ज़की भारतीय
सोशल मीडिया, जो कभी लोगों को जोड़ने और विचारों के आदान-प्रदान का मंच था, आज नफरत, कट्टरता और साम्प्रदायिक वैमनस्य का हथियार बन चुका है। धार्मिक और सामुदायिक आधार पर फैल रही भड़काऊ सामग्री ने समाज में तनाव और अविश्वास को बढ़ा दिया है। चाहे हिंदू हों या मुसलमान, कट्टरपंथी तत्व फर्जी अकाउंट्स, आपत्तिजनक पोस्ट्स और ऑडियो संदेशों के जरिए देश की एकता को कमजोर कर रहे हैं। यह लेख इस गंभीर मुद्दे पर प्रकाश डालता है और समाज, सरकार, और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स की जिम्मेदारी को रेखांकित करता है।
कट्टरता का बढ़ता दायरा
सोशल मीडिया पर नफरत फैलाने की जिम्मेदारी किसी एक समुदाय तक सीमित नहीं है। हिंदू कट्टरपंथी हैंडल्स द्वारा भड़काऊ और आपत्तिजनक सामग्री साझा की जा रही है, तो कुछ मुस्लिम नामों से भी ऐसी पोस्ट्स और ऑडियो संदेश प्रसारित हो रहे हैं। ये सामग्री समाज में भय, गुस्सा और अविश्वास को जन्म दे रही है, जिसके परिणामस्वरूप साम्प्रदायिक तनाव, हिंसक प्रतिक्रियाएं और स्थानीय विवाद बढ़ रहे हैं।
उदाहरण के तौर पर, हाल ही में एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की पोशाक में छोटे-छोटे बच्चे लाठियां लेकर मार्च करते दिखे। एक यूजर ने इस पर टिप्पणी की: “जिन हाथों में किताब और कलम होनी चाहिए, उनमें लाठियां और डंडे क्यों थमाए जा रहे हैं?” यह टिप्पणी एक गंभीर सवाल उठाती है कि क्या बच्चों के मन में हिंसा और आक्रामकता के बीज बोने की जरूरत है? यह सवाल समाज को सोचने पर मजबूर करता है कि हम अपने बच्चों को क्या सिखाना चाहते हैं और उनके भविष्य को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं।
हालांकि, यह भी विचारणीय है कि यदि कोई समुदाय अपनी सांस्कृतिक या वैचारिक मान्यताओं के तहत इस तरह के आयोजन करता है, तो उसे अनावश्यक रूप से निशाना बनाना भी गलत है। उदाहरण के लिए, यदि मुस्लिम बच्चे किसी जुलूस में मार्च करते हैं, तो क्या अन्य समुदायों को उन पर टिप्पणी करने का अधिकार है?
ठीक उसी तरह, आरएसएस या अन्य संगठनों के कार्यक्रमों पर अनुचित टिप्पणियां भी साम्प्रदायिक तनाव को बढ़ावा देती हैं।
गांधी का अपमान और गोडसे की प्रशंसा: एक खतरनाक प्रवृत्ति
सोशल मीडिया पर कुछ हिंदूवादी हैंडल्स द्वारा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को अपमानजनक शब्दों जैसे “टकला” से संबोधित किया जा रहा है। इसके साथ ही, नाथूराम गोडसे जैसे अपराधी की प्रशंसा में “गोडसे अमर रहे” और “जय श्री राम” जैसे नारों के साथ भड़काऊ टिप्पणियां की जा रही हैं। यह सवाल उठता है कि क्या राष्ट्रपिता का अपमान करना और एक हत्यारे की प्रशंसा करना देशभक्ति है? यदि नहीं, तो ऐसी सामग्री को तत्काल हटाने और इसके लिए जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही?
