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वक्फ बोर्ड विवाद: हिंदू संगठनों के आरोपों का खंडन, मंदिरों के लिए समान बोर्ड की मांग

ज़की भारतीय

वैसे तो बीजेपी वक़्फ़ बोर्ड के लिए संशोधन बिल पेश का चुकी और ये संशोधन बिल पास भी हो चुका। बिल पास होने के बाद सुप्रीम कोर्ट में कई रिट की गई और सुप्रीम कोर्ट ने बज़ाहिर देखने के लिए तीन मुद्दों पर फिलहाल विराम लगाया है लेकिन आने वाले समय में वह भी बोर्ड के हित में नहीं होगा । बावजूद इसके सोशल मीडिया पर कट्टरता फैलाने वाले कुछ फेक आईडी या हिंदू कट्टरपंथी संगठनों द्वारा निरंतर बोर्ड को ही खत्म कर देने की मांग उठ रही है ।
आईये हम समझाने का ये प्रयास करते हैं कि वक़्फ़ बोर्ड क्या है ? वक़्फ़ संपत्तियाँ सरकारी संपत्तियाँ नहीं होतीं, बल्कि वक्फ में संपत्ति को दर्ज करने वाले लोग अपनी निजी संपत्तियों को स्वेच्छा से, किसी समझौते के माध्यम से, अल्लाह की राह में दान कर देते हैं। वक्फ संपत्तियाँ दो प्रकार की होती हैं: एक वक्फ-अल-औलाद और दूसरा वक्फ-अल-खैर।
वक्फ-अल-औलाद में हमेशा खानदान का कोई व्यक्ति ही मुतवल्ली (प्रबंधक) बनता है। वहीं, वक्फ-अल-खैर में कोई भी मुसलमान व्यक्ति मुतवल्ली बन सकता है। बोर्ड चाहे तो नियुक्तियों के आधार पर प्रशासक (एडमिनिस्ट्रेटर) भी नियुक्त कर सकता है।

यह कहना गलत है कि वक्फ में किसी की संपत्ति को जबरदस्ती हड़प ली जाती है। यदि अभिलेखों (दस्तावेजों) का सूक्ष्मता से अध्ययन किया जाए, तो यह स्पष्ट होता है कि सरकार ने हुसैनाबाद ट्रस्ट सहित कई वक्फ संपत्तियों, जिनकी कीमत लाखों-करोड़ों में है, को स्वयं नियंत्रित कर रखा है। इसलिए, वक्फ बोर्ड पर आरोप लगाने वाले या इसे बंद करने की बात करने वाले लोग पूर्ण जानकारी नहीं रखते। उन्हें चाहिए कि वे वक्फ के बारे में अध्ययन करें। वक्फ बोर्ड एक ऐसी संस्था है, जिसमें केवल लोगों द्वारा दान की गई संपत्तियाँ ही शामिल होती हैं।सोशल मीडिया पर पिछले छह महीनों से वक्फ बोर्ड के खिलाफ कट्टरपंथी हिंदू संगठनों द्वारा आपत्तिजनक टिप्पणियों का सिलसिला जारी है। इन संगठनों का आरोप है कि वक्फ बोर्ड संपत्तियों का दुरुपयोग करता है और इसे ‘लूट का रास्ता’ बताकर बंद करने की मांग की जा रही है। साथ ही, यह दावा किया जाता है कि हिंदू मंदिरों की कमाई पर सरकार ‘छत्र राज’ चलाती है और उसे हड़प लेती है। लेकिन यह धारणा तथ्यों से परे है। विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि वक्फ बोर्ड पारदर्शी प्रबंधन सुनिश्चित करता है और इसकी आय शिक्षा, स्वास्थ्य और गरीबों की भलाई पर खर्च होती है। दूसरी ओर, भारत के लाखों मंदिरों में केंद्रीय नियंत्रण के अभाव में चढ़ावा और दान की भारी-भरकम राशि पुजारियों और स्थानीय प्रबंधकों के हाथों गायब हो रही है। इस असमानता को दूर करने के लिए हिंदू धार्मिक स्थलों के लिए वक्फ बोर्ड जैसा स्वायत्त ‘सनातन ट्रस्ट बोर्ड’ बनाने की मांग जोर पकड़ रही है, ताकि मंदिरों की आय हिंदू समाज के गरीब वर्गों तक पहुंचे।

