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वक्फ संशोधन बिल का जिन्न संसद की बोतल से बाहर,232 के मुक़ाबले 288 मतों ने विधेयक पर लगाई मोहर
लखनऊ,3 अप्रैल। मुस्लिम वक्फ संशोधन बिल का जिन्न बोतल से बाहर आ गया है। भारतीय जनता पार्टी जहां इस बिल को लागू करने पर अड़ी हुई थी वहीं भाजपा विरोधी दल इस बिल का विरोध कर रहे थे। इसके अलावा ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सहित भारत के मुस्लिम धर्मगुरु भी इसके विरोध में हैं। दिल्ली के जंतर मंतर से लेकर भारत में कई तरफ इस बिल के खिलाफ प्रदर्शन किए गए हैं । बावजूद इसके भारतीय जनता पार्टी कि केंद्र सरकार ने इस बिल पर बहुमत की मोहर लगाकर हर प्रकार के विरोध पर पूर्ण विराम लगा दिया है। भाजपा ने वक्फ बोर्ड को जिला अधिकारी के हाथों की कठपुतली बनाकर उसे अपने हाथों में लेने का सफल प्रयास कर लिया है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मुस्लिम वक्फ बोर्ड पर तकरीबन साल भर से आरोप लगाए जा रहे हैं कि मुस्लिम वक्फ बोर्ड दूसरों की भूमियों पर अवैध रूप से कब्जे कर लेता है और उसे अपनी संपत्ति बताता है। लेकिन यह भी सच है कि वक्फ की संपत्तियों पर नाजायज कब्जे सिर्फ बोर्ड की ओर से नहीं, बल्कि बाहरी लोगों या स्थानीय प्रभावशाली व्यक्तियों द्वारा भी किए गए हैं। भारत में वक्फ बोर्ड के पास करीब 8 लाख से अधिक संपत्तियां हैं, और इनमें से कई पर दशकों से अवैध कब्जे चल रहे हैं। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश में सुन्नी वक्फ बोर्ड के पास 2 लाख से ज्यादा और शिया वक्फ बोर्ड के पास 15 हजार से अधिक संपत्तियां हैं, जिनमें से कुछ पर विवाद चल रहा है।
वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024
यह विधेयक लोकसभा में पारित हो चुका है। 2 अप्रैल 2025 को देर रात लगभग 1:56 बजे, 12 घंटे से अधिक समय तक चली चर्चा और मतदान के बाद, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने घोषणा की कि विधेयक को 288 मतों के पक्ष में और 232 मतों के विरोध में बहुमत से मंजूरी मिल गई है। अब यह विधेयक राज्यसभा में पेश किया जाएगा, जहां इस पर आगे की चर्चा और मतदान होगा।विपक्षी दलों ने इस विधेयक का कड़ा विरोध किया, इसे अल्पसंख्यक समुदाय के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करार दिया, जबकि सरकार और समर्थकों का कहना है कि यह वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के लिए जरूरी है। केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि इस विधेयक में धार्मिक स्थलों या प्रथाओं में हस्तक्षेप का कोई प्रावधान नहीं है, बल्कि यह केवल संपत्ति प्रबंधन से संबंधित है।अगला कदम राज्यसभा में इसकी प्रगति पर निर्भर करता है, जहां सत्तारूढ़ एनडीए को अपनी सहयोगी पार्टियों के समर्थन के साथ इसे पारित कराने की चुनौती होगी। अभी तक राज्यसभा में इसकी तारीख तय नहीं हुई है, लेकिन यह बजट सत्र के दौरान चर्चा में रहने की संभावना है।
वक्फ संशोधन विधेयक में क्या है?
वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024, वक्फ अधिनियम 1995 में बदलाव लाने वाला एक कानून है। इसका मकसद वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता लाना और दुरुपयोग को रोकना है।
इस विधेयक में कुछ मुख्य बदलाव शामिल हैं:
वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों और महिलाओं को शामिल करने का प्रावधान किया गया है।
कलेक्टर की भूमिका:
अब जिलाधीश (कलेक्टर) को वक्फ संपत्तियों का सर्वे करने का अधिकार दिया गया है।हाईकोर्ट में अपील: वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसलों को हाईकोर्ट में चुनौती दी जा सकेगी, जो पहले संभव नहीं था।
संपत्ति पर नियंत्रण:
अगर कोई सरकारी संपत्ति वक्फ के रूप में चिह्नित है, तो उसकी जांच कलेक्टर करेगा और वह वक्फ नहीं मानी जाएगी।
अभी की स्थिति
यह विधेयक अभी राज्यसभा में पेश होने वाला है। विपक्षी दलों ने इसका विरोध किया है और इसे लेकर राजनीतिक बहस जारी है। अगर यह राज्यसभा से भी पास हो जाता है, तो यह कानून बन जाएगा। फिलहाल, इसकी प्रक्रिया चल रही है और अंतिम फैसला बाकी है।
वक्फ संशोधन विधेयक 2025 की हानियां, लाभ और आवश्यकता
वक्फ संशोधन विधेयक 2024, जो अब 2025 में चर्चा में है, भारतीय संसद में पिछले साल पेश किया गया था। यह विधेयक वक्फ अधिनियम, 1995 में बदलाव लाने के उद्देश्य से लाया गया है। वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और नियमन में सुधार के लिए सरकार ने इसे जरूरी बताया है, लेकिन इसके पक्ष और विपक्ष में कई तर्क सामने आए हैं। आइए, इसकी संभावित हानियों, लाभों, आवश्यकता और इसके पीछे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की मंशा पर नजर डालते हैं।
संभावित हानियां
विपक्षी दलों और मुस्लिम संगठनों का कहना है कि यह विधेयक संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन कर सकता है, जो धार्मिक समुदायों को अपने मामलों के प्रबंधन का अधिकार देता है। गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड में शामिल करने से धार्मिक स्वायत्तता कम हो सकती है।
संपत्ति पर विवाद बढ़ना:
वक्फ संपत्तियों के दावों की जांच के लिए जिला कलेक्टर या राज्य सरकार के अधिकारियों की नियुक्ति से नए विवाद पैदा हो सकते हैं। कई लोग इसे सरकारी हस्तक्षेप के रूप में देखते हैं।
समुदाय में अविश्वास:
कुछ मुस्लिम नेताओं, जैसे असदुद्दीन ओवैसी, का मानना है कि यह विधेयक वक्फ संपत्तियों को कमजोर करने या छीनने की साजिश है, जिससे मुस्लिम समुदाय में असुरक्षा की भावना बढ़ सकती है।
प्रशासनिक जटिलता:
संपत्तियों के पंजीकरण और सत्यापन की नई प्रक्रिया से प्रबंधन में देरी और नौकरशाही बढ़ सकती है।
संभावित लाभ पारदर्शिता और जवाबदेही:
विधेयक में वक्फ संपत्तियों के लिए केंद्रीय पोर्टल और डेटाबेस का प्रावधान है, जिससे प्रबंधन में पारदर्शिता बढ़ सकती है। भ्रष्टाचार के आरोपों को कम करने में मदद मिल सकती है।
महिलाओं और कमजोर वर्गों को प्रतिनिधित्व:
विधेयक में मुस्लिम महिलाओं और पिछड़े वर्गों को वक्फ बोर्ड में जगह देने की बात है, जिससे सामाजिक समावेश को बढ़ावा मिलेगा।
संपत्ति के दुरुपयोग पर रोक
वक्फ बोर्ड की अनियंत्रित शक्तियों पर अंकुश लगाने और संपत्तियों के सत्यापन की व्यवस्था से इनके दुरुपयोग को रोका जा सकता है।
कानूनी स्पष्टता
यह विधेयक वक्फ के गठन के लिए सख्त नियम लाता है, जैसे कि इसे बनाने वाले को कम से कम पांच साल तक इस्लाम का पालन करना जरूरी होगा, जिससे कानूनी विवाद कम हो सकते हैं।
आवश्यकता क्यों?
वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में लंबे समय से अनियमितताओं और भ्रष्टाचार की शिकायतें आ रही हैं। करीब 9.5 लाख एकड़ जमीन वक्फ के अधीन है, लेकिन इसके प्रबंधन में पारदर्शिता की कमी और शक्तिशाली लोगों द्वारा दुरुपयोग के आरोप लगते रहे हैं। गरीब मुस्लिम महिलाओं, तलाकशुदा महिलाओं और अल्पसंख्यक समुदायों ने भी वक्फ व्यवस्था में सुधार की मांग की थी। 2013 में यूपीए सरकार ने वक्फ बोर्ड की शक्तियों को बढ़ाया था, लेकिन अब सरकार का कहना है कि इससे समस्याएं और गहरी हुई हैं। इसीलिए इस संशोधन को जरूरी माना जा रहा है ताकि प्रबंधन को कुशल और निष्पक्ष बनाया जा सके।
क्यों लाया जा रहा है ये क़ानून?
सरकार का दावा है कि यह विधेयक वक्फ संपत्तियों के बेहतर उपयोग और प्रबंधन के लिए लाया जा रहा है। केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि इसका मकसद वक्फ बोर्ड की मनमानी शक्तियों को सीमित करना और संपत्तियों के दावों की जांच करना है। संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) ने भी 14 संशोधनों को मंजूरी दी है, जिसमें प्रशासनिक सुधार और इस्लामिक कानून के विशेषज्ञों को शामिल करना शामिल है। सरकार इसे आधुनिकीकरण और संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप बनाने की कोशिश बता रही है।
क्या है भाजपा की मंशा
भाजपा और उसके समर्थकों का कहना है कि यह विधेयक मुस्लिम समुदाय के कमजोर वर्गों, खासकर महिलाओं और बच्चों, के हित में है। पार्टी का दावा है कि यह भ्रष्टाचार को खत्म कर वक्फ को जनकल्याण के लिए इस्तेमाल करने की दिशा में कदम है। हालांकि, विपक्ष और आलोचक इसे भाजपा की “हिंदुत्व नीति” का हिस्सा मानते हैं। उनका आरोप है कि भाजपा वक्फ संपत्तियों पर नियंत्रण चाहती है और मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता को कमजोर करना इसका उद्देश्य है। कुछ का मानना है कि यह विधेयक भाजपा के राजनीतिक आधार को मजबूत करने और बहुसंख्यक समुदाय को संदेश देने की रणनीति का हिस्सा हो सकता है।
वक्फ संशोधन विधेयक 2025 एक जटिल और संवेदनशील मुद्दा है। जहां इसके लाभ में पारदर्शिता और समावेशिता की बात है, वहीं हानियों में धार्मिक स्वायत्तता और सामुदायिक विश्वास पर असर की आशंका जताई जा रही है। इसकी आवश्यकता वक्फ व्यवस्था में सुधार के लिए साफ है, लेकिन इसके पीछे भाजपा की मंशा पर सवाल उठ रहे हैं। यह विधेयक संसद में पारित हो चुका है और इस क़ानून पर बहुमत की मोहर भी लग चुकी है।
लेकिन ये भी तय है कि यह क़ानून आने वाले समय में सत्तारूढ़ गठबंधन और विपक्ष के बीच तीखी बहस का विषय बना रहेगा।
वक़्फ़ बोर्ड का गठन और इसके प्रबंधन से संबंधित कानूनों में समय-समय पर हुए हैं संशोधन
भारत में वक्फ संपत्तियों को नियंत्रित करने वाले कानून की शुरुआत औपनिवेशिक काल से हुई थी, और आजादी के बाद इसमें कई बदलाव किए गए। नीचे वक्फ कानून के गठन और 2024 तक हुए प्रमुख संशोधनों का विवरण दिया जा रहा है।
