लखनऊ, 11 अगस्त। उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के अबूनगर रेडईया मोहल्ले में स्थित 200 साल पुराने नवाब अब्दुल समद के मकबरे को लेकर सोमवार को गंभीर सांप्रदायिक तनाव भड़क उठा। हिंदू संगठन, जैसे बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी), और मठ-मंदिर संरक्षण संघर्ष समिति, ने दावा किया कि यह मकबरा भगवान शिव और श्रीकृष्ण का प्राचीन मंदिर है, जिसे आक्रांताओं ने मकबरे में बदल दिया। इस दावे के आधार पर बीजेपी जिला अध्यक्ष मुखलाल पाल ने पहले से ही 11 अगस्त को मकबरे में पूजा-पाठ और हवन का ऐलान किया था। इस ऐलान के बावजूद, पुलिस और जिला प्रशासन की तैयारियां पूरी तरह नाकाफी रहीं। सुबह सैकड़ों की संख्या में हिंदू संगठनों के कार्यकर्ता मकबरे पर पहुंचे, प्रशासन द्वारा लगाई गई बैरिकेडिंग को तोड़ दिया, और मकबरे में घुसकर भगवा झंडा फहराया। कुछ लोगों ने लाठी-डंडों से मकबरे में बनी मजारों को तोड़ने की कोशिश की और हनुमान चालीसा का पाठ किया। जवाब में, मुस्लिम समुदाय के लोग भी मौके पर जमा हो गए और पथराव शुरू कर दिया, जिससे स्थिति और बिगड़ गई। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो और तस्वीरों में भगवा झंडे लिए लोग ‘जय श्रीराम’ के नारे लगाते और तोड़फोड़ करते दिख रहे हैं।
पुलिस के मुताबिक उसने भारी बल और पीएसी तैनात किया था, लेकिन भीड़ को रोकने में नाकाम रही। कई लोगों का आरोप है कि पुलिस मूकदर्शक बनी रही, और कुछ ने इसे बीजेपी की ओर से सुनियोजित समर्थन का नतीजा बताया, क्योंकि ऐलान पहले से ही किया गया था। डीएम रविंद्र सिंह और एसपी अनूप कुमार सिंह ने मौके पर पहुंचकर स्थिति को नियंत्रित करने की कोशिश की, लेकिन शुरुआती निष्क्रियता ने कानून-व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए। एसपी ने दावा किया कि कोई हथियार नहीं थे और स्थिति अब सामान्य है, लेकिन वायरल सामग्री इसके उलट तस्वीर पेश करती है।हिंदू संगठनों का दावा है कि मकबरे में
कमल का फूल, त्रिशूल, और जंजीर जैसे प्रतीक मौजूद हैं, जो इसे मंदिर होने का सबूत देते हैं। उनका कहना है कि यह स्थान हजारों साल पुराना ठाकुर जी और शिव मंदिर है। दूसरी ओर, मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यह मकबरा सरकारी रिकॉर्ड में ‘मकबरा मांगी’ (खसरा नंबर 753) के रूप में दर्ज है और राष्ट्रीय संपत्ति है। राष्ट्रीय ओलमा कौंसिल ने इसे 200 साल पुराना ऐतिहासिक मकबरा बताया और कहा कि इसे मंदिर बताना सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ने की साजिश है।
इस घटना ने अयोध्या के बाबरी मस्जिद विवाद की यादें ताजा कर दी हैं। सवाल उठ रहा है कि अगर कोई समूह अपनी धार्मिक मान्यताओं या सपनों के आधार पर दावा करता है कि कोई स्थान श्रीराम या श्रीकृष्ण का है, तो क्या उसे बिना कोर्ट, न्यायपालिका, या पुरातत्व विभाग की जांच के तोड़फोड़ का अधिकार मिल जाता है? ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन बरेलवी ने कहा कि अगर हिंदू संगठनों को आपत्ति थी, तो उन्हें कानूनी रास्ता अपनाना चाहिए था, न कि मकबरे पर हमला करना। उन्होंने सरकार से सख्त कार्रवाई की मांग की।
विपक्षी नेता, जैसे सपा के माता प्रसाद पांडेय, ने योगी सरकार और बीजेपी पर मस्जिदों-मकबरों में मंदिर ढूंढकर सांप्रदायिक तनाव भड़काने का आरोप लगाया। हालांकि, सपा के बयानों को कुछ लोग कमजोर और अस्पष्ट मान रहे हैं, जिससे उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं। मुस्लिम संगठनों ने इसे बीजेपी की सुनियोजित रणनीति करार दिया, जिसका मकसद धार्मिक ध्रुवीकरण और वोटों का लाभ लेना है।
प्रशासन ने अब भारी पुलिस बल तैनात कर शांति की अपील की है और पुरातत्व विभाग से जांच की बात कही है। लेकिन अगर ऐसी घटनाएं नहीं रोकी गईं, तो यह सांप्रदायिक दंगों का कारण बन सकता है। मुस्लिम समुदाय ने चेतावनी दी है कि अगर प्रशासन निष्पक्ष कार्रवाई नहीं करता, तो वे भी कानून अपने हाथ में ले सकते हैं, जिससे स्थिति और बिगड़ सकती है। यह विवाद न केवल आस्था और इतिहास का टकराव है, बल्कि एक राजनीतिक खेल भी प्रतीत होता है, जो उत्तर प्रदेश के सामाजिक सौहार्द को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है।