सभी का ख़ून है शामिल यहां की मिट्टी में।
किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है।।
ज़की भारतीय
भारत का स्वतंत्रता संग्राम एक ऐसा महाकाव्य है, जिसमें हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और अन्य समुदायों ने एकजुट होकर ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी। महात्मा गांधी और कांग्रेस ने इस संग्राम को जन-आंदोलन का रूप दिया, लेकिन आज सामाजिक और राजनीतिक मंचों, विशेष रूप से सोशल मीडिया पर, गांधी जी और कांग्रेस के खिलाफ नफरत का एक सुनियोजित अभियान चलाया जा रहा है। इस अभियान का नेतृत्व मुख्य रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और उसके समर्थकों द्वारा किया जाता है, जो गांधी जी को भारत के विभाजन और कथित “मुस्लिम तुष्टिकरण” के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं। यह लेख स्वतंत्रता संग्राम में सभी समुदायों के योगदान को उजागर करता है, ऐतिहासिक सत्य को सामने लाता है और भारत की धर्मनिरपेक्षता को मजबूत करने की आवश्यकता पर बल देता है।
स्वतंत्रता संग्राम में गांधी और कांग्रेस की भूमिका
महात्मा गांधी ने अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी। असहयोग आंदोलन (1920), सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930) और भारत छोड़ो आंदोलन (1942) जैसे आंदोलनों ने भारतीय जनता को एकजुट किया। कांग्रेस ने गांधी जी के नेतृत्व में सभी समुदायों को साथ लेकर एक समावेशी आंदोलन चलाया। लेकिन यह केवल अहिंसक आंदोलन ही नहीं था; सशस्त्र क्रांतिकारियों ने भी अपने बलिदान से स्वतंत्रता की लौ को प्रज्वलित रखा।
स्वतंत्रता संग्राम में सभी समुदायों का योगदान
स्वतंत्रता संग्राम में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और अन्य समुदायों के क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की आहुति दी। यह एकता भारत की आत्मा थी, जिसे गांधी जी ने मजबूत किया। हम नीचे कुछ प्रमुख क्रांतिकारियों के नाम और उनके योगदान को परिभाषित कर रहे हैं, जिन्होंने एकता को दर्शाया हैं।
हिंदू क्रांतिकारी:
भगत सिंह: हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) के नेता। 1928 में लाहौर में सांडर्स की हत्या और 1929 में दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में बम फेंकने की घटना ने ब्रिटिश शासन को हिलाकर रख दिया। 23 मार्च 1931 को राजगुरु और सुखदेव के साथ फांसी पर चढ़े।
चंद्रशेखर आजाद: काकोरी कांड (1925) और HSRA के संगठन में महत्वपूर्ण भूमिका। 1931 में इलाहाबाद में पुलिस मुठभेड़ में शहीद हुए।
राम प्रसाद बिस्मिल: काकोरी कांड के मुख्य योजनाकार। अपनी कविताओं और क्रांतिकारी लेखन से युवाओं को प्रेरित किया। 1927 में फांसी।
सुभद्रा कुमारी चौहान: कवयित्री और क्रांतिकारी। उनके पति लक्ष्मण सिंह ‘झांसी की रानी’ और क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय रहे।
मुस्लिम क्रांतिकारी:
अशफाकउल्ला खान: काकोरी कांड में बिस्मिल के साथी। 1927 में फांसी से पहले कहा, “मैंने अपनी मातृभूमि से सच्चा प्रेम किया।” उनकी कविताएं और बलिदान हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक हैं।
मौलवी अहमदुल्लाह शाह: 1857 के विद्रोह में फैजाबाद और लखनऊ में नेतृत्व। हिंदू-मुस्लिम एकता का नारा दिया, 1858 में शहीद।