मुस्लिम वक्फ अधिनियम, 1923
यह वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन के लिए पहला औपचारिक कानून था। इसे ब्रिटिश शासन के दौरान लागू किया गया था, लेकिन इसमें कई कमियाँ थीं, जिसके कारण बाद में संशोधन की आवश्यकता पड़ी।वक्फ अधिनियम, 1954: आजादी के बाद, भारत सरकार ने वक्फ संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन के लिए वक्फ अधिनियम, 1954 पारित किया। यह एक व्यापक कानून था, जिसके तहत राज्य स्तर पर वक्फ बोर्ड की स्थापना की गई। इस अधिनियम में बाद में कई संशोधन किए गए। और 1964 में संशोधन किए गए ,इसमें कुछ प्रशासनिक सुधार किए गए।
1969 में संशोधन
वक्फ बोर्ड के अधिकारों और कर्तव्यों को और स्पष्ट किया गया।1
1984 में संशोधन
इस संशोधन में वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग को रोकने के लिए प्रावधान जोड़े गए।वक्फ अधिनियम, 1995: यह एक नया और व्यापक कानून था, जिसने 1954 के अधिनियम को प्रतिस्थापित किया। इसे वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को और पारदर्शी बनाने के लिए लागू किया गया। इस अधिनियम के तहत केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्ड को मजबूत किया गया।
वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2013,1995 के अधिनियम में बड़े पैमाने पर संशोधन किया गया।
इस संशोधन के प्रमुख बिंदु
अतिक्रमण करने वाले की परिभाषा को शामिल करना।वक्फ बोर्ड की संपत्तियों पर अधिक निगरानी और पारदर्शिता।वक्फ ट्रिब्यूनल के आकार और अधिकारों का विस्तार।वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024: यह विधेयक 8 अगस्त 2024 को लोकसभा में पेश किया गया। यह 1995 के अधिनियम में संशोधन करने और इसे “यूनाइटेड वक्फ मैनेजमेंट, एम्पावरमेंट, एफिशिएंसी एंड डेवलपमेंट एक्ट, 1995” (UWMEEDA) के रूप में नाम बदलने का प्रस्ताव करता है। इस विधेयक में कई बदलाव प्रस्तावित थे,जैसे:वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करना।वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण और विवाद निपटान में जिला कलेक्टर की भूमिका बढ़ाना।केवल 5 साल से अधिक समय से इस्लाम का पालन करने वाले व्यक्ति द्वारा वक्फ घोषित करने की शर्त शामिल थी।
1923 से 2024 तक, वक्फ से संबंधित कानूनों में कुल 5 प्रमुख संशोधन
1923 (प्रारंभिक कानून),1954 (नया अधिनियम और इसके बाद 1964, 1969, 1984 में संशोधन),1995 (नया अधिनियम),2013 (संशोधन),2024 ।इस तरह, 1923 से अब तक 4 बार कानून में संशोधन हो चुका है, और 2024 का संशोधन 5वां होगा।
मुस्लिम विद्वानों का कहना है कि जब वक़्फ़ ट्रिब्यूनल काम कर रहा है तो आखिर वक़्फ़ ट्रिब्यूनल के अधिकार छीनकर जिलाधिकारी को देने के पीछे सरकार की मंशा क्या है ?
