लखनऊ, संवाददाता । जश्ने मौलूदे काबा के विषय पर आधारित धार्मिक कवि संगोष्ठी का कल सांय 9 बजे डॉ. सय्यद शबीब हैदर के निवास बैत-ए- फ़ातेमा ,पल्ली हिल बांद्रा वेस्ट मुम्बई में आयोजिन हुआ।
आयोजन का प्रारंभ पवित्र कुरआन के श्लोकों से किया गया जिसके बाद हदीसे किसा की तिलावत हुई ।
संगोष्ठी का संचालन गुलज़ार जी ने किया। समय पर शुरू हुए इस समारोह में मुम्बई और मुम्बई के बाहर से आए कवियों ने अपने अपने कलाम से समारोह में चार चांद लगा दिए,जब्कि आखिर में लखनऊ से आए शिया धर्मगुरु मीसम ज़ैदी ने हज़रत अली के जीवन पर प्रकाश डाला। इस समारोह में मुम्बई के कवियों में
जफर रिज़वी,अली अब्बास वफ़ा,मंज़र हुसैन ,आबिस हुसैन और अतहर अली के नाम शामिल थे। अंतराष्टीय ख्याति प्राप्त कवियों में नय्यर मजीदी,वक़ार सुल्तानपुरी, ज़की भारतीय और ज़ामिन मोहम्दाबादी के नाम शामिल थे।
कवि संगोष्ठी का संचालन कर रहे गुलज़ार ने सबसे पहले कवि, मुर्तुज़ा अली को कविता पढ़ने के लिए आमंत्रित किया। जिसके बाद अहसन हुसैन,अतहर हुसैन,आबिस हुसैन ,मंज़र हुसैन और अब्बास वफ़ा ने हज़रत अली (अ.स) की शान में कविताओं से श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर दिया। इसी तरह ज़मीन मोहम्मद ,ज़की भारती ,वक़ार सुल्तानपुरी और नय्यर मजीदी ने भी हज़रत अली (अ.स) की शान में उत्कृत कविताएँ प्रस्तुत की।
कवियों के बाद धर्मगुरु मीसम ज़ैदी ने हज़रत अली के जीवन पर प्रकाश डालते हुए हज़रत पैगम्बर मोहम्मद मुस्तुफा (स अ व व) को सूरज और हज़रत अली (अ स) को चाँद बताते हुए पवित्र ग्रंथ क़ुरआन के उस शलोक का उल्लेख किया जिसमें रसूल को सूरज और हज़रत अली (अ स) को चाँद कहा गया है।
उन्होंने कहा कि लोग ये कहते हैं कि हम लोग हज़रत अली (अ स) की प्रशंसा पर जोश में आ जाते हैं और मोहम्मद साहब के ज़िक्र पर जोश में नहीं आते हैं।
उन्होंने कहा कि लोगों का कहना है के हज़रत मोहम्मद मुस्तुफा अली से ज़्यादा श्रेष्ठ थे और अली उनके मुकाबले कम श्रेष्ठ थे। उन्होंने कहा कि इस घराने में सब मोहम्मद हैं सब बराबर हैं ,कोई किसी से कम नहीं है। लेकिन जो ये कहते हैं कि हम लोग अली को रसूल से आगे बढ़ा देते हैं,तो वो सुन लें कि अली के फ़ज़ाएल की हम इब्तिदा से भी वाकिफ़ नहीं तो हम उनकी फ़ज़ीलत की इन्तेहा कहाँ से कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि हम तो सिर्फ इतना जानते हैं कि जिसको लोग अपना खुदा हैं वो खुद को अलख का बंदा कहते हैं। उन्होंने कहा कि जब सूरज डूबने लगता है तो चाँद उसके ऊपर आ जाता है। जिस तरह हज़रत मोहम्मद मुस्तुफा ने ग़दीर के मैदान में हज़रत अली अस को अपने हाथों पर उठाया था। उन्होंने कहा कि जब सूरज डूब जाता है तब समंदर की लहरों को जोश आने लगता है ।उन्होंने कहा कि समन्दर को जोश आता है तालाब को नहीं।
उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि जिस तरह सूरज डूबते डूबते रात के अंधकार को खत्म करने के लिए चंद को अपना उत्तराधिकारी बनाकर छोड़ जाता है,ठीक इसी तरह रसूल ने इस संसार को छोड़ने से पूर्व अली अस को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।
धर्मगुरु मीसम ज़ैदी के संबोधन के बाद समारोह खत्म हो गया।
लोगों ने ऐक दूसरे को गले लगाकर मुबारक बाद दी।