बेगम हजरत महल: अवध की रानी। चिन्हाट की लड़ाई में ब्रिटिश कमांडर को हराया। लखनऊ में विद्रोह का नेतृत्व किया।
मौलाना अबुल कलाम आजाद: ‘अल-हिलाल’ अखबार और हिजबुल्लाह संगठन के माध्यम से क्रांति को बढ़ावा। स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री।
शाह नवाज खान: आजाद हिंद फौज (INA) में सुभाष चंद्र बोस के प्रमुख कमांडर। इंफाल अभियान में नेतृत्व।
अबिद हसन सैफरानी: INA में ‘जय हिंद’ नारे के रचयिता। सिंगापुर में बोस के साथ ब्रिटिशों के खिलाफ लड़े।
पीर अली खान: 1857 में पटना में क्रांतिकारी साहित्य वितरित किया। ब्रिटिशों के खिलाफ साजिश रचने पर फांसी।
हसरत मोहानी: 1921 में ‘पूर्ण स्वराज’ प्रस्ताव रखा। क्रांतिकारी लेखन और जेल यात्राएं।
सिख क्रांतिकारी:
करतार सिंह सराभा: गदर मूवमेंट के प्रमुख नेता। 1915 में लाहौर षड्यंत्र में शामिल। 19 साल की उम्र में फांसी।
उधम सिंह: 1940 में लंदन में जलियांवाला बाग नरसंहार के जिम्मेदार माइकल ओ’डायर की हत्या की। 1940 में फांसी।
भाई बलमुकुंद: दिल्ली-लाहौर षड्यंत्र में शामिल। 1915 में फांसी।
स. भगत सिंह: (हालांकि भगत सिंह का परिवार सिख था, वे स्वयं धर्मनिरपेक्ष थे। फिर भी सिख समुदाय के योगदान के लिए उल्लेखनीय।)
ईसाई और अन्य समुदाय:
रानी मैरी मैल्कम: केरल में स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय। अंग्रेजों के खिलाफ प्रचार और संगठन।
पारसी समुदाय: दादाभाई नौरोजी और मैडम भिखाजी कामा ने विदेशों में स्वतंत्रता आंदोलन को मजबूत किया। भिखाजी ने ‘वंदे मातरम’ पत्रिका चलाई और भारतीय तिरंगा लहराया।
1857 के विद्रोह में इंडिया गेट पर अंकित 95,300 शहीदों में 61,945 मुस्लिम (65%) थे, जो हिंदू, सिख और अन्य समुदायों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़े। कुशवंत सिंह ने कहा, “भारतीय स्वतंत्रता मुस्लिमों के खून से लिखी गई है।” लेकिन यह खून केवल मुस्लिमों का नहीं, बल्कि हिंदू, सिख, ईसाई और सभी भारतीयों का था। यह एकता ही भारत की ताकत थी।
आरएसएस और मुस्लिम लीग: एक ऐतिहासिक गठजोड़
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस), जो 1925 में स्थापित हुआ, स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी से दूर रहा। इतिहास के दस्तावेज बताते हैं कि आरएसएस ने अंग्रेजों के प्रति नरम रवैया अपनाया और कई बार लिखित रूप से माफी मांगी। वीर सावरकर ने अंडमान जेल में अंग्रेजों से पत्र लिखकर वफादारी का वादा किया। दूसरी ओर, 1940 के दशक में आरएसएस और मुस्लिम लीग के बीच सांप्रदायिक आधार पर गठजोड़ देखा गया। बंगाल और सिंध जैसे राज्यों में दोनों ने मिलकर सरकारें बनाईं। मुस्लिम लीग ने बाद में भारत के विभाजन की मांग तेज की, और 1947 में पाकिस्तान का निर्माण हुआ।
आरएसएस और उसके समर्थक इस बंटवारे का दोष गांधी जी और कांग्रेस पर मढ़ते हैं, जबकि गांधी जी ने एकता बनाए रखने की हर कोशिश की। सांप्रदायिक तनाव और अंग्रेजों की “फूट डालो और राज करो” नीति ने बंटवारे को अपरिहार्य बनाया।
गांधी जी की हत्या और नफरत का बीज
