ज़की भारतीय
लखनऊ,14 अगस्त। लखनऊ नगर निगम जोन 6 के ज़ोनल अधिकारी मनोज यादव की तानाशाही मानसिकता और अमानवीय व्यवहार से क्षेत्रीय जनता में नाराज़गी बढ़ती जा रही है। जब कोई फरियादी अपनी फरियाद लेकर महोदय के कार्यालय जाता है तो महोदय नदारत रहते हैं।महोदय के न मिलने पर जब कोई आदरणीय को फोन करता है तो उनका एक जवाब होता है , मैं सुबह 6:30 बजे घर से निकल जाता हूं।कार्यालय कब पहुंचूं कोई ठीक नहीं।
सवाल ये पैदा होता है,जब ज़ोनल अधिकारी जनता की समस्या सुनने और उन समस्याओं के निपटारे के लिए तैनात किया गया है, तो जनता से मिलने का समय क्यों नहीं निकलता ?
विभाग में ऐसे कौन से काम हैं जिनके लिए सुबह 6:30 बजे घर से निकलना पड़ जाता है ? ये वो सवाल हैं जिनका उत्तर जनता मांग रही है।
उत्तर पर याद आया कि मनोज यादव तो उत्तर अपने उच्चाधिकारियों को नहीं देते हैं,तो जनता को क्या देंगे।
मृत व्यक्ति के नाम दाख़िल ख़ारिज का मामला
जी हां मामला पूर्व नगर आयुक्त इंद्रजीत सिंह के कार्यकाल का है। उस समय एक मृत व्यक्ति के नाम दाख़िल ख़ारिज का एक मामला उजागर हुआ था। इस मामले में महापौर सुषमा खर्कवाल ने नगर आयुक्त से रिपोर्ट तलब की थी। जिसके लिए नगर आयुक्त ने जोन 6 के ज़ोनल अधिकारी मनोज यादव (मूल पद कर अधीक्षक) से रिपोर्ट मांगी थी,लेकिन अपनी तानाशाही मानसिकता रखने वाले मनोज यादव इस रिपोर्ट को भेजना आवश्यक नहीं समझा। या ये कहा जाए कि जवाब देना उचित नहीं समझा। बल्कि जो रिपोर्ट नगर आयुक्त ने तलब की थी वो रिपोर्ट उनको न भेजकर सीधे महापौर को भेज दी। इस तानाशाही मानसिकता के स्वामी मनोज यादव की नज़रों में मानो नगर आयुक्त की कोई अहमियत ही नहीं। हालांकि सीधी महापौर को रिपोर्ट भेजने पर महापौर ने नाराज़गी प्रकट करते हुए नगर आयुक्त से इस ज़ोनल अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई के आदेश दिए थे। जिसके बाद ज़ोनल अधिकारी मनोज यादव से नगर आयुक्त ने स्पष्टीकरण मांगा था।
कर्मचारी आचरण नियमावली के नियम 09 का दिया था हवाला
इस पर मनोज यादव ने मुद्दे को घुमाते हुए नगर आयुक्त को कर्मचारी आचरण नियमावली के नियम 09 का हवाला दिया और कह दिया कि मेरे द्वारा कर्मचारी आचरण नियमावाली का उल्लंघन नहीं किया गया है। यदि फिर भी कोई आपत्ति है तो मैं माफी चाहता हूं और भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति नहीं होगी। इतना ही नहीं जोनल अधिकारी ने नगर आयुक्त को मामले को समाप्त करने की सलाह भी दे डाली थी।
महापौर गलत या जोनल अधिकारी ?
ऐसे में सवाल यह उठता है कि अगर महापौर को सीधे रिपोर्ट भेजना कर्मचारी आचरण नियमावली का उल्लंघन नहीं है तो फिर नगर निगम में नगर आयुक्त के पद का क्या औचित्य है। फिर महापौर सीधे जोनल अधिकारी से रिपोर्ट मांग लिया करें। जोनल अधिकारी के इस स्पष्टीकरण ने कहीं न कहीं महापौर और उनके स्टाफ तक को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया था।
महापौर को नहीं भेजी नाम परिवर्तन की फाइल
तीन वर्ष पूर्व मृत व्यक्ति के नाम दाखिल-खारिज के मामले में महापौर ने फाइल भी तलब की थी। लेकिन जोनल अधिकारी मनोज यादव ने पूरे मामले को कागजों में उलझाना शुरू कर दिया है। इस बीच फाइल महापौर को नहीं भेजी गई ये बात किसी को ध्यान नहीं है। सूत्र बताते हैं कि फाइल खुलते ही मामले में संलिप्त सभी अफसर-कर्मचारी बेनकाब हो जाएंगे। जिन्होंने निजी स्वार्थ के चलते इतना बड़ा कारनामा किया है।
उच्चाधिकारियों को लेना होगा संज्ञान
ऐसी तानाशाही मानसिकता का व्यक्ति जो अपने अधिकारियों को कुछ ना समझता हो वो आम आदमी की क्या हैसियत समझता होगा।
यही कारण है कि जितना अतिक्रमण जोन 6 में है उतना अतिक्रमण और किसी क्षेत्र में देखने को नही मिलता है। अधिकतर सड़के जर्जर पड़ी हुई है, नालियां चोक है,गलियों में सफाई कर्मचारी कई कई दिनों तक नदारत रहते है, मुख्य मार्गों पर कूड़ा घर बना रखा है,जिसकी बदबू के कारण लोगों का राह को पार करना मुश्किल होता जा रहा है।
बारिश का प्रभाव जहां हज़रत गंज, गोमतीनगर, विकास खंड या अन्य इलाकों में देखने को मिलता वही जोन 6 का हाल सबसे दयनीय है। क्योंकि इधर जल निकासी का इंतेज़ाम दुरुस्त नहीं है। नालों और नालियों की नियमित रूप से सफाई नहीं होना इसका मुख्य कारण हैं। यही कारण है कि इस क्षेत्र में बारिश के रुक जाने के घंटों बाद भी रुका हुआ पानी ख़ुद को गोमती नदी से कम नहीं समझता है।