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दुबग्गा में वन माफिया का काला कारोबार: 10 पेड़ों की परमिट पर 20 से ज्यादा पेड़ काटे,पर्यावरण पर संकट, योगी के ‘हरित प्रदेश’ सपने को लगातार झटका!
ज़की भारतीय
लखनऊ, 25 अक्टूबर 2025। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के दुबग्गा क्षेत्र में वन विभाग का काला चेहरा एक बार फिर उजागर हो गया है। यहां भ्रष्टाचार की गहरी जड़ें जमाए हुए वन माफिया और विभागीय अधिकारी-कर्मचारियों की मिलीभगत से अवैध पेड़ कटाई का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। महज 10 पेड़ों की आधिकारिक परमिट जारी करने के नाम पर रिश्वत के लालच में 15 से 20 हरे-भरे पेड़ कटवा दिए।
यह न सिर्फ पर्यावरण के लिए घातक है, बल्कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ‘प्रदूषण मुक्त उत्तर प्रदेश’ के संकल्प को भी लगातार चुनौती दे रहा है। स्थानीय ग्रामीणों की शिकायतों के बावजूद विभाग की ‘आंखें बंद’ नीति ने पूरे इलाके में आक्रोश पैदा कर दिया है।
सैदपुर महरी गांव: आम के फलदार पेड़ों का कत्लेआम
यह मामला लखनऊ के दुबग्गा वन रेंज के अंतर्गत आने वाले सैदपुर महरी गांव का है, जहां हाल के दिनों में आम के सैकड़ों हरे-भरे और फलदार पेड़ों को बेरहमी से काट दिया गया। ग्रामीणों के अनुसार, वन विभाग ने केवल 10 पेड़ों की कटाई के लिए परमिट जारी किया था, लेकिन सूत्रों का दावा है कि वन माफियाओं ने इसका पूरा फायदा उठाया। रात के अंधेरे में आरा मशीनों से दर्जनों पेड़ों को चूर-चूर कर दिया गया। इतना ही नहीं, कटाई के बाद ठूंठों को उखाड़कर सबूतों को मिटाने का काम भी किया गया, ताकि विभाग की जांच में कुछ हाथ न लगे। “हमने कई बार वन विभाग को सूचना दी, लेकिन अधिकारी मौके पर पहुंचे तो सिर्फ चाय-पानी पीकर लौट गए।
कार्रवाई का नामोनिशान नहीं!” – यही शिकायत सैदपुर महरी के ग्रामीणों की है। एक बुजुर्ग किसान ने बताया, “ये पेड़ हमारी सांसें हैं। फलदार आम के ये वृक्ष न सिर्फ छाया देते थे, बल्कि फसल के मौसम में आम की कमाई से परिवार पालते थे। अब ये खाली जमीनें प्लॉटिंग के लिए तैयार हो रही हैं, और हम बेघर हो रहे हैं।” स्थानीय लोगों ने खुलासा किया कि कटाई के दौरान वन विभाग के कर्मचारी कई बार मौके पर दिखे, लेकिन उन्होंने ‘आंखें फेर लीं’। इससे साफ संकेत मिलता है कि यह पूरा खेल विभागीय भ्रष्टाचार और लकड़ी माफियाओं की सांठगांठ का नतीजा है।
भ्रष्टाचार की परतें: रिश्वत का ‘फॉर्मूला’ और सुविधा शुल्क का खेल
