की संपत्ति सरकार ले सकती है, तो मंदिरों के मामले में भी ऐसा ही होना चाहिए, या फिर दोनों को छूट मिलनी चाहिए।
कानूनी प्रक्रिया और सबूत भी जरूरी है
वक्फ बोर्ड और मंदिरों की संपत्तियों का मामला कानून, इतिहास और सामाजिक संदर्भों से जुड़ा है। सरकार के पास दोनों पर कब्जा करने का अधिकार है, लेकिन यह कदम उठाने से पहले कानूनी प्रक्रिया और सबूत जरूरी हैं। असली सवाल यह है कि क्या यह नीति सभी धर्मों के लिए समान रूप से लागू होगी, या सिर्फ एक समुदाय को निशाना बनाया जाएगा? यह विचारणीय है कि न्याय तभी संभव है जब नियम सब पर एक समान लागू हों।
फिलहाल, जांच का काम शुरू हो चुका है और आने वाले दिनों में यह साफ होगा कि सरकार का यह कदम कितना निष्पक्ष और कानूनसम्मत है।