जिलाधिकारी के पास यदि कोई कंप्लेंट करेगा तो जिलाधिकारी फौरन वक़्फ़ संपत्ति पर पाबंदी लगा देंगे। जिसके निस्तारण के लिए मुतवल्ली किसी भी अदालत नहीं जा सकेगा।
मुस्लिम तंजीमों और धर्मगुरुओं की माने तो इससे मुस्लिम वक्फ बोर्ड की संपत्तियों की हानि होना निश्चित रूप से तय है । वक्फ बोर्ड को और प्रभावशाली बनाए जाने और उसमें पारदर्शिता लाए जाने और जवाबदेही के नाम पर लाया जाने वाला यह बिल मुसलमान को मंजूर नहीं है।
क्या है मुस्लिम वक्फ बोर्ड
मुस्लिम वक्फ बोर्ड में वह संपत्तियां दर्ज होती हैं जो संपत्तियां क्रय करके दान दी जाती हैं । वक़्फ़ करने वाला व्यक्ति जिस संपत्ति को बोर्ड को दान करता है उसके लिए नियम और कानून बनाकर शर्तें तय करता है और उन्हीं शर्तों के तहत बोर्ड दान की हुई संपत्ति पर अपना अधिकार रखता है। इसमें दो तरह के मुतवल्ली शर्तों के तहत बनाए जाते हैं एक वक़्फ़ अलल औलाद और दूसरे वक़्फ़ अलल खैर ।
वक़्फ़ अलल औलाद में मुतवल्ली/ व्यवस्थापक उसी व्यक्ति के परिवार का होता है जिसने संपत्ति वक़्फ़ की होती है और वक़्फ़ अलल खैर में कोई भी मुतवल्ली/व्यवस्थापक नियुक्त किया जा सकता है।
अब जितनी भी संपत्तियां वक्फ बोर्ड को दान में मिलती हैं उन संपत्तियों पर मुस्लिम वक़्फ़ बोर्ड का अधिकार होता है। कुछ लोगों का तर्क है कि जितना क्षेत्रफल पाकिस्तान का है उससे भी अधिक भारत में वक़्फ़ संपत्तियां होती जा रही हैं। कुछ ऐसे लोग जो वक़्फ़ बोर्ड का ज़रा भी ज्ञान नहीं रखते, वो कहते हुए नज़र आ रहे हैं कि इन मुस्लिम वक्फ बोर्ड की संपत्तियां को गरीबों में बांट देना चाहिए। ज़रा इन लोगों से पूछा जाए कि ऐसा कैसे संभव है ?
किसी के विल के खिलाफ कैसे किसी की संपत्तियां छीनी जा सकती हैं ?
कट्टरपंथी हिंदू संगठनों और कट्टरपंथी हिंदुओं ने इसको एक बहुत बड़ा मुद्दा सोशल प्लेटफॉर्म पर बना दिया है ।
ये वक्फ संपत्तियां हैं कोई सरकारी भूमि पर अवैध रूप से बने हुए मंदिर या मजारें नहीं जिसे जब चाहे तोड़ दिया जाएं ।
अब इस संशोधन के बाद जहां वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसले की अंतिमता को समाप्त कर दिया जाएगा वहीं
अब कलेक्टर के आदेश के विरुद्ध हाई कोर्ट में अपील की जा सकती है।
पंजीकरण और पारदर्शिता
वक्फ संपत्तियों का पंजीकरण जिला कलेक्टर कार्यालय में अनिवार्य होगा, ताकि उनकी स्थिति स्पष्ट हो सके।
सरकार की नजरों में इस बिल का उद्देश्य
इस बिल का लक्ष्य वक्फ बोर्ड के कामकाज में पारदर्शिता, जवाबदेही और दक्षता लाना है। सरकार का कहना है कि यह संशोधन वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग और अतिक्रमण को रोकने में मदद करेगा। साथ ही, इसमें विभिन्न मुस्लिम समुदायों (जैसे शिया, बोहरा) और महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने की बात कही गई है।
विवाद और विरोध
कुछ मुस्लिम संगठन (जैसे ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड) और विपक्षी नेता (जैसे असदुद्दीन ओवैसी) इसे धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला मानते हैं। उनका कहना है कि यह वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता को कम करता है और गैर-मुस्लिमों को शामिल करना इस्लामी परंपराओं के खिलाफ है।