30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे, जो हिंदू महासभा और आरएसएस से जुड़ा था, ने गांधी जी की हत्या कर दी। गोडसे ने गांधी जी को “मुस्लिम तुष्टिकरण” का दोषी माना, जो एक आधारहीन आरोप था। गांधी जी ने सभी धर्मों और समुदायों के लिए समानता की वकालत की। उनकी हत्या ने न केवल भारत को एक महान नेता से वंचित किया, बल्कि सांप्रदायिकता के बीज को और गहरा किया। आज, सोशल मीडिया पर गोडसे को “नायक” के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिशें और उनकी मूर्तियां स्थापित करने की बातें भारत की धर्मनिरपेक्ष परंपरा के लिए खतरा हैं।
पाकिस्तान को भुगतान का विवाद
आरएसएस समर्थक अक्सर दावा करते हैं कि गांधी जी ने पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये का भुगतान करवाकर “देशद्रोह” किया। बंटवारे के समय भारत और पाकिस्तान के बीच संपत्ति बंटवारे का समझौता हुआ था, जिसमें भारत को 75 करोड़ रुपये देने थे। 20 करोड़ पहले दे दिए गए, लेकिन शेष राशि को भारत ने पाकिस्तान के कश्मीर पर हमले के कारण रोका। गांधी जी ने तर्क दिया कि यह राशि देना भारत की नैतिक जिम्मेदारी है, ताकि अंतरराष्ट्रीय छवि खराब न हो। उनके अनशन के बाद 55 करोड़ रुपये दिए गए। यह निर्णय तनाव कम करने और भारत की प्रतिष्ठा बचाने के लिए था।
गांधी और कांग्रेस: सभी समुदायों के लिए योगदान
गांधी जी और कांग्रेस पर आरोप लगाया जाता है कि उन्होंने केवल दलितों और मुसलमानों के हितों का ध्यान रखा। यह गलत है। गांधी जी ने हरिजन आंदोलन, मंदिर प्रवेश और सामाजिक समानता के लिए काम किया। मुसलमानों के लिए ख़िलाफ़त आंदोलन का समर्थन किया, ताकि हिंदू-मुस्लिम एकता बनी रहे। सिख समुदाय के लिए उन्होंने गुरुद्वारा सुधार आंदोलन का समर्थन किया। स्वतंत्र भारत में कांग्रेस ने संविधान के माध्यम से सभी के लिए समान अधिकार सुनिश्चित किए।
गांधी जी ने समाज के कमजोर वर्गों—दलित, मुस्लिम, और अन्य—पर विशेष ध्यान दिया, जैसे एक परिवार में कमजोर बच्चे की ओर ध्यान जाता है। भारत में रहने वाले मुसलमानों ने, जो बंटवारे के बाद यहीं रहे, देशभक्ति का परिचय दिया। उनकी निष्ठा पर सवाल उठाना अन्याय है।
आज की चुनौती: कट्टरपंथ और धर्मनिरपेक्षता
आज, आरएसएस और उसके समर्थक सांप्रदायिक नफरत को बढ़ावा दे रहे हैं। सोशल मीडिया पर मुसलमानों के खिलाफ भड़काऊ पोस्ट, जैसे इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष के दौरान “जय श्री राम” के साथ चिढ़ाने वाली टिप्पणियां, इस मानसिकता को दर्शाती हैं। कुछ कट्टरपंथी फिर से बंटवारे की बात करते हैं, जो भारत की एकता के लिए खतरा है।
हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और सभी धर्मनिरपेक्ष भारतीयों को एकजुट होकर इस नफरत का जवाब देना होगा। कांग्रेस, जो गांधी जी के सिद्धांतों पर चली, को फिर से सत्ता में लाकर सांप्रदायिकता का जवाब दिया जा सकता है। दलित और मुस्लिम समुदायों को समझना होगा कि उनकी एकता ही इस जहर का तोड़ है।
गांधी की विरासत और भविष्य की राह
महात्मा गांधी की अहिंसा, सत्य और समानता की शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई—सभी ने स्वतंत्रता संग्राम में बलिदान दिए। यह एकता भारत की ताकत है। कट्टरपंथी संगठनों ने नफरत का वृक्ष बोया है, लेकिन इसे उखाड़ने की जिम्मेदारी हमारी है। कांग्रेस को मजबूत कर, गांधी जी के आदर्शों को अपनाकर, हम भारत को एक सशक्त, धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बना सकते हैं। आने वाली पीढ़ियां इन बलिदानों को याद रखेंगी, और हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि नफरत की हवा में एकता की लौ कभी न बुझे।



