अब सोशल मीडिया पर चल रहे हैं व्यंग,ईद के चांद को छत से देखने पर हो सकती एफआईआर
जकी भारतीय
लखनऊ, 28 मार्च । संभल में आज जुमे की नमाज को लेकर माहौल सामान्य रूप से शांतिपूर्ण रहा। स्थानीय प्रशासन और पुलिस ने सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए थे, खासकर पिछले कुछ समय से संभल में विभिन्न घटनाओं के मद्देनजर। आज की नमाज के दौरान शहर में ड्रोन कैमरों से निगरानी की गई और छतों पर भी पुलिस की तैनाती देखी गई।
संभल के चर्चित सीओ अनुज चौधरी ने हाल ही में कहा था कि जुमे की नमाज शांतिपूर्वक संपन्न हो, इसके लिए सभी जरूरी कदम उठाए जा रहे हैं। आज की नमाज में भारी संख्या में लोग शामिल हुए, और मस्जिदों के आसपास भीड़ को नियंत्रित करने के लिए अतिरिक्त पुलिस बल तैनात किया गया था। स्थानीय लोगों का कहना है कि नमाज के बाद कोई अप्रिय घटना सामने नहीं आई, और दिनचर्या सामान्य रही।
हालांकि, सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने नमाज के दौरान सुरक्षा व्यवस्था को लेकर चर्चा की, लेकिन प्रशासन ने इसे नियमित प्रक्रिया बताया। बताते चलें ,संभल में हाल के दिनों में जामा मस्जिद से जुड़े विवाद और अन्य घटनाओं के बाद प्रशासन किसी भी जोखिम से बचने के लिए सतर्क रहा। इसीलिए उसने जहां घरों की छतों पर नमाज़ पढ़ने पर पाबंदी लगाई वहीं सड़कों पर भी नमाज़ को अदा नहीं करने दिया। सार्वजनिक स्थल पर नमाज़ पर रोक को उचित माना जा सकता है लेकिन अपने ही घर में नमाज़ पढ़ने से रोकने का तुगलकी फरमान सरासर गलत था। कुल मिलाकर, आज जुमे की नमाज को लेकर संभल में कोई बड़ी प्रतिक्रिया या विवाद की खबर नहीं मिली।
संभल में नमाज़ पर पाबंदी: क्या यह उचित है और क्यों?
संभल, उत्तर प्रदेश में हाल ही में प्रशासन ने एक बड़ा फैसला लिया था, जिसमें नमाज़ को लेकर सख्त दिशा-निर्देश जारी किए गए थे। इस फैसले के तहत छतों और सड़कों पर नमाज़ अदा करने पर रोक लगा दी गई थी। संभल के अपर पुलिस अधीक्षक (एएसपी) श्रीश चंद्र ने स्पष्ट किया था कि पारंपरिक रूप से मस्जिदों और ईदगाहों में नमाज़ अदा करने पर कोई रोक नहीं है, लेकिन सुरक्षा और दुर्घटना की आशंका के चलते छतों पर बड़ी संख्या में लोगों के एकत्र होने और सड़कों पर नमाज़ पढ़ने की मनाही है। इस फैसले ने कई सवाल खड़े किए थे, खासकर तब जब हिंदू और अन्य धर्मों के त्योहारों, जैसे बड़े मंगल पर लंगर, पूजा-पाठ और प्याऊ सड़कों पर आयोजित होते हैं। तो आखिर इस पाबंदी का कारण क्या है और क्या यह उचित है? आइए इस मुद्दे को विस्तार से समझते हैं।
प्रशासन का तर्क
संभल प्रशासन का कहना था कि यह फैसला कानून-व्यवस्था और सार्वजनिक सुरक्षा को ध्यान में रखकर लिया गया था। एएसपी श्रीश चंद्र ने बताया कि छतों पर नमाज़ पढ़ने से हादसे की आशंका रहती है, जैसे छत का ढहना या अन्य दुर्घटनाएं। इसी तरह, सड़कों पर नमाज़ अदा करने से यातायात बाधित होता है, जिससे आम लोगों को असुविधा होती है और दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ जाता है। प्रशासन का जोर इस बात पर था कि नमाज़ मस्जिदों और ईदगाहों में शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हो, जैसा कि परंपरा रही है। इसके लिए पर्याप्त पुलिस बल भी तैनात किया गया था ताकि कोई अप्रिय घटना न हो।
संभल में पिछले साल नवंबर 2024 में शाही जामा मस्जिद के सर्वे को लेकर हुई हिंसा के बाद प्रशासन संवेदनशीलता को लेकर सतर्क था। इस घटना में चार लोगों की मौत हुई थी और कई घायल हुए थे, जिसके बाद जिले में सांप्रदायिक तनाव बढ़ गया था। ऐसे में प्रशासन का यह कदम निवारक उपाय के रूप में देखा जा रहा था।
मुसलमानों का इस संबंध में दिया गया बयान भी तर्कसंगत हैं
हिंदू और अन्य धर्मों के आयोजनो पर मुसलमानों ने कहा ,प्रश्न उठता है जब हिंदू और अन्य धर्मों के त्योहार सड़कों पर मनाए जा सकते हैं, जैसे बड़े मंगल पर लंगर, प्याऊ और पूजा-पाठ, तो मुसलमानों पर ही यह पाबंदी क्यों? उदाहरण के लिए, बड़े मंगल पर भक्त सड़कों पर भंडारे लगाते हैं, हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं और कई बार यातायात प्रभावित होता है। इसी तरह, होली, दीवाली या गणेश चतुर्थी जैसे त्योहारों में भी सड़कों पर जुलूस और आयोजन होते हैं। इन अवसरों पर प्रशासन अक्सर अनुमति देता है और यातायात प्रबंधन के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करता है। तो क्या यह मुसलमानों के साथ भेदभाव नहीं है?
