लखनऊ (संवाददाता ) मुसलमानों के एक तबके दाउदी बोहरे की बच्चियों के साथ होने वाले खतने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने आज सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि महिला के जीवन का एकमात्र उद्देश्य शादी और पति ही नहीं होता है। अदालत ने कहा कि किसी महिला पर ही यह दायित्व क्यों होना चाहिए कि वह अपने पति को खुश करें। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने सोमवार को सुनवाई केदौरान कहा कि महिलाओं पर उसके पति का दबाव बनाना संविधान के विरुद्ध है। इस तरह का कृत्य एक महिला को आदमी के लिए तैयार करने के मकसद से किया जाता है, जैसे वह जानवर हो। पीठ ने कहा कि महिलाओं का जीवन केवल शादी और पति के लिए नहीं होता। शादी केअलावा भी महिलाओं का अलग दायित्व होता है। पीठ ने सवाल किया कि क्या पति को खुश करना ही महिला का दायित्व है? साथ ही पीठ ने यह भी कहा कि ये लैंगिक संवेदनशीलता का मामला है। यह स्वास्थ्य केलिए भी खतरनाक हो सकता है। पीठ ने सदस्य न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि किसी भी व्यक्ति का जननांग उसकी निचता, सम्मान और स्वायत्तता केलिए बेहद अहम होता है। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राकेश खन्ना ने कहा कि पांच या सात वर्ष की बच्ची को इस मानसिक आधात से गुजरना पड़ता है। इतना ही नहीं यह डॉक्टरों द्वारा नहीं किया जाता है। इसके जवाब में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन इसे अंजाम दे रहा है। प्रश्न यह है कि क्या यह संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन नहीं है? वहीं याचिकाकर्ता की ओर से पेश दूसरी वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि यह परंपरा भारतीय दंड संहिता और पोक्सो के तहत भी अपराध है। और कोई कृत्य कानून के तहत अपराध है तो उसे धर्म की अहम प्रथा के तौर पर कैसे स्वीकार किया जा सकता है। महिला जननांग को छूना अपराध है। साथ ही उन्होंने कहा है यह प्रथा धर्म का अहम हिस्सा भी नहीं है क्योंकि यह मुसलमानों के और किसी भी फ़िरक़े में नहीं होता। इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया ने इस पर पाबन्दी लगा रखी है । केंद्र सरकार ने भी याचिका का समर्थन करते हुए कहा कि वह धर्म के नाम पर ऐसी कोई भी प्रथा या मान्यता केखिलाफ है जो महिला के अंग की पवित्रता का उल्लंघन करता हो। सुनवाई मंगलवार को भी जारी रहेगी।