धार्मिक ग्रंथों का दुरुपयोग और जवाब की शक्ति
सोशल मीडिया पर नफरत फैलाने वालों को जवाब देने का एक प्रभावी तरीका धार्मिक ग्रंथों की सही व्याख्या करना है। फेसबुक पर एक यूजर, शशि झा, ने भड़काऊ टिप्पणी की, जिसका जवाब इस तरह दिया गया:
“थोड़ा कमीनेपन से समय निकाल कर पढ़ भी लिया कर। वेदों और कुरआन के अनुसार शहीद, अर्थात जो ईश्वर/अल्लाह के लिए जीवन निछावर कर दे, वो मरता नहीं है। भगवान राम और हनुमान जी इत्यादि को मरे हुए हज़ारों वर्षों के बाद भी हिंदू भाई किसी भी परेशानी में हनुमान चालीसा और जय श्री राम और अमर रहें के नारे लगाते। क्योंकि इन महापुरुषों ने ईश्वर की राह में कुर्बानी दी है। तेरी जानकारी के लिए तुझे तेरे वेदों और कुरआन के कुछ श्लोकों और आयतों से जानकारी दे रहा हूं। और तू किसी दिन कर्बला में इमाम हुसैन (अ.स.) का योगदान के बारे में भी पढ़ लेना, तब पता चलेगा, सर तन से अलग होने के बाद भी बोलता रहा, बातचीत करता रहा। सिर्फ नफरत मत फैला, कुछ प्यार और मोहब्बत भी दिल में रख।”
वेदों और उपनिषदों में प्रासंगिक विचार
ऋग्वेद 10.16.3:
“अग्ने नय सुपथा राये अस्मान् विश्वानि देव वयुनानि विद्वान्। युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो भूयिष्ठां ते नमउक्तिं विधेम ॥”
अनुवाद: हे अग्नि देव! हमें उत्तम मार्ग से ले चलो, हमें धर्म के पथ पर स्थापित करो, हमारे पापों का नाश कर दो, और जो लोग धर्म के लिए प्राण देते हैं, उन्हें अमर मार्ग की ओर ले चलो।
यजुर्वेद 40.15 (ईशोपनिषद्):
“अग्ने नय सुपथा…”
अनुवाद: यहाँ भी आत्मा के अमर होने की बात कही गई है।
कठोपनिषद् 1.2.18-19:
“न जायते म्रियते वा कदाचित्… न हन्यते हन्यमाने शरीरे ॥”
अनुवाद: आत्मा न कभी जन्म लेती है, न कभी मरती है। न इसे कोई मार सकता है, न यह मारी जा सकती है।
भगवद्गीता 2.23-24:
“नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि, नैनं दहति पावकः। न चैनं क्लेदयन्त्यापो, न शोषयति मारुतः ॥”
अनुवाद: शस्त्र आत्मा को नहीं काट सकते, अग्नि जला नहीं सकती, जल भिगो नहीं सकता और वायु सुखा नहीं सकती।
इस्लाम की शिक्षाएं
कुरआन (2:154, 3:169) कहता है: “शहीद मरा नहीं करता, बल्कि वह अल्लाह के पास जीवित है।”
हिंदू और इस्लामिक शिक्षाएं एक ही सत्य की ओर इशारा करती हैं कि धर्म और सत्य के लिए जीवन देने वाला अमर रहता है। लेकिन सोशल मीडिया पर इस तरह की शिक्षाओं का दुरुपयोग करके नफरत फैलाई जा रही है। इस जवाब के बाद भी शशि झा जैसे यूजर्स अपनी अज्ञानता और नफरत का प्रदर्शन करते रहे। यह दर्शाता है कि उनके दिमाग में नफरत का जहर सुनियोजित तरीके से भरा जा रहा है।
इतिहास का दुरुपयोग और गांधी के प्रति नफरत
सोशल मीडिया पर गांधी को हिंदू विरोधी और मुस्लिम हितैषी बताने का एक सुनियोजित प्रचार चल रहा है। भारत-पाकिस्तान बंटवारे के दौरान पाकिस्तान को दी गई आर्थिक सहायता को गलत तरीके से प्रस्तुत करके गांधी के खिलाफ नफरत भरी जा रही है। इसके विपरीत, गोडसे को क्रांतिकारी के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। यह नफरत स्वतः नहीं पनप रही, बल्कि इसे कट्टरपंथी संगठनों द्वारा हवा दी जा रही है।
