लखनऊ ,संवाददाता | एक अप्रैल से 30 सितंबर के बीच जनगणना के पहले चरण के दौरान एनपीआर (नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर) के आंकड़े जुटाए जाने शुरू हो जाएंगे और कई राज्यों ने मई से जून के बीच इसके लिए समय भी तय कर दिया है। इसके पहले एनपीआर के सवालों को अंतिम रूप देकर सभी जनगणनाकर्मियों तक पहुंचाना होगा।सूत्रों की मानें तो पिछले तीन-चार दशकों के दौरान काम के सिलसिले में देश के भीतर एक से दूसरी जगह प्रवास तेजी से बढ़ा है। आर्थिक विकास के साथ-साथ इसमें और तेज़ी आने की संभावना है। एनपीआर के लिए आंकड़े जुटाने के लिए पूछे जाने वाले प्रश्नों को लेकर विपक्ष के साथ-साथ कुछ सहयोगी दलों की आपत्तियों के बावजूद सरकार उन सवालों को हटाने को तैयार नहीं दिख रही है,जिन प्रश्नों को लेकर विपक्ष तैय्यार नहीं है । हालाँकि केंद्र सरकार जल्द ही आपत्ति जताने वाले राज्यों के मुख्यमंत्रियों व अन्य सियासी दलों को नए सिरे से इसके बारे में समझाने का प्रयास करेगी। एनपीआर के तहत माता-पिता के जन्म-स्थान व जन्म-तिथि पूछे जाने पर विपक्षी दल सवाल उठा रहे हैं और यही नहीं बिहार सरकार ने तो बाक़ाएदा साफ कर दिया है कि 2010 के प्रश्नों के अनुसार ही वह एनपीआर का डाटा इकठ्ठा करेगी ।
सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी की माने तो राजनीतिक कारणों से भले ही कुछ राज्य सरकारें और पार्टियां माता-पिता के जन्म-स्थान व जन्म-तिथि के सवाल को हटाने की मांग कर रहे हों, लेकिन इसके रहने से कोई नुकसान नहीं है ,बल्कि इस कालम के हटने से जो लोग अपने माता पिता के जन्म स्थान का पता बताना चाहेंगे तो उनके लिए कालम न होने से परेशानी उत्पन्न होगी |बताया गया है कि अगर कोई किसी सवाल का जवाब नहीं देता है तो उसे भविष्य में भी किसी तरह की हानि नहीं होगी। लेकिन अगर देता है तो सरकार को योजना बनाने में आसानी होगी। दरअसल विपक्षी राज्यों ने जहां एक तरफ से एनपीआर कराने से भी मना कर दिया है। वहीं हाल में बिहार विधानसभा ने भी प्रस्ताव पारित किया है |