ज़की भारतीय
लखनऊ,30 मई । आज 30 मई का दिन भारत में हिंदी पत्रकारिता के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। 1826 में आज ही के दिन ‘उदंत मार्तंड’ का पहला अंक प्रकाशित हुआ था, जिसने हिंदी पत्रकारिता की नींव रखी। लेकिन क्या पत्रकारिता को हिंदी, उर्दू, या इंग्लिश के खांचों में बाँटना उचित है? पत्रकारिता तो आइना है—सच का, समाज का, और समय का। यह न हिंदी का होता है, न उर्दू का, न इंग्लिश का, और न ही किसी अन्य भाषा का। यह बस सच को सामने लाने का माध्यम है। फिर क्यों न हम एक ऐसा जश्न मनाएँ, जो सिर्फ पत्रकारिता का हो—बिना भाषा, बिना बँटवारे, बिना किसी पक्षपात के?पत्रकारिता का असली मतलब
है सत्य को उजागर करना, समाज को जागरूक करना, और सत्ता को जवाबदेह बनाना। एक पत्रकार का काम है कि वह जो देखता है, जो सुनता है, उसे वैसा का वैसा पाठकों, दर्शकों, और श्रोताओं तक पहुँचाए। लेकिन आज पत्रकारिता कई खेमों में बँट चुकी है। कुछ ‘गोदी मीडिया’ बनकर सत्ता की चाटुकारिता करते हैं, तो कुछ सस्ती लोकप्रियता के लिए सरकार के हर कदम को गलत ठहराते हैं। दोनों ही पक्ष सच्चाई से भटक चुके हैं।
भाषा का बँटवारा: एक गलत परंपरा
भारत एक बहुभाषी देश है। हिंदी यहाँ की राजभाषा है, लेकिन यह पूरे देश में नहीं बोली जाती। कर्नाटक, केरल, या तमिलनाडु में हिंदी उतनी प्रभावी नहीं है। उर्दू, जो एक समृद्ध साहित्यिक और सांस्कृतिक भाषा है, मुख्य रूप से मुस्लिम समुदाय और कश्मीर जैसे क्षेत्रों में बोली जाती है। इंग्लिश, जिसे वैश्विक भाषा माना जाता है, भारत में भी एक सेतु का काम करती है। चाहे आप लंदन जाएँ, न्यूयॉर्क जाएँ, या बेंगलुरु, इंग्लिश ही वह भाषा है, जो लोगों को जोड़ती है। लेकिन क्या इन भाषाओं के आधार पर पत्रकारिता को बाँटना सही है?हिंदी पत्रकारिता का जश्न मनाना गर्व की बात है, लेकिन अगर हम उर्दू पत्रकारिता या इंग्लिश पत्रकारिता का जश्न मनाने लगें, तो यह बँटवारा पत्रकारिता के मूल उद्देश्य को कमजोर करता है। पत्रकारिता का काम है समाज को एकजुट करना, न कि उसे भाषा, धर्म, या क्षेत्र के आधार पर बाँटना।
निष्पक्ष पत्रकारिता: एक दुर्लभ नगीना
आज के दौर में निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारिता दुर्लभ हो चुकी है। एक तरफ ‘गोदी मीडिया’ है, जो सत्ता के इशारे पर नाचता है और सरकार के हर कदम की तारीफ में कसीदे पढ़ता है। दूसरी तरफ कुछ ऐसे पत्रकार हैं, जो सरकार के हर फैसले को गलत ठहराकर सस्ती लोकप्रियता हासिल करते हैं। दोनों ही पक्ष जनता को भ्रमित करते हैं। असली पत्रकार वही है, जो सरकार के अच्छे कामों की तारीफ करे और गलत नीतियों की आलोचना भी। उदाहरण के लिए, भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने मुफ्त राशन वितरण, सड़क निर्माण, और अवैध इमारतों के खिलाफ कार्रवाई जैसे कई अच्छे कदम उठाए हैं। इनकी तारीफ होनी चाहिए। लेकिन जातिवाद को बढ़ावा देने और सामाजिक तनाव पैदा करने जैसे मुद्दों पर उनकी आलोचना भी जरूरी है।
पत्रकारिता का जश्न: एक नई शुरुआत
हमें एक ऐसे पत्रकारिता दिवस की जरूरत है, जो भाषा, धर्म, या विचारधारा से परे हो। यह दिवस पत्रकारिता के उस मूल सिद्धांत को समर्पित होना चाहिए, जो कहता है: “सच को सच की तरह प्रस्तुत करो।” पत्रकारिता का काम है समाज को आइना दिखाना, न कि उसे तोड़ना। हमें चाहिए एक ऐसी पत्रकारिता, जो न तो सत्ता की चाटुकार हो, न ही सस्ती लोकप्रियता की भूखी।
आज की चुनौतियाँ
आज पत्रकारिता कई चुनौतियों का सामना कर रही है। डिजिटल युग में यूट्यूब चैनल और सोशल मीडिया पोर्टल्स ने पत्रकारिता को और जटिल बना दिया है। कुछ लोग लाखों व्यूज और सब्सक्राइबर्स के लिए सनसनीखेज खबरें परोसते हैं। दूसरी ओर, कुछ बड़े मीडिया हाउस सरकारी विज्ञापनों और फायदों के लिए सत्ता के साथ गठजोड़ कर लेते हैं। लेकिन बीच का रास्ता अपनाने वाले पत्रकार—जो निष्पक्षता और सत्य के लिए काम करते हैं—आज भी हैं, हालाँकि उनकी संख्या कम है।
पत्रकारिता का भविष्य
पत्रकारिता का भविष्य तभी उज्ज्वल हो सकता है, जब हम इसे भाषा और विचारधारा के बंधनों से मुक्त करें। एक पत्रकारिता दिवस, जो सभी भाषाओं और सभी पत्रकारों को एक मंच पर लाए, समाज में एक नई जागरूकता पैदा कर सकता है। हमें ऐसी पत्रकारिता चाहिए, जो सरकार के अच्छे कामों को उजागर करे, गलत नीतियों की आलोचना करे, और समाज को एकजुट करने का काम करे।
पत्रकारिता का आइना न हिंदी का है, न उर्दू का, न इंग्लिश का। यह सिर्फ सच का है। हमें हिंदी पत्रकारिता, उर्दू पत्रकारिता, या इंग्लिश पत्रकारिता के जश्न की जरूरत नहीं। हमें चाहिए एक ‘पत्रकारिता दिवस’, जो सत्य, निष्पक्षता, और निर्भीकता का प्रतीक हो। आइए, हम सब मिलकर ऐसी पत्रकारिता को बढ़ावा दें, जो समाज को जोड़े, न कि तोड़े। क्योंकि पत्रकारिता का मतलब है—सच को सामने लाना, बिना किसी रंग, बिना किसी भाषा, और बिना किसी पक्षपात के।