HomeArticleक्या वाक़ई ईरान ने शहीद क़ासिम सुलेमानी की मौत का ले लिया...

क्या वाक़ई ईरान ने शहीद क़ासिम सुलेमानी की मौत का ले लिया अमेरिका से बदला ?

क्या ईरान ने दिखाई किसी एक अमेरिकी सैनिक की लाश ?

ज़की भारतीय

लखनऊ | ईरान के दक्षिण पश्चिम प्रान्त ,किरमान के रहने वाले ईरानी आर्मी के मेजर जनरल शहीद क़ासिम सुलेमानी 13 वर्ष की आयु से ही अपने परिवार के पालन पोषण के लिए ज़िम्मेदार हो गए थे | यही कारण था,वो शिक्षा के क्षेत्र में पीछे रह गए थे , उन्हें वेटलिफ्टिंग का बहुत शौख था और वो इसीलिए बेहतरीन शरीर के स्वामी थे | वो 1979 में ईरान की सेना में शामिल हुए और उन्हें मात्र 6 सप्ताह की ट्रेनिंग के अंदर ही पश्क्षिम अज़र बैज़ान के एक संघष के लिए चुन लिया गया था |
ईरान -इराक युद्ध में भी सुलेमानी की बेहतरीन भूमिका रही ,साथ ही उन्होंने आईएसआईएस जैसे आंतकवादी संगठन की उठती हुई दीवार को अपने दमपर गिरा दिया था | आंतकवादियों के लिए दहशत का प्राय बने सुलेमानी को अमेरिका ने बिना किसी ठोस साक्ष्य के आंतकवादी घोषित कर रक्खा था | जिसके पीछे अमेरिका की फ़र्ज़ी कहानी अबतक विश्व में सभी पाठक पढ़ चुके होंगे | प्रश्न ये है जो खुद आंतकवाद के विरुद्ध खड़ा रहा हो ,आखिर उसे आंतकवादी क्यों कहा  गया ?
3 जनवरी को बग़दाद एयरपोर्ट पर ड्रोन द्वारा निशाना बनाया गए शहीद क़ासिम का क़सूर क्या था ?क्या सत्य में वो अमेरिका के लिए खतरा थे ? अगर उत्तर है हाँ ,तो इस बात को साबित भी करना चाहिए था | जैसे अमेरिका ने अब तक मारे गए आंतकवादियों को आंतकवादी साबित किया ,जिसके बाद उन्हें और देशों की सहायता से मार गिराया | इसकी एक बानगी मिसाल ओसामा बिन लादिन है ,लेकिन क्या कारण था की क़ासिम को बिना आंतकवादी साबित किये उन्हें कायराना तरीके से शहीद कर दिया गया |

क़ुद्स फोर्स की सैन्य टुकड़ी के प्रमुख शहीद सुलेमानी की शहादत के बाद अली खामनेई ने क़ासिम की शहादत के बाद अमेरिका को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा था , सुलेमानी की मौत का बदला लिया जाएगा | हालाँकि ये मात्र धमकी नहीं थी क्योंकि ईरान ने इराक में स्थित अमेरिकी सैन्य ठिकानों और एयर बेस पर मिज़ाइल द्वारा हमला भी किया था | इस हमले के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति दोनॉल ट्रम्प ने भी सख्त पर्तिकिर्या व्यक्त करते हुए कहा था कि अगर ईरान ने ऐसी गलती दुबारा की तो ऐसा हमला करेंगे जो आज तक दुनिया में कहीं, किसी युद्ध में नहीं हुआ होगा | अमेरिका की इस चेतावनी के बाद अंदाज़ लगाया जा रहा था कि अब थर्ड वर्डवार होना तय है ,इसके बावजूद ईरान की ओर से ना सिर्फ दुबारा हमला किया गया बल्कि अमेरिकी फौजियों को मार गिराने का दवा भी किया गया ,इसके बाद अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प ने दिए अपने बयान में कहा कि ईरान के इस हमले में उनका कोई भी सैनिक नहीं मारा हैं| हालाँकि उन्होंने ने ये ज़रूर माना कि माली नुकसान हुआ है |
लेकिन हैरत इस बात कि है कि जो अमेरिका बड़े हमले कि धमकी दे रहा था औरउसकी धमकी से सम्पूर्ण विश्व में महंगाई बढ़ने लगी कच्चा तेल प्रति बैरल 69 .16 डालर तक पहुंच गया हर व्यक्ति कि ज़बान पर था कि अब क्या होगा ? वहीँ होने वाला युद्ध आखिर टल कैसे गया ?
ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने भी दिए अपने बयान में कहा था, वो अन्य देशों के साथ मिलकर अमेरिका से बदला लेंगे | ईरान कि जनता भी जिस तरह से क़ासिम सुलेमानी की शहादत का बदला लिए जाने की मांग को लेकर बाहर आ गई थी उससे भी प्रतीत हो रहा था कि ईरान ना चाहकर भी बदला लेने को बाध्य होगा |
एक तरफ ईरान का ये कहना कि उसने क़ासिम की शहादत का बदला ले लिया तो वहीँ अमेरिका का ये कहना कि उसका एक भी सैनिक नहीं मारा गया ,असमंजस की स्थित में लाकर खड़ा कर रहा है | किसी हद तक अमेरिका का ये कहना की उसका कोई भी सैनिक नहीं मारा गया ,सत्य प्रतीत हो रहा है ,क्योंकि अमेरिका के लिए अपने एक आम नागरिक की मौत भी बहुत अहमियत रखती है ना कि उसके फौजी मारे जाएं और वो चुप रहे ये मुमकिन नहीं |
अगर अमेरिकी फौजी हलाक होते तो तय था कि इसकी क़ीमत ईरान को चुकानी ज़रूर पड़ती | अमेरिका द्वारा हमला ना करना बताता है कि उसने तो क़ासमी की हत्या कर दी लेकिन ईरान मौत का बदला मौत से नहीं ले सका है | ये ज़रूर है कि ईरान के ये कहने से कि उसने अमेरिकी फौजियों को मार गिराया ,अपने मुल्क कि जनता के ज़ख्म पर मलहम ज़रूर लगा दिया है |

