लखनऊ, 10 मई। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 10 मई को ट्रुथ सोशल पर घोषणा की कि भारत और पाकिस्तान ने अमेरिका की मध्यस्थता में “पूर्ण और तत्काल” युद्धविराम पर सहमति जताई है। भारत के विदेश मंत्रालय ने इसकी पुष्टि की, और पाकिस्तान ने भी इसे स्वीकार किया। लेकिन युद्धविराम की शर्तों पर कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है, खासकर पहलगाम हमले (22 अप्रैल 2025) के दोषी आसिफ मुनीर या भारत की वांछित सूची के आतंकवादियों जैसे हाफिज सईद और मसूद अजहर की सुपुर्दगी को लेकर।
क्या यह युद्धविराम भारत की कूटनीतिक हार है ?
22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 लोग मारे गए, जिनमें 25 हिंदू पर्यटक और एक स्थानीय मुस्लिम शामिल थे। भारत ने लश्कर-ए-तैयबा की सहयोगी द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) और पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया। जवाब में, भारत ने 6-7 मई को ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया, जिसमें भारतीय वायुसेना ने 23 मिनट में पाकिस्तान और PoK में नौ आतंकी ठिकानों को नष्ट किया। सूत्रों के अनुसार, जैश-ए-मोहम्मद के अब्दुल रऊफ अजहर समेत 5 बड़े आतंकवादी मारे गए। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दावा किया कि 100 आतंकवादी ढेर हुए, जबकि पाकिस्तान ने 31 नागरिकों के मारे जाने की बात कही।24 अप्रैल से 10 मई तक सीमा पर गोलाबारी और ड्रोन हमले जारी रहे। भारत ने अपने हवाई क्षेत्र को बंद कर दिया, जिससे दोनों देशों को आर्थिक नुकसान हुआ। लेकिन 10 मई को अचानक युद्धविराम की घोषणा ने कई सवाल खड़े किए।युद्धविराम की शर्तों का अभाव रॉयटर्स और भारत के विदेश मंत्रालय ने युद्धविराम की पुष्टि की, लेकिन शर्तों का कोई विवरण नहीं दिया। आतंकवादियों की सुपुर्दगी, खासकर पहलगाम हमले के सरगनाओं की, पर कोई आधिकारिक बयान नहीं है। विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने 7 मई को कहा था कि पाकिस्तान आतंकवादी जांचों में टालमटोल करता रहा है, लेकिन युद्धविराम पर उनकी चुप्पी सवाल उठाती है। X पर भारतीय उपयोगकर्ताओं ने मांग की कि पाकिस्तान को आसिफ मुनीर और अन्य आतंकवादियों को सौंपना होगा, वरना यह युद्धविराम बेकार है।
अमेरिका की मध्यस्थता: कूटनीति या दबाव?
ट्रम्प ने युद्धविराम को अपनी कूटनीतिक जीत बताया, लेकिन भारत जैसे स्वतंत्र देश को क्या तीसरे देश की मध्यस्थता की जरूरत थी? सूत्रों के अनुसार, अमेरिका ने क्षेत्रीय स्थिरता और अपने आर्थिक हितों के लिए यह कदम उठाया। पाकिस्तान ने युद्धविराम के लिए पहले संपर्क किया, जो दर्शाता है कि वह दबाव में था। लेकिन आतंकवादियों की सुपुर्दगी के बिना यह दबाव अधूरा रह गया। भारत ने पहले कश्मीर मुद्दे पर ट्रम्प की मध्यस्थता को ठुकराया था। इस बार सहमति से सवाल उठता है कि क्या भारत ने अमेरिका के दबाव में यह फैसला लिया?
क्या मिला इस युद्ध विराम से?
ऑपरेशन सिंदूर ने जैश और लश्कर जैसे आतंकी संगठनों को कमजोर किया। यदि भारत यह दबाव बनाए रखता, तो पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी संगठन नष्ट हो सकते थे। लेकिन बिना शर्त युद्धविराम से डर है कि पाकिस्तान भविष्य में फिर से आतंकवाद को बढ़ावा देगा। अप्रैल 2025 में तहव्वुर राणा का अमेरिका से प्रत्यर्पण भारत की कूटनीतिक जीत थी, लेकिन पाकिस्तान का इतिहास आतंकवादियों को बचाने का रहा है। यदि युद्धविराम में आतंकवादियों की सुपुर्दगी की शर्त नहीं थी, तो यह भारत के शहीदों और जनता के बलिदान के खिलाफ है।भारत की नई नीति और भविष्य 10 मई को भारत ने घोषणा की कि अब किसी भी आतंकी कार्रवाई को युद्ध माना जाएगा। यदि यह नीति युद्धविराम की शर्तों का हिस्सा थी, तो यह भारत की मजबूती दर्शाती है। लेकिन अभी तक युद्धविराम की शर्तों की सरकारी पुष्टि नहीं हुई है। यदि यह युद्धविराम अमेरिका के दबाव में और बिना शर्त हुआ, तो यह भारतीय नागरिकों के मनोबल को कमजोर कर सकता है। ऑपरेशन सिंदूर में शहीद हुए सैनिकों और पहलगाम हमले के पीड़ितों का बलिदान तब तक अधूरा रहेगा, जब तक पाकिस्तान आतंकवादियों को सजा नहीं देता।
आतंकवादियों की सुपुर्दगी के बिना यह समझौता अधूरा
युद्धविराम ने तनाव को अस्थायी रूप से कम किया, लेकिन आतंकवादियों की सुपुर्दगी के बिना यह समझौता अधूरा है। पाकिस्तान जैसे देश को फिर से आतंकवाद को पनपने में देर नहीं लगेगी। भारत को अब वैश्विक मंच पर पाकिस्तान को बेनकाब करना होगा और अपनी नई नीति को सख्ती से लागू करना होगा। अभी के लिए, यह युद्धविराम भारत की स्वतंत्र नीति और संप्रभुता के लिए एक चुनौती है।