HomeCITYसलेंपुर हाउस में रानी नुज़हत हसन के चेहल्लुम की मजलिस कल

सलेंपुर हाउस में रानी नुज़हत हसन के चेहल्लुम की मजलिस कल

लखनऊ, 25 अक्टूबर । सलेंपुर हाउस, लखनऊ की मशहूर शायरा और इस शाही खानदान की एक अहम शख्सियत, मरहूमा रानी नुजहत हसन उर्फ नासिर फातमा बिन्ते कुंवर सैयद मोहम्मद सिब्तैन ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। मरहूमा एक नेक और प्रेरक व्यक्तित्व की मालिका थीं, जिन्होंने अपनी शायरी को सिर्फ अहलेबैत की खिदमत और मौला हुसैन के नौहे वा सलाम के लिए समर्पित किया। उनके अनगिनत नोहे और सलाम आज भी मातमी दस्तों, अंजुमनों और घरों में गूंजते हैं।
रानी नुज़हत हसन सलेंपुर हाउस में अजादारी का एक मरकज थीं। मोहर्रम के दौरान उनका घर मजलिसों और इमामबाड़ों का केंद्र हुआ करता था। उन्होंने हमेशा अजादारी की रस्मों को बरकरार रखा और शायरी को सिर्फ इस पवित्र मक़सद के लिए अपनाया। उन्हें इस बात का यकीन था कि जो लोग अहलेबैत से जुड़ते हैं, चाहे वे जाकिर हों, शायर हों, या मजलिस आयोजित करने वाले, उनकी इज्जत दुनिया में भी होती है और मरने के बाद भी लोग उन्हें याद कर रोते हैं। हजरत अली (अ.स.) का इरशाद है, “ऐसे जियो कि लोग तुमसे मिलने की तमन्ना करें और तुम्हारे मरने के बाद तुम्हें याद कर रोएं।” मरहूमा की जिंदगी भी इसी सिद्धांत पर आधारित थी। उनके रिश्तेदार, दोस्त और चाहने वाले आज उनकी याद में आंसुओं के साथ उनकी मोहब्बत और नेकियों के लिए दुआएं कर रहे हैं। उनकी शायरी और नेक अमल उनकी विरासत का हिस्सा हैं, जो हमेशा जिंदा रहेंगे।
मरहूमा के इसाले सवाब के लिए चेहल्लुम की मजलिस 26 अक्टूबर 2025, रविवार को सुबह 11 बजे सलेंपुर हाउस, कैसरबाग, लखनऊ में आयोजित होगी। मजलिस का आगाज कुरआन-ए-पाक की तिलावत से होगा, जिसके बाद सोज़ और सलाम पढ़े जाएंगे। इसके पश्चात चुने हुए शायर अहलेबैत की बारगाह में अपनी मंजूम नजराना-ए-अकीदत पेश करेंगे। मजलिस को खतीब-ए-अहलेबैत मौलाना अब्बास नासिर सईद अबक़ाती खिताब करेंगे।
इसी दिन और इसी समय पर सलेंपुर हाउस में महिलाओं की मजलिस भी आयोजित होगी। राजा सैयद तकी हसन (सलेंपुर इस्टेट), उनके बेटों, बेटियों, परिवार और रिश्तेदारों ने सभी मोमिनीन और मोमिनात से बड़ी संख्या में शिरकत की गुजारिश की है।

