लखनऊ, 11 अगस्त । विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची में पारदर्शिता और संभावित हेरफेर को लेकर एक नई बहस छिड़ गई है। भारत के निर्वाचन आयोग (ECI) ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया है कि बिहार में विशेष गहन संशोधन (SIR) प्रक्रिया के दौरान लगभग 6.5 लाख नामों को ड्राफ्ट मतदाता सूची से बाहर करने के बाद उनकी अलग से सूची प्रकाशित करने का कोई कानूनी दायित्व नहीं है। यह रुख हाल ही में दायर एक हलफनामे में सामने आया है, जिसने विपक्षी दलों और नागरिक समाज संगठनों की कड़ी आलोचना को जन्म दिया है, जो दावा कर रहे हैं कि यह बिहार जैसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र में व्यापक मतदाता दमन या “रिगिंग” को छिपाने का प्रयास हो सकता है।यह विवाद बिहार में चल रहे SIR अभ्यास से उत्पन्न हुआ है, जिसका उद्देश्य चुनावों की तैयारी के लिए मतदाता डेटाबेस को अद्यतन और शुद्ध करना है, जो इस साल के अंत में होने वाले हैं। 1 अगस्त को आयोग ने ड्राफ्ट मतदाता सूची प्रकाशित की, जिसमें 7.24 करोड़ पात्र मतदाताओं की सूची शामिल थी – यह आंकड़ा पिछले रिकॉर्ड की तुलना में 65 लाख से अधिक नामों को बाहर करता है। याचिकाकर्ताओं, जिसमें गैर-राजनीतिक संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) भी शामिल है, ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और इन छोड़े गए नामों पर स्पष्टता की मांग की। उन्होंने मांग की कि बाहर किए गए व्यक्तियों की विस्तृत सूची, साथ ही उनकी हटाने के कारणों को सार्वजनिक किया जाए, ताकि मतदाता वंचना को रोका जा सके और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित हो सकें।अपने जवाब में, ECI ने इस मामले में तीसरा हलफनामा दायर किया, जिसमें कहा गया कि 1950 के प्रतिनिधि जनता अधिनियम और संबंधित नियमों के तहत ड्राफ्ट मतदाता सूची में शामिल न किए गए व्यक्तियों की अलग “हटाई गई सूची” प्रकाशित करने या व्यक्तिगत कारणों का उल्लेख करने का कोई वैधानिक प्रावधान नहीं है। आयोग ने स्पष्ट किया कि ड्राफ्ट मतदाता सूची एक “काम-प्रगति में” दस्तावेज है, और छोड़े गए नाम स्थायी रूप से हटाए गए नहीं माने जाएंगे। इसके बजाय, आयोग ने तर्क दिया कि प्रक्रिया प्रभावित पक्षों से दावे और आपत्तियां दर्ज करने की अनुमति देती है, जिसमें प्रावधान हैं।हालांकि, इस रुख ने राजनीतिक और सामाजिक हलकों में तीखी प्रतिक्रिया को जन्म दिया है।
पूर्व IAS अधिकारी सुर्य प्रताप सिंह ने एक फेसबुक पोस्ट में दावा किया कि बिहार में मतदाता सूची से 6.5 लाख नाम हटाए गए हैं, और मतदाता चोरी के आरोप लगाए हैं। उन्होंने लिखा, “चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि बिहार में हटाए गए 6.5 लाख नामों की सूची नहीं दी जाएगी, और सफाई यह कि वोट चोरी नहीं, पूरी डकैती थी।” यह पोस्ट तेजी से वायरल हुई और सोशल मीडिया पर बहस का विषय बन गई।विपक्षी दलों, विशेष रूप से राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और कांग्रेस, ने इस कदम को लोकतंत्र पर हमला करार दिया है। RJD नेता तेजस्वी यादव ने ट्वीट करके कहा, “6.5 लाख मतदाताओं को हटाना कोई छोटी बात नहीं है। यह साफ तौर पर वोटर सुप्रेशन का मामला है, और ECI को जवाब देना होगा।” इसी तरह, कांग्रेस ने एक बयान में मांग की कि आयोग तत्काल एक स्वतंत्र जांच का आदेश दे, जिसमें सभी हटाए गए नामों की समीक्षा की जाए।दूसरी ओर, ECI ने अपनी स्थिति का बचाव करते हुए कहा कि SIR प्रक्रिया में नाम हटाने का निर्णय स्थानीय निर्वाचन अधिकारियों द्वारा सत्यापन और डुप्लिकेट प्रविष्टियों को खत्म करने के बाद लिया जाता है। आयोग ने दावा किया कि प्रभावित व्यक्तियों को अपनी स्थिति को ठीक करने के लिए पर्याप्त अवसर दिए गए हैं, और अंतिम मतदाता सूची प्रकाशन से पहले आपत्तियों का निपटारा किया जाएगा। फिर भी, कई विशेषज्ञों का मानना है कि इतनी बड़ी संख्या में नामों का बाहर होना सवाल उठाता है, खासकर जब बिहार में राजनीतिक दलों के बीच कड़ा मुकाबला है।
सामाजिक कार्यकर्ताओं और कानूनी विशेषज्ञों ने भी चिंता जताई है। ADR के अनुसार, “इस तरह की पारदर्शिता की कमी मतदाताओं के अधिकारों को प्रभावित कर सकती है और चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठाती है।” वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में एक हस्तक्षेप याचिका दायर की है, जिसमें मांग की गई है कि ECI को हटाए गए नामों की सूची सार्वजनिक करने और उनकी हटाने की प्रक्रिया की स्वतंत्र ऑडिट कराने का निर्देश दिया जाए।इस बीच, सोशल मीडिया पर इस मुद्दे को लेकर बहस तेज हो गई है। कुछ उपयोगकर्ताओं ने ECI के फैसले का समर्थन किया, यह कहते हुए कि डुप्लिकेट और अमान्य प्रविष्टियों को हटाना जरूरी है, जबकि अन्य इसे सत्तारूढ़ पार्टी के पक्ष में मतदान को प्रभावित करने की साजिश मान रहे हैं। एक यूजर ने ट्वीट किया, “6.5 लाख नाम हटाना कोई गलती नहीं, यह सुनियोजित रणनीति है।” दूसरी ओर, एक अन्य ने लिखा, “ECI को जवाब देना होगा कि इतने बड़े पैमाने पर नाम क्यों हटाए गए?”वर्तमान में, सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई के लिए तैयार है, और अगली तारीख का इंतजार है। यदि अदालत ECI के रुख को चुनौती देती है, तो यह बिहार चुनावों की रूपरेखा को बदल सकता है। इस बीच, राजनीतिक दलों और नागरिक समाज के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है, क्योंकि वे इस मुद्दे को लेकर सड़कों पर उतरने की योजना बना रहे हैं।यह प्रकरण न केवल बिहार के लिए बल्कि पूरे देश के लिए एक महत्वपूर्ण सबक हो सकता है, जहां चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर सवाल उठ रहे हैं। क्या ECI अपने कदमों को सही ठहरा पाएगा, या यह मामला लोकतंत्र के लिए एक बड़े खतरे के रूप में उभर कर आएगा? यह तो समय ही बताएगा।