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कृषि क़ानून पर किसानों ने कहा , कमेटी के सभी सदस्य सरकार समर्थक, आंदोलन को ठंडे बस्ते में डालने की कोशिश
अली हसनैन आब्दी फ़ैज़
”कमेटी में शामिल लोगों के जरिए सरकार यह चाहती है कि कानून रद्द ना हो। वहीं, 26 जनवरी का कार्यक्रम अपने तय समय के अनुसार होगा। वह शांतिपूर्ण होगा और उसके बाद भी आंदोलन जारी रहेगा” दलित किसान नेताओं ने कहा कि 26 जनवरी को लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है कि हम लाल किला फतह करने जा रहे है। हम लाल किला नहीं जा रहे हैं। इसकी रूपरेखा 15 जनवरी को रखेंगे।
संयुक्त किसान मोर्चा ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी के सदस्यों को सरकार समर्थक बताते हुए कहा कि यह आंदोलन को ठंडे बस्ते में डालने की कोशिश है। किसान संगठनों ने कहा कि कमेटी के सदस्य भरोसेमंद नहीं हैं, क्योंकि उन्होंने लेख लिखे हैं कि कृषि कानून किस तरह से किसानों के हित में हैं। कमेटी का गठन केंद्र सरकार की शरारत है। किसान नेताओं ने ऐलान किया कि वे अपना आंदोलन खत्म नहीं करेंगे और इसे जारी रखेंगे।
किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने संवाददाता सम्मेलन में कहा, ”हम किसी भी कमेटी के सामने उपस्थित नहीं होंगे। हमारा आंदोलन तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ है। हमने सुप्रीम कोर्ट से कमेटी बनाने का कभी अनुरोध नहीं किया और इसके पीछे सरकार का हाथ है।” किसान संगठनों ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट अपने आप ही कृषि कानूनों को रद्द कर सकता है।
किसान नेता बोले- यह सरकार की शरारत
सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानूनों के लागू होने पर रोक लगाते हुए इस पर कमेटी के गठन का आदेश दिया है। इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा, ”सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला किया है। मीडिया के जरिए उसका पता चला है। अभी तक हमें ऑर्डर की कापी नहीं मिली है। हमें लगता है कि यह सरकार की शरारत है। वह अपने ऊपर से दबाव कम करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के जरिए कमेटी ला रही है। हम ऐसी कमेटी सामने पेश नहीं होंगे। हमारा आंदोलन इसी तरह चलता रहेगा।”
कैसे मान लें कि कमेटी के सदस्य सुनेंगे हमारी बात?
संवाददाता सम्मेलन में एक और किसान नेता रविंद्र पटियाला ने दावा किया कि कमेटी के सदस्य अशोक गुलाटी कानून को सही ठहराते रहे हैं। उन्होंने कहा, ”समिति के सदस्य अशोक गुलाटी तो हमेशा ही इस कानून को सही ठहराते रहे हैं। ऐसे में हम कैसे मान लेंगे कि वह हमारी बात सुनेंगे। हम इस तरह की कमेटी को नहीं मानेंगे। इस कमेटी का गठन हमारे आंदोलन व मांग को ठंडे बस्ते में डालना है। हमारा संघर्ष बढ़ेगा। हमारा आंदोलन जारी रहेगा। शांतिपूर्ण आंदोलन चलता रहेगा।
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार द्वारा लाए गए विवादित तीनों कृषि क़ानूनों पर अगले आदेश तक के लिए रोक लगा दी है। कोर्ट के अगले आदेश तक यह क़ानून लागू नहीं होंगे। अदालत ने इन क़ानूनों पर चर्चा के लिए एक समिति का गठन भी किया है।
कोर्ट ने यह भी कहा है कि यह आदेश अनिश्चित काल के लिए नहीं है। कोर्ट ने कहा कि हमारा मक़सद एक सकारात्मक माहौल बनाना है।
हालांकि किसानों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्वागत करते हुए अपना आंदोलन ख़त्म करने से इनकार कर दिया है। किसान नेताओं का कहना था कि उनकी मांग इन विवादित क़ानूनों को रद्द करना है और जब तक सरकार इन्हें रद्द नहीं करती है, उनका आंदोलन जारी रहेगा।
किसानों ने कोर्ट द्वारा समिति के गठन का भी विरोध किया। सुनवाई के दौरान किसानों का पक्ष रख रहे वकील शर्मा ने बताया कि किसान संगठन सुप्रीम कोर्ट की ओर से समिति गठित किए जाने के पक्ष में नहीं हैं, और वह समिति के समक्ष नहीं जाना चाहते हैं। कोर्ट ने कहा कि अगर किसान, समस्या का समाधान चाहते हैं तो हम यह नहीं सुनना चाहते कि किसान समिति के समक्ष पेश नहीं होंगे।
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