HomeArticleआगामी बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में बदलते समीकरण और जनता का रुझान

आगामी बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में बदलते समीकरण और जनता का रुझान

संपादकीय

डॉक्टर आमना रिज़वी

बिहार में 2025 के विधानसभा चुनाव की सरगर्मी तेज हो चुकी है। नवंबर 2025 में मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होने से पहले होने वाले इस चुनाव में सत्ता की दौड़ रोमांचक होने वाली है। नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए और तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महागठबंधन के बीच मुख्य मुकाबला है, लेकिन कांग्रेस और अन्य छोटे दलों के उभरते प्रभाव ने समीकरण को जटिल बना दिया है। सवाल यह है कि जनता का रुझान किस ओर जाएगा, और क्या मुस्लिम मतदाता, जो बिहार की सियासत में निर्णायक भूमिका निभाते हैं, किसी गठबंधन से दूरी बनाएंगे?नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का एनडीए गठबंधन विकास और स्थिरता के एजेंडे पर जोर दे रहा है। नीतीश ने 2024 में एनडीए की बैठक में 220 से अधिक सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है, जो उनकी सरकार के कामकाज पर आत्मविश्वास दर्शाता है। हालांकि, बार-बार गठबंधन बदलने के कारण उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं। खासकर वक्फ संशोधन विधेयक जैसे मुद्दों पर एनडीए की चुप्पी ने मुस्लिम मतदाताओं में असंतोष पैदा किया है। बिहार में मुस्लिम आबादी, जो लगभग 17% है, पारंपरिक रूप से राजद और कांग्रेस की ओर झुकती रही है। लेकिन नीतीश की मुस्लिम समुदाय के बीच कुछ हद तक स्वीकार्यता रही है, क्योंकि उनकी सरकार ने सामाजिक न्याय और विकास के लिए काम किया है। फिर भी, विधेयक पर उनकी खामोशी और बीजेपी के साथ गठजोड़ उन्हें इस वोट बैंक से दूर कर सकता है।दूसरी ओर, तेजस्वी यादव और उनकी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने युवा नेतृत्व और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर जोर देकर लोकप्रियता हासिल की है। हाल के सर्वे में तेजस्वी को 37% समर्थन के साथ मुख्यमंत्री पद के लिए पसंदीदा बताया गया, जबकि नीतीश को केवल 18% समर्थन मिला। महागठबंधन में राजद के साथ कांग्रेस की स्थिति भी मजबूत हो रही है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा और सामाजिक समावेश की विचारधारा ने बिहार के युवाओं और अल्पसंख्यक समुदायों में नई उम्मीद जगाई है। कांग्रेस इस बार अधिक सीटों पर दावेदारी ठोक रही है और कुछ नेताओं के बयानों से संकेत मिलता है कि वह अकेले भी चुनाव लड़ने को तैयार है। यह रणनीति महागठबंधन को मजबूत कर सकती है, लेकिन आंतरिक समन्वय की कमी इसे नुकसान भी पहुंचा सकती है।मुस्लिम मतदाताओं का रुझान इस बार निर्णायक होगा। वक्फ संशोधन विधेयक के विरोध में बिहार में असंतोष साफ दिख रहा है। बीजेपी और उसके सहयोगी दलों की चुप्पी इस समुदाय को महागठबंधन की ओर धकेल सकती है, खासकर जब राजद और कांग्रेस इस मुद्दे को जोर-शोर से उठा रहे हैं। AIMIM की बिहार इकाई ने भी महागठबंधन के साथ गठबंधन की इच्छा जताई है, जो मुस्लिम वोटों को और एकजुट कर सकता है। हालांकि, नीतीश कुमार की जेडीयू कुछ अति पिछड़ी जातियों और मुस्लिम समुदाय के एक हिस्से में अब भी अपनी पकड़ बनाए हुए है, जिसे पूरी तरह नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।क्या नीतीश फिर पाला बदलेंगे? तेजस्वी यादव ने साफ कर दिया है कि महागठबंधन के दरवाजे उनके लिए बंद हैं। नीतीश की सेहत और जेडीयू में आंतरिक गुटबाजी उनकी चुनौतियों को बढ़ा रही है। दूसरी ओर, बीजेपी का सवर्ण और कुछ ओबीसी वोट बैंक मजबूत है, लेकिन सीमांचल जैसे मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों में उसकी स्थिति कमजोर है। चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी और जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा जैसे सहयोगी दल दलित और अति पिछड़ी जातियों को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन 2020 में चिराग की “वोट कटवा” छवि से सबक लेते हुए वह इस बार गठबंधन में रहने को मजबूर हैं।बिहार का जनादेश इस बार बदलते समीकरणों की ओर इशारा कर रहा है। विकास, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर जनता की नजर है। नीतीश का अनुभव और बीजेपी की संगठनात्मक ताकत एनडीए को मजबूत बनाती है, लेकिन तेजस्वी और राहुल गांधी की जोड़ी युवा और अल्पसंख्यक मतदाताओं को आकर्षित कर रही है। मुस्लिम वोटों का झुकाव और गठबंधनों की रणनीति ही तय करेगी कि सत्ता की चाबी किसके हाथ में होगी। यदि महागठबंधन एकजुट रहता है, तो उसके लिए सत्ता की राह आसान हो सकती है। लेकिन बिहार की सियासत में कुछ भी निश्चित नहीं, और जनता का मूड आखिरी पल तक रहस्य बना रहेगा।

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