दोनों पक्षों की तुलना में प्रशासन का दृष्टिकोण
प्रशासन की दृष्टि से देखें तो सड़कों पर नमाज़ और अन्य धार्मिक आयोजनों में अंतर यह है कि नमाज़ एक नियमित गतिविधि है, जो हर शुक्रवार (जुमा) या खास मौकों पर होती है, जबकि हिंदू त्योहार साल में कुछ खास दिनों तक सीमित होते हैं। प्रशासन का तर्क हो सकता है कि नियमित रूप से सड़कों पर होने वाली गतिविधि यातायात और सुरक्षा के लिए बड़ी चुनौती पैदा करती है। वहीं, त्योहारों के लिए (अस्थायी) अनुमति दी जाती है और पुलिस उस दौरान विशेष प्रबंध करती है। हालांकि, यह तर्क पूरी तरह संतोषजनक नहीं लगता, क्योंकि संभल जैसे संवेदनशील क्षेत्र में सभी धार्मिक गतिविधियों पर समान नियम लागू होने चाहिए।
समाजवादी सांसद की प्रतिक्रिया
संभल से समाजवादी पार्टी के सांसद जियाउर रहमान बर्क ने इस फैसले की कड़ी आलोचना की थी। उनका कहना था कि छत निजी संपत्ति है, न कि सरकारी जगह। अगर कोई अपने घर की छत पर नमाज़ नहीं पढ़ सकता, तो वह कहां इबादत करेगा? उन्होंने इसे संवैधानिक अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला बताया। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 हर नागरिक को अपनी धार्मिक मान्यताओं का पालन करने की आजादी देता है, बशर्ते वह सार्वजनिक व्यवस्था को प्रभावित न करे। बर्क का सवाल जायज़ है कि क्या यह पाबंदी मुसलमानों को उनके अधिकारों से वंचित कर रही है?
इस फैसले की उचितता पर विचार करें तो दो पहलू सामने आते हैं
सुरक्षा और व्यवस्था: यदि छतों पर हादसे और सड़कों पर यातायात बाधा वास्तविक चिंता थी, तो यह कदम तर्कसंगत हो सकता है। संभल जैसे क्षेत्र में, जहां पहले हिंसा हो चुकी है, प्रशासन का सतर्क रहना स्वाभाविक था। लेकिन इसके लिए वैकल्पिक समाधान, जैसे मस्जिदों में जगह बढ़ाना या अस्थायी व्यवस्था करना, भी सोचा जा सकता था।
समानता का अभाव: जब अन्य धर्मों के आयोजन सड़कों पर हो सकते हैं, तो केवल नमाज़ पर पाबंदी असमानता को दर्शाती है। यह धारणा पैदा हो सकती है कि प्रशासन एक समुदाय को निशाना बना रहा था, जो सांप्रदायिक सौहार्द के लिए नुकसानदेह हो सकता था। यदि भविष्य में ऐसे ही नियम बनाने हैं ,तो इसे सभी धर्मों पर एकसमान लागू करना चाहिए।
संभल में घरों की छतों और सड़कों पर नमाज़ पर लगी पाबंदी सुरक्षा के लिहाज से कुछ हद तक उचित हो सकती है, लेकिन इसके पीछे भविष्य में समानता और संवैधानिक अधिकारों का ध्यान नहीं रखा गया तो यह विवादास्पद बन सकता है। प्रशासन को चाहिए कि वह सभी धर्मों के लिए एकसमान नीति बनाए और समुदायों के साथ संवाद करके वैकल्पिक रास्ते निकाले। अगर हिंदू त्योहारों को सड़कों पर अनुमति है, तो नमाज़ के लिए भी विशेष परिस्थितियों में व्यवस्था की जा सकती है। यह न केवल कानून-व्यवस्था बनाए रखेगा, बल्कि सामाजिक एकता को भी मजबूत करेगा।
छत पर नमाज़ ना पढ़ने के तुगलकी फरमान का अब तो सोशल मीडिया पर भी मज़ाक उड़ाया जा रहा है।किसी ने फेसबुक पर लिखा है,