अक़ीदत मंदों ने की रोते हुए ताबूतों की ज़ियारत
लखनऊ (सवांददाता) सब्रो, वफ़ा, तहम्मुल, अख़लाक़ और शुजाअत | जिसकों जो सीखना हो सीखे वो कर्बला से || अंजुमन शब्बीरिया की जानिब से हर बरस की तरह आज भी इमामबाड़े में कर्बला के बहत्तर शहीदों का ताबूत निकाला गया | ताबूत से क़ब्ल इमामबाड़े में मजलिस का इनएक़ाद हुआ, मजलिस को ज़ाकिरे एहलेबैत तक़ी रज़ा ने ख़िताब किया | मजलिस के बाद इमामबाड़ा परिसर में बहत्तर कर्बला वालों के ताबूत बरामद हुए | इस बीच अक़ीदत मंदों ने हज़ारों की तादाद में जुलुस में शिरकत की और कर्बला के शहीदों को अपने आसुओं का पुरसा दिया | जुलुस के बाद इमामबाड़े में बहत्तर ताबूतों की ज़ियारत के लिए उन्हें रख दिया गया | शबभर अक़ीदत मंद इन ताबूतों की ज़ियारत करते रहेंगे |
क्या है कर्बोबला का अर्थ
दरअस्ल कर्बोबला अरबी का एक शब्द है इसको अगर संधि विच्छेद किया जाये तो कर्ब व बला लिखा जायेगा | कर्ब का मतलब होता है तकलीफ और बला का मतलब होता है मुसीबत, अब दोनों को यदि मिलाया जाये तो इसका अर्थ तकलीफ और मुसीबत की जगह निकलेगा |
क्यों हुई थी कर्बला की जंग
हज़रत इमाम हुसैन (अ स) हज़रत पैगम्बर मोहम्मद मुस्तफा (अ स ) के नवासे थे और हज़रत अली (अ स ) के बेटे थे | हज़रत अली अ स की शहादत के बाद उनके बड़े बेटे हज़रत इमाम हसन (अ स ) इमाम बने और इनकी शहादत के बाद इमाम हसन के छोटे भाई हज़रत इमाम हुसैन इमाम नियुक्त हुए | हज़रत इमाम हुसैन (अ स ) के समय यज़ीद की हुकूमत थी और वो इस्लाम की नक़ाब पहन कर अल्लाह के दीन को बदलना चाहता था | वो हक़ को बातिल और बातिल को हक़ करना चाहता था | इसीलिए उसने उस दौर के तमाम लोगों को हर तहर के प्रलोभन देकर खुद को सही रास्ते पर बताने का एलान कर दिया | लेकिन वो ये जानता था कि अगर हुसैन ने उसके कारनामों को स्वीकृति नहीं दी तो दुनिया उसको ठुकरा देगी, इसी सोच के चलते उसने हुसैन से बैत तलब की, लेकिन हुसैन ने उसकी बैत से इंकार कर दिया | क्योकि हुसैन जानते थे कि अगर उन्होंने यज़ीद से बैत कर ली तो अल्लाह के दीन का मक़सद ख़त्म हो जायेगा | हुसैन ने यज़ीद की बैत करने से जब इंकार किया तो यज़ीद का हुक्म हुआ कि या तो हुसैन बैत करे या फिर जंग को तैयार रहे | इमाम हुसैन नहीं चाहते थे कि मदीने में किसी का खून बहे, इसलिए उन्होंने कहा कि यज़ीद मुझे हिन्द यानि भारत चला जाने दो, लेकिन यज़ीद ने उन्हें हिंदुस्तान जाने से मना कर दिया | हुसैन ने आखिर में उस कर्बोबला जाने का फैसला किया जहाँ सिर्फ जंगल था | हुसैन के वहा आते ही सात मुहर्रम से दरिया पर यज़ीद के लश्कर का पहरा लग गया और पानी बंद कर दिया गया | हुसैन को मिलाकर कुल बहत्तर लोग इधर थे और उधर यज़ीद का नौ लाख का लश्कर था | दस मुहर्रम को सुबह फज्र की नमाज़ हुसैन के अंसार और हुसैन ने इधर पड़ी और उधर यज़ीद के लश्कर ने भी नमाज़ पड़ी | सुबह से जंग शुरू हुई असर के वक़्त तक सिर्फ बहत्तर में से इधर हुसैन अकेले बचे थे और सब शहीद हो चुके थे | आखिर में हुसैन ने भी जंग की ,और यज़ीद के लश्कर पर ऐसे हमले किये कि यज़ीद की फौज हुसैन से पनाह मांगने लगी | इतने में अल्लाह की तरफ से आवाज़ आई कि ये नफ़्से मुतमइन्ना सब्र कर और मेरी तरफ पलट आ | ये सुनते ही हुसैन ने अपनी तलवार मियाम में रखी और थोड़ी ही देर बाद यज़ीद के लश्कर ने चारों तरफ से तीरों की बारिश कर दी , जिसके पास जो था वो हुसैन की तरफ फेक रहा था , हद ये है कि जिसको कुछ नहीं मिला वो मज़लूम इमाम की तरफ पत्थर मार रहा था | अब हुसैन ने खुद और अपने पूरे साथियों समेत शहादत का जाम पीकर ये साबित कर दिया कि किसके पास असली दीन है किसके पास नक़ली दीन है | इसीलिए हुसैन शहीद होने के बाद भी अपने मक़सद में कामयाब रहे और यज़ीद बा ज़ाहिर जंग जीतने के बाद भी ऐसा हारा कि आजतक उसपर दुनिया भर में लानत हो रही है | आज यज़ीद के मानने वाले मुसलमानों को दुनिया आतंकवादी कहती है और हुसैन के मानने वालों से दुनिया प्यार करती है | क्योकि हुसैन ने कर्बला से वो सीख दी है जिसमे प्यार, बलिदान, त्याग और इंसानियत का सन्देश मिलता है | कर्बला को हर इंसान अगर गौर से सुने और समझे तो संसार में अम्नो अमान क़ायम हो सकता है | आखिर में हुसैन के लिए ये कहना गलत नहीं होगा कि,
हम साहिबे किरदार जो होते न जहाँ में |
बैयत का कभी हमसे तक़ाज़ा नहीं होता ||