बिल के समर्थन में दिए गए तर्क
समर्थकों का तर्क है कि यह सुधार वक्फ प्रबंधन को आधुनिक बनाएगा और संपत्तियों के बेहतर उपयोग को सुनिश्चित करेगा।
वक्फ अधिनियम 1923 (Waqf Act 1923)
भारत में एक कानून था जो मुस्लिम वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और प्रशासन को विनियमित करने के लिए बनाया गया था। वक्फ एक इस्लामी परंपरा है जिसमें कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति को धर्मार्थ, धार्मिक या सामाजिक उद्देश्यों के लिए स्थायी रूप से समर्पित कर देता है। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग को रोकना और उनके उचित रखरखाव को सुनिश्चित करना था।
वक्फ अधिनियम 1923 की मुख्य बातें
वक्फ की परिभाषा: यह अधिनियम वक्फ को परिभाषित करता है और यह स्पष्ट करता है कि वक्फ संपत्ति का उपयोग केवल उन उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है जो इस्लामी कानून (शरीयत) के अनुसार वैध हों।इसने वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन के लिए ट्रस्टी (मुतवल्ली) की नियुक्ति और उनके कर्तव्यों को निर्धारित किया।
स्थानीय प्रशासन को वक्फ संपत्तियों पर नजर रखने और उनके दुरुपयोग को रोकने का अधिकार दिया गया।वक्फ संपत्तियों का पंजीकरण अनिवार्य नहीं था, लेकिन कुछ मामलों में इसे प्रोत्साहित किया गया।हालांकि, यह अधिनियम समय के साथ अपर्याप्त साबित हुआ क्योंकि इसमें पारदर्शिता और प्रभावी निगरानी की कमी थी। इसके बाद, इसे संशोधित और अपडेट करने के लिए भारत में नए कानून लाए गए, जैसे कि वक्फ अधिनियम 1954 और बाद में वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2013, जो वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को और सुदृढ करने के लिए बनाए गए।
क्या मुस्लिम वक़्फ़ संपत्तियों के तर्ज पर हिंदू मंदिरों के लिए कोई विशेष बोर्ड की जरूरत है या नहीं ?
भारत में मुस्लिम संपत्तियों, जैसे कि मस्जिदों, दरगाहों और वक्फ प्रॉपर्टीज का प्रबंधन वक्फ बोर्ड के जरिए होता है। ये बोर्ड हर राज्य में स्थापित हैं और सेंट्रल वक्फ काउंसिल उनका राष्ट्रीय स्तर पर देख-रेख करती है। वक्फ एक्ट, 1954 के तहत, ये बोर्ड अपनी संपत्तियों को खुद मैनेज करते हैं, और उनकी आमदनी का इस्तेमाल धार्मिक, सामाजिक या खैराती कामों के लिए होता है। इसमें सरकार का सीधा दखल कम होता है, हालांकि वक्फ संशोधन बिल 2024 के माध्यम से कुछ निगरानी बढ़ जाएगी।
अब हिंदू मंदिरों की बात करें, तो कुछ राज्यों में हिंदू रिलीजियस एंड चैरिटेबल एंडोमेंट्स (HRCE) डिपार्टमेंट्स काम करते हैं, जैसे तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और केरल। ये डिपार्टमेंट्स मंदिरों की आमदनी का एक हिस्सा (4-12% तक, राज्य के नियमों के मुताबिक) प्रशासनिक खर्चों के लिए लेते हैं। मिसाल के तौर पर , तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम्स जैसा बड़ा मंदिर हर साल 1,400-1,600 करोड़ रुपये कमाता है, और इसका एक हिस्सा सरकार के पास जाता है। लेकिन यह व्यवस्था हर राज्य में नहीं है, और कई मंदिर अभी भी प्राइवेट ट्रस्ट्स या सामुदायिक समितियों द्वारा चलाए जाते हैं।
