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वक्फ संपत्ति विवाद: मोदी के ‘पंचर’ बयान पर गरमाई सियासत
हरियाणा के हिसार में 14 अप्रैल, 2025 को एक रैली के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वक्फ संपत्तियों को लेकर बड़ा बयान दिया, जिसने सियासी तूफान खड़ा कर दिया। उन्होंने वक्फ बोर्ड की कथित अक्षमता और भू-माफियाओं द्वारा संपत्तियों के दुरुपयोग पर सवाल उठाए। लेकिन उनके “पंचर बनाने” वाले तंज ने विवाद को और हवा दी। जवाब में, कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने इसे मेहनतकश लोगों का अपमान और संविधान-विरोधी करार दिया।
वक्फ संपत्ति ,मंशा से बंधा खजाना
वक्फ वह संपत्ति है, जो कोई व्यक्ति अल्लाह के नाम पर दान करता है। वक्फ एक्ट, 1995 के मुताबिक, इसकी आय का इस्तेमाल सिर्फ दानकर्ता (वाकिफ) की इच्छा के अनुसार हो सकता है। मिसाल के तौर पर, अगर किसी ने अपनी जमीन मस्जिद की देखरेख या धार्मिक कार्यों के लिए दी, तो उसका पैसा शिक्षा, चिकित्सा या गरीबों की मदद के लिए खर्च नहीं किया जा सकता। अगर वाकिफ ने स्कूल या अस्पताल के लिए दान दिया, तभी उस दिशा में कदम उठाया जा सकता है।
वक्फ बोर्ड के पास करीब 9.4 लाख एकड़ जमीन है, जिसकी अनुमानित कीमत 1.2 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा है। सरकारी अनुमानों के अनुसार, यह संपत्ति हर साल 12,000 करोड़ रुपये की आय दे सकती है, लेकिन हकीकत में सिर्फ 163 करोड़ रुपये ही जुट पा रहे हैं। हालांकि मोदी जी ने ये आंकड़े तो पेश किए लेकिन इसमें खर्च कितना हो जाता है,ये नहीं बताया। आगे मोदी जी ने कहा कि अतिक्रमण, भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन इसकी बड़ी वजहें हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या इसका पूरा फायदा मुस्लिम समुदाय को मिल सकता था, जैसा कि मोदी ने दावा किया?
मोदी का बयान: सच या सियासत?
प्रधानमंत्री ने कहा कि अगर वक्फ संपत्तियों का सही प्रबंधन हुआ होता, तो मुस्लिम समुदाय की हालत बेहतर होती और युवा “साइकिल का पंचर बनाने” जैसे छोटे कामों तक सीमित नहीं रहते। उन्होंने भू-माफियाओं पर संपत्तियों को हड़पने का आरोप लगाया, जिससे गरीब मुस्लिमों को कोई फायदा नहीं मिला।
मोदी का यह दावा कि संपत्तियों का दुरुपयोग हुआ, आंकड़ों की रोशनी में कुछ हद तक सही है। लेकिन वक्फ की आय का इस्तेमाल वाकिफ की शर्तों से बंधा है। अगर दानकर्ता ने जमीन सिर्फ मस्जिद या कब्रिस्तान के लिए दी, तो उसे फैक्ट्री खोलने या रोजगार सृजन में नहीं लगाया जा सकता। बिना कानूनी बदलाव के इस तरह के सुधार असंभव हैं। ऐसे में, मोदी का यह कहना कि सही प्रबंधन से सब बदल जाता, पूरी तरह सटीक नहीं है।
इसके अलावा, “पंचर बनाने” वाला बयान कई लोगों को चुभ गया। पंचर बनाना, चाय बेचना या छोटा-मोटा कारोबार करना मेहनत और आत्मसम्मान की निशानी है। इसे छोटा बताकर मेहनतकश लोगों की भावनाएं आहत हुईं। क्या यह बयान सियासी निशाना साधने का जरिया था, या अनजाने में चुनी गई गलत मिसाल?
इमरान प्रतापगढ़ी का तीखा पलटवार
कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने मोदी के बयान पर कड़ा ऐतराज जताया। उन्होंने कहा, “‘पंचर बनाना’ जैसी भाषा सोशल मीडिया के ट्रोल इस्तेमाल करते हैं, न कि देश का प्रधानमंत्री। मेहनत से जीविका कमाना अपमान नहीं, गर्व की बात है।” प्रतापगढ़ी ने वक्फ (संशोधन) बिल, 2024—जो 2025 में पारित हुआ—को भी आड़े हाथों लिया। उन्होंने इसे मुस्लिम संपत्तियों को छीनने की साजिश और संविधान के अनुच्छेद 26 (धार्मिक स्वतंत्रता) का उल्लंघन बताया।
उन्होंने सरकार से सवाल किया, “अगर आप पारदर्शिता की बात करते हैं, तो हिंदू मंदिरों के बोर्ड में गैर-हिंदुओं को क्यों नहीं शामिल करते? आपने अपने दल के मुस्लिम नेताओं—जैसे मुख्तार अब्बास नकवी और शाहनवाज हुसैन—को भी डस्टबिन में डाल दिया।” प्रतापगढ़ी ने यह भी आरोप लगाया कि सरकार वक्फ बिल के बहाने असल मुद्दों, जैसे अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए 26% टैरिफ, से ध्यान हटाना चाहती है।
वक्फ बिल: बदलाव की कोशिश या सियासी हथकंडा?
वक्फ (संशोधन) बिल, 2025 का मकसद कथित तौर पर पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाना है। इसमें संपत्तियों का डिजिटल रिकॉर्ड, अतिक्रमण रोकने और प्रबंधन को मजबूत करने जैसे प्रावधान हैं। लेकिन आलोचकों का कहना है कि यह बिल वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता पर चोट करता है और धार्मिक मामलों में दखल देता है। अगर वाकिफ की मंशा का सम्मान नहीं हुआ, तो यह कानूनन और नैतिक रूप से गलत होगा।
वक्फ संपत्तियों का दुरुपयोग रोकना जरूरी है, लेकिन इसके लिए सियासी बयानबाजी से ज्यादा ठोस कदम चाहिए। भ्रष्टाचार पर लगाम, अतिक्रमण हटाने और पारदर्शी प्रबंधन से ही समुदाय को फायदा मिल सकता है। लेकिन सबसे अहम है वाकिफ की मंशा का सम्मान, क्योंकि वक्फ का आधार ही यही है।
मोदी के बयान पर प्रतापगढ़ी का जवाब
इस मुद्दे को सुर्खियों में लाए हैं, लेकिन असल सवाल वही है—क्या यह विवाद समाधान की ओर ले जाएगा, या सिर्फ सियासत का शोर बनकर रह जाएगा? और हां, पंचर बनाना या कोई भी मेहनत का काम छोटा नहीं। यह हर उस शख्स की शान है, जो अपने दम पर जिंदगी संवारता है।