सलेंपुर रियासत का गौरवशाली इतिहास

सलेंपुर रियासत, जो इब्राहिम लोदी के ज़माने की एक ऐतिहासिक रियासत है, अपने समृद्ध इतिहास और शाही विरासत के लिए जानी जाती है। इस रियासत का नाम शेख सलेम के नाम पर रखा गया, जो इस खानदान के पूर्वज थे। यह रियासत शुरू में शेखों की थी, लेकिन काकोरी के अलवी खानदान से रिश्तेदारी के बाद यह सैयदों की रियासत बन गई। इसका स्वर्णिम दौर राजा नवाब अली खान के समय में आया, जो रियासत के पहले राजा बने। अपनी आकर्षक शख्सियत और उर्दू, अरबी व फारसी भाषाओं पर महारत के चलते वे ताल्लुकदारों और नवाबों में बेहद लोकप्रिय थे।
नवाब अली खान के बाद उनके बेटे राजा शबान अली खान रियासत के राजा बने। शबान अली खान अपनी उदारता और दूरदर्शिता के लिए मशहूर थे। अकाल के दौरान उन्होंने अपनी रियासत के लोगों की हर जरूरत पूरी की, जिसके लिए उन्हें ‘सर’ का खिताब मिला। शिक्षा के क्षेत्र में उनकी सेवाएं भी उल्लेखनीय रहीं। जूबिली कॉलेज की स्थापना में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा, और सलेंपुर लाइब्रेरी के लिए उन्होंने फिर्दौसी का ‘शाहनामा’ और ‘कस्सासुल अंबिया’ जैसे नायाब पांडुलिपियों का संग्रह किया।
शबान अली खान के दो बेटे, अहमद अली खान और कम्बर अली खान, थे। कम्बर अली खान अपनी संवेदनशीलता और जनसेवा के लिए लोकप्रिय थे, लेकिन उनका कम उम्र में निधन हो गया। उनकी एक बेटी, राजकुमारी नूरुस्सबा, थीं। शबान अली खान के बाद उनके बड़े बेटे अहमद अली खान राजा बने, जिनका शिक्षा और राजनीति में योगदान अविस्मरणीय है। शिया कॉलेज जैसे संस्थानों में उनकी भूमिका को भुलाया नहीं जा सकता। उन्हें दूसरी विश्व जंग को रोकने के लिए बनी डिफेंस काउंसिल का सदस्य बनाया गया और ‘सर’ के खिताब से नवाजा गया। अहमद अली खान की दो बेटियां, राजकुमारी खैरुन्निसा और राजकुमारी नूरुज्जुहा, थीं। इस तरह उस पीढ़ी में शबान अली खान के दोनों बेटों के घर बेटियां ही हुईं, और यही खानदान आगे बढ़ा।
राजकुमारी नूरुस्सबा के बेटे, राजा सैयद तकी हसन, पूर्व नियंत्रक शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड, यूपी, चेयरमैन-यूपी ग्रेजुएट्स एसोसिएशन, लखनऊ, कोर्ट मेंबर-अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, और जनरल सेक्रेटरी-भारतीय नागरिक परिषद, यूपी, जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं। वे अपने ज़माने के मशहूर रणजी ट्रॉफी क्रिकेटर भी रहे और मौला हुसैन की बारगाह में कई नोहे और सलाम लिखकर खिदमत का सम्मान प्राप्त कर चुके हैं। उनकी मां राजकुमारी नूरुस्सबा का निधन उनके छह महीने की उम्र में हो गया था, जिसके बाद राजा अहमद अली खान की बड़ी बेटी, राजकुमारी खैरुन्निसा, जो निःसंतान थीं, ने उन्हें गोद लिया।
राजकुमारी नूरुज्जुहा के पांच बच्चे हुए, जिनमें सबसे बड़ी रानी नुजहत हसन थीं, फिर राजकुमारी सईदा बेगम (मरहूम), राजा सैयद मोहम्मद सज्जाद (जिनका निधन रानी नुजहत से 12 दिन पहले हुआ), कुंवर अहमद सज्जाद, और सबसे छोटी राजकुमारी नूरुन्निसा हैं।
राजकुमारी खैरुन्निसा एक उच्च कोटि की शायरा थीं, और उनके कई नोहे आज भी मोहर्रम में पढ़े जाते हैं।रानी नुजहत हसन की किताब ‘बरन-ए-गोहर’ में उनके कई नोहे शामिल हैं।
रानी नुजहत हसन को बचपन से पढ़ने का शौक था। उनकी किताब ‘सबद-ए-गुल’ की तारीफ में मशहूर लेखक अल्लामा ज़मीर अख्तर ने कहा, “इतना इल्म हासिल करने के लिए एक उम्र नहीं, उम्रें चाहिए।” गालिब से माफी मांगते हुए उन्होंने कहा, “नुजहत का है अंदाज़-ए-बयां और।” अल्लामा ऐजाज़ फार्रुख ने भी उनके अनुवाद की कला की खूब सराहना की। यह इतिहास सलेंपुर रियासत की शान और सांस्कृतिक विरासत को दर्शाता है, जो आज भी इस खानदान की नई पीढ़ी में जीवित है।

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