उत्तर प्रदेश के वन विभाग में यह सिलसिला कोई नई बात नहीं है। सूत्रों के मुताबिक, प्रॉपर्टी डीलरों और ठेकेदारों से ‘सुविधा शुल्क’ के नाम पर मोटी रकम वसूली जाती है। अगर 10 पेड़ों की परमिशन दी जाती है, तो उसी आड़ में 100-150 या कभी-कभी 300 पेड़ काट लिए जाते हैं। लकड़ी की तस्करी से अर्जित कमाई का एक हिस्सा सीधे अधिकारियों की जेब में जाता है। इस मामले में एक वन विभाग कर्मचारी मोइन खान का नाम भी बार-बार चर्चा में आ रहा है। ग्रामीणों का आरोप है कि खान ने न सिर्फ कटाई की अनदेखी की, बल्कि माफियाओं को ‘सुरक्षित रास्ता’ भी मुहैया कराया। विभाग के मोबाइल नंबरों पर कॉल्स की बौछार हुई, लेकिन जवाब में सन्नाटा ही मिला।
यह सिर्फ सैदपुर महरी तक सीमित नहीं। हाल के महीनों में दुबग्गा वन रेंज में ही 27 हरे-भरे आम पेड़ों की रातोंरात कटाई हो चुकी है, जहां बुलडोजर से सबूत मिटाए गए। सरोजनी नगर क्षेत्र में भी डिप्टी रेंजर की कथित मदद से 18 आम पेड़ काटे गए, और सहिजनपुर में 10 फलदार पेड़ ‘गायब’ हो गए। इन घटनाओं से साफ है कि वन माफिया का नेटवर्क कितना मजबूत है। आसपास प्लॉटिंग का धंधा जोरों पर है – दुबग्गा में कानपुर रिंग रोड के पास अवैध कॉलोनियां उमड़ रही हैं, जहां पेड़ काटकर व्यावसायिक निर्माण खड़े हो रहे। LDA ने हाल ही में दुबग्गा के कुसमोरा हलुआपुर में 7 अवैध प्लॉटिंग ध्वस्त कीं, लेकिन वन विभाग की निष्क्रियता से ये प्रयास अधूरे साबित हो रहे हैं।
पर्यावरण पर खतरा: वृक्षारोपण का ढोंग और कटाई का सच
मजेदार बात यह है कि एक तरफ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और लखनऊ महापौर संयुक्ता भाटिया के नेतृत्व में नगर निगम व वन विभाग ‘वृक्षारोपण अभियान’ चला रहे हैं, तो दूसरी तरफ यही पेड़ अवैध रूप से कट रहे हैं। “500 पेड़ काटने हैं तो 50 की परमिशन लो, बाकी की लकड़ी बेच दो!” – यह विडंबना ग्रामीणों की जुबान पर है। इन पेड़ों की वजह से लखनऊ प्रदूषण मुक्त रह सकता था, लेकिन भ्रष्टाचार ने सब बर्बाद कर दिया। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी अंधाधुंध कटाई से न सिर्फ जैव विविधता खतरे में पड़ रही है, बल्कि जल स्तर गिरने और गर्मी बढ़ने का संकट भी मंडरा रहा है।
ग्रामीणों का विद्रोह: DM को ज्ञापन, कार्रवाई की मांग
क्रोधित ग्रामीण अब चुप नहीं बैठेंगे। कल (26 अक्टूबर) सैदपुर महरी के लोग जिलाधिकारी लखनऊ को एक ज्ञापन सौंपेंगे, जिसमें वन विभाग की उच्चस्तरीय जांच, दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई और कटे पेड़ों के बदले मुआवजे की मांग की जाएगी। “पत्रकार फोन कर रहे हैं, ठेकेदार नहीं। लकड़ी वाले तो भाग चुके!” – एक ग्रामीण ने व्यंग्य किया। इस बीच, विभाग से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन सूत्र बताते हैं कि ऊपर से दबाव बढ़ा है।
क्या यह मामला ठंडा पड़ जाएगा, या योगी सरकार का बुलडोजर वन माफियाओं पर चलेगा? सैदपुर महरी के पेड़ चीख रहे हैं – पर्यावरण बचाओ, भ्रष्टाचार मिटाओ! यह सवाल पूरे उत्तर प्रदेश के हरित भविष्य से जुड़ा है।
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