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लखनऊ में भ्रष्टाचार का बोलबाला: नगर निगम में अवैध वसूली और अतिक्रमण की गहरी जड़ें

जकी भारतीय

लखनऊ, 8 अगस्त । उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि सरकारी विभागों में रिश्वतखोरी और अवैध वसूली आम बात हो गई है। चाहे वह पुलिस विभाग हो, नगर निगम हो, लखनऊ विकास प्राधिकरण हो, या कोई अन्य सरकारी विभाग, सभी में नियमों के तहत काम करवाना असंभव-सा हो गया है। अगर कोई नागरिक नियमों के अनुसार काम करवाना चाहता है, तो सालों तक उसका काम अटक सकता है। लेकिन वही काम, अगर “सुविधा शुल्क” यानी रिश्वत के जरिए करवाया जाए, तो घंटों में पूरा हो जाता है। इस रिश्वत का पैसा, जो सरकार के खाते में जाना चाहिए, वह सीधे अधिकारियों की जेब में चला जाता है और फिर कर्मचारियों के बीच बंटवारा हो जाता है। लखनऊ नगर निगम में ऐसी घटनाएँ आए दिन सामने आ रही हैं, जहाँ अवैध वसूली और भ्रष्टाचार ने जनता का जीना मुहाल कर दिया है।

नगर निगम में भ्रष्टाचार का खुला खेल

लखनऊ नगर निगम में भ्रष्टाचार के कई मामले सामने आए हैं, जिनमें अवैध अतिक्रमण, ठेलों और दुकानों से वसूली, और हाउस टैक्स की मनमानी वसूली शामिल हैं। हाल ही में, हुसैनाबाद ट्रस्ट के छोटा इमामबाड़ा के बाहर अवैध रूप से लगी दुकानों का मामला चर्चा में रहा। हुसैनाबाद ट्रस्ट के सचिव ने नगर निगम को लिखित शिकायत दी थी, जिसमें इन दुकानों को हटाने की मांग की गई थी। इस शिकायत के आधार पर जोन 6 के जोनल अधिकारी ने बुलडोजर के साथ कार्रवाई की और अवैध अतिक्रमण को हटवा दिया। लेकिन हैरानी की बात यह है कि अगले ही दिन ये दुकानें फिर से युद्धस्तर पर सज गईं। यह सवाल उठता है कि आखिर ऐसी लापरवाही कैसे हो रही है? जानकारों का कहना है कि नगर निगम के सुपरवाइजर और निरीक्षक इन अवैध दुकानदारों और ठेले वालों से प्रतिदिन मोटी रकम वसूलते हैं। इस वसूली का हिस्सा ऊपरी अधिकारियों तक पहुँचता है, जिसके कारण सड़कों पर अतिक्रमण और जाम की समस्या बनी रहती है। नगर निगम की जमीन पर अवैध कब्जे, सड़कों पर लगने वाले ठेले, और नालियों के बाहर दुकानें इस भ्रष्टाचार की गवाही देती हैं। यह अवैध वसूली इतनी संगठित है कि इसके लिए ब्रोकर नियुक्त किए जाते हैं, ताकि कोई स्टिंग ऑपरेशन या जांच में अधिकारी सीधे न फँसें।

हाउस टैक्स में मनमानी और जनता की परेशानी

लखनऊ नगर निगम द्वारा भेजे जाने वाले हाउस टैक्स नोटिस भी भ्रष्टाचार का एक बड़ा जरिया बन गए हैं। कई मामलों में, लोगों को लाखों रुपये के नोटिस भेजे जा रहे हैं, जिनमें मूलधन से कई गुना अधिक पेनल्टी और ब्याज जोड़ा जाता है। उदाहरण के तौर पर, अगर किसी का मूल हाउस टैक्स 1 लाख रुपये है, तो उस पर 2-3 लाख रुपये तक की पेनल्टी और ब्याज जोड़ा जा सकता है। ऐसे में, आम नागरिक, जो पहले ही आर्थिक तंगी से जूझ रहा है, इस भारी-भरकम राशि को जमा करने में असमर्थ होता है। नगर निगम के अधिकारियों का रवैया भी आम जनता के प्रति असंवेदनशील है। जब पीड़ित नागरिक उनसे संपर्क करते हैं, तो उन्हें या तो टाल दिया जाता है या फिर कहा जाता है कि “न्यायोचित कार्रवाई होगी।” लेकिन यह “न्यायोचित कार्रवाई” अक्सर रिश्वत के खेल का हिस्सा बन जाती है। कई बार, निचले स्तर के कर्मचारी या दलाल नागरिकों को 50-60% राशि जमा करने का रास्ता सुझाते हैं, जिसमें से कुछ हिस्सा उनकी जेब में जाता है और बाकी बंटवारा होता है। उदाहरण के तौर पर, अगर 1 लाख रुपये का नोटिस है, तो दलाल 60,000 रुपये में काम कराने का वादा करता है, जिसमें से 20,000 रुपये उसकी जेब में जाते हैं और 40,000 रुपये का टैक्स जमा होता है। इस तरह, नागरिक को लगता है कि उसने 20,000 रुपये बचा लिए, लेकिन असल में यह राशि भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती है।