मुस्लिम वक़्फ़ संपत्तियों की आय का लाभ वाकिफ की मंशा के अनुसार जिस तरह धार्मिक और निर्धन लोगों की सहायता के लिए होता है क्या ठीक उसी तरह मंदिरों की आमदनी से दलितों,पिछड़ों और निर्धन हिंदुओं की सहायता नहीं की जा सकती ? ये एक प्रश्न है जिसपर सरकार को विचार करना चाहिए।
वक्फ बोर्ड्स की तरह बनना चाहिए एक केंद्रीय हिंदू टेम्पल मैनेजमेंट बोर्ड
ये अलग बात है कि भारत में मंदिरों की संख्या बहुत ज्यादा है (लगभग 20 लाख से ऊपर), और ये विभिन्न संप्रदायों और परंपराओं से जुड़े हैं। एक ही बोर्ड के तहत इन सब को लाना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि हर मंदिर की अपनी विशिष्टता और प्रबंधन होता है। दूसरा, HRCE जैसे डिपार्टमेंट्स पहले से मौजूद हैं, लेकिन इन पर अक्सर यह आरोप लगता है कि ये मंदिरों की आमदनी का गलत इस्तेमाल करते हैं या ब्यूरोक्रेसी से भरे हुए हैं।
नये बोर्ड बनने से आमदनी को परखा और उसका सही इस्तेमाल किया जा सकता है
इससे मंदिरों की कमाई का हिसाब रखा जा सकेगा और उसका इस्तेमाल मंदिरों के सुधार, पुरोहितों के कल्याण, या हिंदू समाज के लिए शिक्षा और सेहत जैसे कामों में भी किया जा सकेगा।
चोरी और दुरुपयोग पर रोक:
एक मजबूत निगरानी व्यवस्था से मंदिरों के जेवर, दान और संपत्ति की चोरी को रोका जा सकता है।
सामुदायिक प्रबंधन:
हिंदू समुदाय को अपने मंदिरों पर ज्यादा कंट्रोल मिलेगा, जैसा कि सिख गुरुद्वारों के लिए SGPC या मुस्लिम वक्फ बोर्ड्स के लिए होता है।लेकिन इसके लिए सरकार को एक ऐसा कानून बनाना होगा जो न सिर्फ मंदिरों को सरकारी कंट्रोल से मुक्त करे, बल्कि उनकी आमदनी को समुदाय के हाथों में दे।
इस मामले पर क्या कहता है सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने भी कई मामलों में यह कहा है कि मंदिरों का प्रबंधन उनके धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के तहत समुदाय को मिलना चाहिए, जैसा कि आर्टिकल 26 में दिया गया है। इसके बावजूद, कई लोग मानते हैं कि सरकार मंदिरों की आमदनी को अपने खर्चे के लिए इस्तेमाल करती है, जो अन्य धर्मों के संस्थानों के साथ नहीं होता।तो, हां, एक हिंदू टेम्पल बोर्ड बनाना चाहिए जिससे मंदिरों की आमदनी का सही इस्तेमाल हो, चोरी रुके और समुदाय को अपने धार्मिक स्थलों पर पूरा हक मिले। लेकिन इसके लिए एक विस्तृत कानूनी और सामाजिक सहमति बनानी होगी, ताकि यह व्यवस्था न सिर्फ कागज पर रहे, बल्कि अमल में भी लाई जा सके। आपका क्या विचार है इस विषय पर?
कमेंट में अवश्य बताएं।
हिंदू ट्रस्ट की स्थापना के बाद उसमें भी महिलाओं वा अन्य धर्मों की भागीदारी जैसे मुस्लिम, दलित, सिख और बौद्ध धर्म के लोगों को भी शामिल किया जाना चाहिए। वरना ये कहना गलत ना होगा , मुस्लिम वक्फ बोर्ड में कमियां ढूंढ कर उसको दुरुस्त करने के नाम पर उसमें दूसरे को अधिकार देकर मुसलमान के साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है।
इस क़ानून के पूर्ण रूप से पास होने के बाद हिंदू ट्रस्ट की भी स्थापना करके सराहनीय कदम उठाना चाहिए। जैसे अन्य कई प्रदेशों में मंदिरों से होने वाली आय का कुछ अंशदान सरकार लेकर निर्धनों की सहायता करती है।