ऐतिहासिक रूप से, मुस्लिम लीग और कुछ हिंदूवादी संगठनों ने मिलकर बंटवारे में भूमिका निभाई थी। आज भी कुछ ताकतें साम, दाम, दंड, भेद की नीति अपनाकर देश में विभाजन की साजिश रच रही हैं। यह चिंता का विषय है कि अगले 50-60 वर्षों में ऐसी ताकतें एक और बंटवारे की ओर बढ़ सकती हैं। इसके पीछे का कारण स्पष्ट है: कुछ संगठन और तत्व समाज में नफरत और विभाजन को बढ़ावा देकर अपने राजनीतिक और वैचारिक हित साधना चाहते हैं।
सोशल मीडिया पर निगरानी की निष्क्रियता
सोशल मीडिया पर निगरानी का दावा करने वाली सरकारी एजेंसियों और पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं। बरेली दंगों से लेकर अब तक अनगिनत आपत्तिजनक वीडियो, ऑडियो और कमेंट्स सामने आए हैं, जिन्हें सार्वजनिक करना भी अनुचित है। फेसबुक और ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म्स के पास हिंसा और नफरत फैलाने वाली सामग्री को हटाने का विकल्प मौजूद है, और कई बार व्यक्तिगत शिकायतों पर अकाउंट्स बंद भी किए गए हैं। लेकिन पुलिस और साइबर सेल की ओर से इस दिशा में सक्रियता की कमी क्यों है? यदि कोई व्यक्ति आपत्तिजनक सामग्री की शिकायत करता है, तो कार्रवाई में देरी या उदासीनता देखने को मिलती है।
नागरिकों की जिम्मेदारी: सत्यापन और संयम
सोशल मीडिया पर नफरत को रोकने की जिम्मेदारी केवल सरकार और प्लेटफॉर्म्स की ही नहीं, बल्कि प्रत्येक नागरिक की भी है। किसी भी पोस्ट, ऑडियो या वीडियो को साझा करने से पहले उसकी सत्यता की जांच जरूरी है। केवल मनोरंजन, शिक्षा या करियर से संबंधित सामग्री को ही बढ़ावा देना चाहिए। समाज में शांति और सद्भाव बनाए रखने के लिए एक-दूसरे के प्रति सम्मान और प्रेम की भावना को बढ़ावा देना होगा।
नफरत के खिलाफ प्यार और मोहब्बत की पुकार
सोशल मीडिया पर फैल रही नफरत का असर केवल वर्चुअल दुनिया तक सीमित नहीं है। यह समाज में हिंसक घटनाओं, साम्प्रदायिक दंगों और समुदायों के बीच गहरे विभाजन का कारण बन सकता है। गांधी, जो अहिंसा और सत्य के प्रतीक थे, आज उसी सोशल मीडिया पर अपमान के शिकार हो रहे हैं, जबकि उनके हत्यारे की प्रशंसा की जा रही है। यह स्थिति देश की आत्मा पर चोट है।
आने वाले समय में, हम एक ऐसा लेख लिखेंगे जो गांधी, हिंदू, मुस्लिम और देश के सत्य पर आधारित होगा। हमारा उद्देश्य लोगों के दिलों से नफरत को कम करना और प्यार व मोहब्बत को बढ़ावा देना है। यह तभी संभव होगा जब हम सभी मिलकर एक-दूसरे के प्रति सम्मान और समझ का रवैया अपनाएं।
एकता और शांति की राह
सोशल मीडिया पर नफरत और कट्टरता का यह जहर यदि अनियंत्रित रहा, तो यह समाज में हिंसक घटनाओं और समुदायों के बीच गहरे विभाजन का कारण बन सकता है। सरकार को चाहिए कि सोशल मीडिया पर सख्त निगरानी रखी जाए, आपत्तिजनक सामग्री को तुरंत हटाया जाए और इसके लिए जिम्मेदार लोगों पर कड़ी कार्रवाई हो। साथ ही, हमें अपने स्तर पर भी जिम्मेदारी लेनी होगी। हमें उन मूल्यों को बढ़ावा देना होगा जो हमें जोड़ते हैं, न कि उन विचारों को जो हमें तोड़ते हैं।
आइए, हम सब मिलकर एक ऐसे भारत का निर्माण करें जहां शांति, एकता और प्रेम सर्वोपरि हो। गांधी के सपनों का भारत, जहां हर धर्म और समुदाय के लोग एक-दूसरे के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलें।