नगर निगम की लापरवाही और जनता की मुश्किलें

लखनऊ में सड़कों पर जाम, सीवर लाइनों की खराब हालत, और स्ट्रीट लाइट्स की अनदेखी जैसे मुद्दे भी नगर निगम की लापरवाही को उजागर करते हैं। सीवर लाइनों की नियमित सफाई नहीं होती, जिसके कारण बारिश के मौसम में जलभराव की समस्या आम है। स्ट्रीट लाइट्स एक बार लगने के बाद सालों तक उनकी मरम्मत या रखरखाव नहीं होता। इन सभी समस्याओं का मूल कारण नगर निगम की अवैध वसूली और भ्रष्टाचार है। नगर निगम के अधिकारियों की लग्जरी जीवनशैली भी इस भ्रष्टाचार का एक बड़ा प्रमाण है। बड़े-बड़े वेतन के बावजूद, कई अधिकारी आलीशान घरों में रहते हैं और महँगी गाड़ियों में घूमते हैं। यह साफ है कि उनकी आय का स्रोत केवल वेतन नहीं, बल्कि रिश्वत और अवैध वसूली है।

वन टाइम सेटलमेंट की कमी और समाधान की जरूरत

नगर निगम द्वारा समय-समय पर टैक्स माफी या वन टाइम सेटलमेंट (OTS) स्कीम चलाई जाती हैं, लेकिन इनका लाभ उठाने वाले लोग कम ही होते हैं। गरीबी और आर्थिक तंगी के कारण कई लोग इन स्कीमों का फायदा नहीं उठा पाते। इसके अलावा, नगर निगम की ओर से सालाना नोटिस जारी करने की प्रक्रिया भी नहीं अपनाई जाती, जैसा कि बिजली विभाग करता है। अगर नगर निगम हर साल हाउस टैक्स का नोटिस भेजे और समय पर जमा न करने पर उचित पेनल्टी की चेतावनी दे, तो लोग समय पर टैक्स जमा कर सकते हैं। लेकिन जानबूझकर लंबे समय तक नोटिस न भेजकर, नगर निगम लाखों रुपये के बिल बनाता है, जिससे रिश्वतखोरी को बढ़ावा मिलता है। 
भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए सरकार को कुछ ठोस कदम उठाने होंगे। एक स्थायी वन टाइम सेटलमेंट स्कीम लागू की जानी चाहिए, जिसमें 5-10 साल पुराने टैक्स पर ब्याज और पेनल्टी माफ हो। इससे नागरिकों को राहत मिलेगी और वे बिना रिश्वत दिए टैक्स जमा कर सकेंगे। इसके अलावा, नगर निगम को पारदर्शी प्रणाली अपनानी होगी, जिसमें हर साल टैक्स नोटिस भेजे जाएँ और अवैध वसूली पर सख्त कार्रवाई हो। भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ कठोर दंडात्मक कार्रवाई भी जरूरी है। एंटी-करप्शन विभाग को और सक्रिय करना होगा, ताकि रिश्वत लेते हुए पकड़े गए अधिकारियों को तुरंत निलंबित किया जाए और उनकी संपत्ति की जाँच हो। साथ ही, नगर निगम की सेवाओं, जैसे सीवर सफाई, सड़क रखरखाव, और स्ट्रीट लाइट्स की मरम्मत, को नियमित करना होगा, ताकि जनता को यह न लगे कि उनके टैक्स का पैसा बेकार जा रहा है।

लखनऊ नगर निगम में भ्रष्टाचार और अवैध वसूली की जड़ें गहरी हैं, जो आम जनता की परेशानियों का कारण बन रही हैं। सड़कों पर अतिक्रमण, जाम की समस्या, और हाउस टैक्स की मनमानी वसूली इसका जीता-जागता सबूत है। सरकार को चाहिए कि वह इस भ्रष्टाचार पर सख्ती से अंकुश लगाए और जनता के हित में पारदर्शी नीतियाँ लागू करे। जब तक भ्रष्टाचारियों पर कठोर कार्रवाई नहीं होगी, तब तक लखनऊ की जनता को राहत मिलना मुश्किल है। यह समय है कि सरकार और नगर निगम जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझें और भ्रष्टाचार के इस दलदल को खत्म करने के लिए ठोस कदम उठाएँ।

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