वक्फ बोर्ड पर संशोधन और सुप्रीम कोर्ट का रुख

वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 के पारित होने के बाद से यह विवाद चरम पर है। केंद्र सरकार ने नए कानून में तीन प्रमुख बदलाव किए, जिन्हें मुस्लिम संगठनों ने ‘वक्फ की स्वायत्तता पर हमला’ करार दिया। पहले, जिलाधिकारी को यह अधिकार था कि शिकायत मिलने पर संपत्ति को वक्फ नहीं माना जाएगा, जब तक उसका निराकरण न हो। अब यह जिम्मेदारी उच्च अधिकारियों को दी गई है, जिसे जल्द लागू करने की तैयारी है। दूसरा, सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों को भी अध्यक्ष या अधिकारी बनाया जा सकता है, जिसे ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने मुस्लिम समुदाय के लिए ‘करारी हार’ बताया। तीसरा, डिजिटल रजिस्ट्रेशन और ऑडिट जैसे कदमों से पारदर्शिता बढ़ाई गई है। लेकिन हिंदू संगठनों का कहना है कि ये संशोधन अपर्याप्त हैं और वक्फ बोर्ड को पूरी तरह बंद करना चाहिए।

वक्फ बोर्ड की कार्यप्रणाली और तथ्य

वक्फ एक्ट 1995 (2025 में संशोधित) के अनुसार, वक्फ संपत्तियों (मस्जिद, कब्रिस्तान, मदरसे आदि) की आय का उपयोग धार्मिक स्थलों के रखरखाव, इमामों/कर्मचारियों की तनख्वाह, शिक्षा (मदरसे, छात्रवृत्ति), और गरीबों की सहायता पर होता है। सेक्शन 32(2)(e) के तहत, अगर मूल उद्देश्य समाप्त हो जाए, तो आय समान सामाजिक कार्यों (जैसे गरीबी उन्मूलन) पर लगाई जाती है। बोर्ड केवल 7% आय लेता है (सेक्शन 72), जो प्रशासनिक खर्चों – जैसे कर्मचारियों का वेतन, कार्यालय रखरखाव और सर्वेक्षण – पर खर्च होता है। यह राशि सरकारी खजाने में नहीं जाती, बल्कि बोर्ड की स्वायत्त व्यवस्था में रहती है। उदाहरण के लिए, भारत में 8.5 लाख वक्फ संपत्तियां (8 लाख एकड़ से अधिक) हैं, जिनकी आय से मदरसे, अस्पताल और अनाथालय चलते हैं। AIMPLB के प्रवक्ता ने कहा, “वक्फ बोर्ड लूट का नहीं, बल्कि समुदाय की भलाई का जरिया है। सोशल मीडिया पर अनर्गल आरोप सांप्रदायिकता को बढ़ावा दे रहे हैं।”

हिंदू मंदिरों की स्थिति: नियंत्रण का मिथक और चोरी की सच्चाई

हिंदू संगठनों का दावा कि सरकार मंदिरों की आय हड़प लेती है, पूरी तरह सही नहीं। पूरे भारत में अनुमानित 40 लाख मंदिर हैं, जिनमें से केवल 4 लाख (10% से कम) कुछ राज्यों (तमिलनाडु, आंध्र, कर्नाटक) में हिंदू रिलीजियस एंड चैरिटेबल एंडोमेंट्स (HR&CE) एक्ट्स के तहत हैं। इनमें 4-10% आय ‘कॉमन पूल फंड’ में जाती है, जो छोटे मंदिरों के रखरखाव, पुजारी कल्याण और मंदिर विकास पर खर्च होती है।

