HomePOLITICSविजय शाह को खीमानी अभ्यारण में आदिवासियों को समझाने की जिम्मेदारी

विजय शाह को खीमानी अभ्यारण में आदिवासियों को समझाने की जिम्मेदारी

लखनऊ, 28 जून । मध्य प्रदेश में खीमानी अभ्यारण (सीहोर-देवास) में वन विभाग की अतिक्रमण विरोधी कार्रवाई के बाद उत्पन्न तनाव को शांत करने के लिए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कैबिनेट मंत्री और जनजातीय कार्य मंत्री विजय शाह को अहम जिम्मेदारी सौंपी है।
23 जून को वन विभाग ने अभ्यारण में अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई की थी, जिसके विरोध में हजारों आदिवासियों ने खातेगांव में प्रदर्शन किया। कई जिलों के आदिवासी डाक बंगला मैदान पर एकत्र हुए थे। यह मुद्दा राजनीतिक रूप से गरमा गया है, क्योंकि विपक्षी दल इसे भुनाने की कोशिश कर रही है।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इस मामले में संवेदनशीलता बरतने के निर्देश दिए हैं। उनके एक ट्वीट में कहा गया, “सीहोर-देवास के खीमानी अभ्यारण में वन विभाग द्वारा जनजातीय अंचल में की गई कार्रवाई का मामला संज्ञान में आया है। प्रशासन को ऐसी व्यवस्था बनाने के निर्देश दिए गए हैं, जिससे कल्याणकारी योजनाएं पूरी हों और संवेदनशीलता बनी रहे। मंत्री विजय शाह को मौके पर जाने के लिए कहा गया है।

विजय शाह, जो हरसूद से आठ बार विधायक चुने गए हैं और एक प्रमुख आदिवासी नेता हैं, को इस संकट को हल करने के लिए आगे किया गया है। हालांकि, उनकी नियुक्ति पर सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि वे हाल ही में कर्नल सोफिया कुरैशी पर अपनी विवादास्पद टिप्पणी के कारण सुर्खियों में थे।

मई 2025 में, शाह ने कुरैशी को “आतंकियों की बहन” कहकर अपमानजनक टिप्पणी की थी, जिसके बाद मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए डीजीपी को उनके खिलाफ FIR दर्ज करने का आदेश दिया था। हाईकोर्ट ने उनकी भाषा को “गटर जैसी” करार दिया। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले में विशेष जांच दल (SIT) गठन का आदेश दिया, जिसमें तीन IPS अधिकारियों (एक IG और दो SP, जिनमें एक महिला) को शामिल करने और 28 मई 2025 तक स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया गया। हालांकि, शाह की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी गई थी। इसके बावजूद, शाह के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई, और SIT की जांच कथित तौर पर ठंडे बस्ते में है। इस नियुक्ति पर आलोचकों का कहना है कि एक ऐसे नेता को, जो विवादों में घिरा हो और जिसके खिलाफ कोर्ट ने सख्त टिप्पणियां की हों, मध्यस्थ की भूमिका देना उचित नहीं है। उनका मानना है कि इस तरह की जिम्मेदारी निष्पक्ष और सम्मानित छवि वाले व्यक्ति को दी जानी चाहिए थी।

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