अमेरिकी फौजियों को अगर ईरान ने मार गिराया होता तो कोई एक लाश ही सही ,कम से कम सामने तो आती ,लेकिन सिर्फ दावों से असलियत सामने नहीं आती उसकी सत्यता के लिए साक्ष्य भी ज़रूरी
होते हैं | प्रश् ये है किआखिर ईरान ने अभीतक ये भी जानने का प्रयास क्यों नहीं किया कि क़ासमी कि मुखबरी किसने की ? कौन था उनकी हत्या करवाने के पीछे ? किसे उनसे खतरा था ? क्या वाक़ई वो अमेरिका के लिए एक बड़ा खतरा थे ? क्या वो अलक़ाएदा , लश्करे तैयबा या फिर जैशे मौहम्मद जैसे आंतकी संघटनों से भी बड़े आंतकवादी थी ? सब जानते हैं कि वो खुद आंतकवादियों के विरुद्ध थे एक मुहिम चलाए हुए थे | जब वो खुद आंतकियों के विरुद्ध थे तो अमेरिका ने उनकी हत्या क्यों कराइ ?
सिक्के के दूसरे पहलु को देखा जाए तो अमेरिका आतंकवादियों के खात्मे के बहाने ही उन देशों में डेरा डालता है जहाँ पेट्रोल और क़ीमती गैसों का भण्डार होता है |जिनमें अफगानिस्तान ,इराक ,सऊदी अरबिया जैसे मुल्क सरे फेहरिस्त हैं | शायद सुलेमानी ये चाहने लगे थे कि इराक़ से अमेरिकी सैनिकों का बोरिया बिस्तर बाँध दिया जाए और इसी से नाराज़ अमेरिका ने किसी ईरानी या इराकी फौजी को अपना मुखबिर बना कर सुलेमानी पर सटीक हमला बोल दिया और उनको शहीद कर दिया |

क़ासिम सुलेमानी का क़द ईरान के पावर स्ट्रक्टर में दूसरे स्थान पर था क्योंकि ईरान में सबसे बड़ा क़द सर्वोच्च धार्मिक नेता आयतुल्लाह अली खामनेई का माना जाता है | क़ासमी की शहादत के बाद ईरान अभी तक साबित नहीं कर सका है कि उसने अमेरिकी सैनिकों को मारा है और अमेरिका का सुकून बता रहा है कि उसका कोई सैनिक हताहत नहीं हुआ है ,अब ऐसी स्थित में ये कहना तो संभव नहीं कि क़ासमी की हत्या के पीछे उनके अपने क़रीबी हैं लेकिन इससे इंकार भी नहीं किया जा सकता |
ये भी संभव है कि उक्रेन विमान में सवार कोई ईरानी, अमेरिका का मददगार हो और इसीलिए इस विमान हादसे को अंजाम देकर ईरान ने घरेलु शत्रु को समाप्त कर दिया हो |

 

,

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Must Read