तमिलनाडु में 38,000 मंदिरों से 4-10% आय ली जाती है, लेकिन यह सरकारी खजाने में नहीं, बल्कि मंदिरों के लिए ही उपयोग होती है। बाकी 90% मंदिर स्वतंत्र या निजी ट्रस्टों के अधीन हैं, जहां कोई केंद्रीय ऑडिट नहीं। परिणामस्वरूप, चढ़ावा और दान की लाखों-करोड़ों की राशि पुजारी या स्थानीय प्रबंधक हड़प लेते हैं। तिरुपति बालाजी में 2009 में 1 किलो सोना चोरी और 2005 से गहनों की इन्वेंटरी न होने जैसे मामले इसका प्रमाण हैं। अयोध्या राम मंदिर में श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट स्वतंत्र रूप से काम करता है, और उत्तर प्रदेश सरकार न केवल आय नहीं लेती, बल्कि ₹85,000 करोड़ के मास्टर प्लान से विकास को बढ़ावा दे रही है।

हिंदू ट्रस्ट की जरूरत: समानता और पारदर्शिता

वक्फ बोर्ड के खिलाफ अनर्गल आरोपों के बजाय, सामाजिक कार्यकर्ता और धार्मिक विद्वान हिंदू मंदिरों के लिए वक्फ-जैसे बोर्ड की वकालत कर रहे हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2006 में केंद्र को ऐसा बोर्ड बनाने का सुझाव दिया था, जो आज भी प्रासंगिक है। प्रस्तावित ‘सनातन धार्मिक ट्रस्ट बोर्ड’ हर प्रदेश में मंदिरों का पंजीकरण, ऑडिट और आय प्रबंधन कर सकता है। यह बोर्ड 5-7% आय प्रशासनिक खर्चों (रखरखाव, पुजारी तनख्वाह) के लिए रख सकता है, और शेष राशि हिंदू समाज के कल्याण – जैसे गरीब बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य शिविर और अनाथालय – पर खर्च कर सकता है। इससे पुजारियों द्वारा चोरी-चमारी रुकेगी और मंदिरों की आय ‘पंडितों का पेट भरने’ से आगे बढ़कर समाज सेवा में लगेगी। एक समाजसेवी ने कहा, “वक्फ बोर्ड से मुस्लिम समुदाय को शिक्षा और कल्याण मिल रहा है। हिंदुओं को भी मंदिरों की आय से गरीब भक्तों की मदद मिलनी चाहिए।”

सांप्रदायिकता के खिलाफ पत्रकार की जिम्मेदारी

सोशल मीडिया पर वक्फ बोर्ड के खिलाफ फैलाए जा रहे झूठे दावे – जैसे ‘लैंड जिहाद’ या ‘मुस्लिम विशेषाधिकार’ – सांप्रदायिक नफरत को बढ़ावा दे रहे हैं। यह खबर लिखने का उद्देश्य यही है कि लोगों को वक्फ बोर्ड की वास्तविक कार्यप्रणाली समझाई जाए और हिंदू मंदिरों की आय के दुरुपयोग को उजागर किया जाए।  लखनऊ के धार्मिक विद्वानों का कहना है कि वक्फ का विरोध बंद कर हिंदू बोर्ड बनाने पर ध्यान देना चाहिए। इससे संविधान की समानता (अनुच्छेद 14 और 26) मजबूत होगी, और हिंदू समाज की एकता बढ़ेगी।

वक्फ बोर्ड को बंद करने की मांग सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने वाली है। इसके बजाय, हिंदू संगठनों को अपने मंदिरों के लिए पारदर्शी और स्वायत्त बोर्ड की मांग करनी चाहिए। यह न केवल मंदिरों की आय को समाज सेवा में लगाएगा, बल्कि पुजारियों द्वारा चोरी और दुरुपयोग पर भी रोक लगाएगा। क्या हिंदू संगठन इस दिशा में कदम उठाएंगे? समय इसका जवाब देगा।

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