लखनऊ, 29 जून । भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव का इतिहास कोई नया नहीं है। दशकों से दोनों देश एक-दूसरे पर आतंकवादी गतिविधियों को समर्थन देने के आरोप लगाते रहे हैं। भारत ने बार-बार पाकिस्तान को लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, और अन्य आतंकवादी संगठनों को पनाह देने और उन्हें समर्थन देने का दोषी ठहराया है, जिन्हें 2008 के मुंबई हमले, 2016 के उरी हमले, और 2019 के पुलवामा हमले जैसे आतंकी कृत्यों के लिए जिम्मेदार माना जाता है। लेकिन अब, एक नया और चिंताजनक मोड़ सामने आया है। पाकिस्तान ने अपनी जमीन पर हुए एक आत्मघाती हमले के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराकर एक नई रणनीति अपनाई है। यह कदम न केवल दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ा रहा है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि पाकिस्तान भारत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर आतंकवादी देश के रूप में चित्रित करने की कोशिश कर रहा है। यदि यह रणनीति जारी रही, तो भविष्य में भारत की वैश्विक छवि को गंभीर नुकसान पहुँच सकता है। इस तरह के आरोपों का जवाब देने के लिए भारत को सख्त और स्पष्ट रुख अपनाना होगा, ताकि ऐसे आधारहीन दावों को तुरंत खारिज किया जा सके।
28 जून 2025 की रात को पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के उत्तरी वजीरिस्तान में एक सैन्य काफिले पर आत्मघाती हमला हुआ, जिसमें 13 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए और कई अन्य घायल हो गए। यह हमला एक विस्फोटक से लदे वाहन द्वारा किया गया, जिसे एक आत्मघाती हमलावर ने सैन्य काफिले में घुसाकर विस्फोट कर दिया। पाकिस्तान के सैन्य प्रवक्ता लेफ्टिनेंट जनरल अहमद शरीफ चौधरी ने एक प्रेस बयान में दावा किया कि इस हमले के पीछे भारत का हाथ है। उन्होंने कहा कि खुफिया जानकारी के आधार पर यह स्पष्ट है कि हमले को भारत द्वारा प्रायोजित आतंकवादी संगठनों ने अंजाम दिया, जो पाकिस्तान की स्थिरता को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने भी एक टेलीविजन संबोधन में भारत पर “आतंकवाद को बढ़ावा देने” का आरोप लगाया और कहा कि “पाकिस्तान इस तरह के हमलों का जवाब देने में सक्षम है और वह इसका जवाब देगा।”
भारत ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। 29 जून 2025 की सुबह 9:00 बजे नई दिल्ली में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अर्जुन मेहता ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “पाकिस्तान का यह दावा पूरी तरह आधारहीन और हास्यास्पद है। भारत आतंकवाद का शिकार रहा है, न कि इसका प्रायोजक। पाकिस्तान अपनी आंतरिक विफलताओं और आतंकवादी संगठनों को नियंत्रित करने में अपनी नाकामी को छिपाने के लिए भारत पर झूठे आरोप लगा रहा है।” मेहता ने यह भी चेतावनी दी कि इस तरह के फर्जी आरोप दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ा सकते हैं, और पाकिस्तान को अपनी धरती पर आतंकवादी संगठनों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करनी चाहिए। भारत ने संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस मुद्दे को उठाने की बात कही है, ताकि पाकिस्तान के दावों की सत्यता की जांच हो सके।
यह पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान ने भारत पर इस तरह के आरोप लगाए हैं। हाल के वर्षों में, विशेष रूप से 2025 में, दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर रहा है। अप्रैल 2025 में भारतीय प्रशासित कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले, जिसमें 26 पर्यटक मारे गए थे, के बाद भारत ने पाकिस्तान पर आतंकवादी संगठनों को समर्थन देने का आरोप लगाया था। भारत ने इसके जवाब में 7 मई 2025 को “ऑपरेशन सिंदूर” के तहत पाकिस्तान और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में नौ आतंकी ठिकानों पर मिसाइल हमले किए थे। पाकिस्तान ने इन हमलों को “नागरिक क्षेत्रों पर हमला” करार दिया और जवाबी कार्रवाई की थी, जिसके परिणामस्वरूप दोनों देशों के बीच चार दिन तक सैन्य संघर्ष चला। 10 मई 2025 को अमेरिका की मध्यस्थता से एक युद्धविराम हुआ, लेकिन दोनों देशों के बीच तनाव कम नहीं हुआ।
पाकिस्तान का भारत पर ताजा आरोप इस तनावपूर्ण पृष्ठभूमि में देखा जा सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान अपनी घरेलू समस्याओं, विशेष रूप से खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान में बढ़ते आतंकवादी हमलों, से ध्यान हटाने के लिए भारत को निशाना बना रहा है। 2025 में पाकिस्तान में कई आतंकी हमले हुए हैं, जिनमें बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) जैसे संगठन शामिल हैं। उदाहरण के लिए, 4 मार्च 2025 को बन्नू में एक सैन्य अड्डे पर हमले में 18 लोग मारे गए, और 21 मई 2025 को खुझदार में एक स्कूल बस पर आत्मघाती हमले में 8 लोग मारे गए। पाकिस्तान इन हमलों के लिए अक्सर अफगानिस्तान या अन्य बाहरी ताकतों को जिम्मेदार ठहराता रहा है, लेकिन अब भारत को निशाना बनाना एक नई रणनीति का हिस्सा प्रतीत होता है।
पाकिस्तान का यह कदम भारत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर बदनाम करने की एक सुनियोजित रणनीति का हिस्सा हो सकता है। भारत ने लंबे समय से संयुक्त राष्ट्र और अन्य वैश्विक मंचों पर पाकिस्तान को आतंकवाद के समर्थन के लिए जिम्मेदार ठहराया है, और लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए- मोहम्मद जैसे संगठनों को संयुक्त राष्ट्र द्वारा आतंकवादी संगठन घोषित करवाने में सफलता हासिल की है। अब, पाकिस्तान उसी तरह की रणनीति अपनाकर भारत को आतंकवादी देश के रूप में चित्रित करने की कोशिश कर रहा है। यह रणनीति विशेष रूप से खतरनाक है, क्योंकि यदि पाकिस्तान इसमें सफल हुआ, तो भारत की वैश्विक छवि और उसकी कूटनीतिक स्थिति पर गंभीर असर पड़ सकता है। विशेष रूप से, यह भारत के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता की दावेदारी को कमजोर कर सकता है।
पाकिस्तान का यह कदम एक कूटनीतिक हमला है, जिसका मकसद भारत को उसी तरह की स्थिति में लाना है, जैसी स्थिति में पाकिस्तान दशकों से है। यह एक खतरनाक खेल है, क्योंकि यह दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ा सकता है। भारत को इन आरोपों का जवाब तथ्यों और सबूतों के साथ देना चाहिए, ताकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय में पाकिस्तान के दावों की विश्वसनीयता कम हो।“भारत को अपने कूटनीतिक चैनलों का उपयोग करके यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसे आरोपों को कोई गंभीरता न मिले।
भारत को इस स्थिति से निपटने के लिए कई स्तरों पर कार्रवाई करनी होगी। सबसे पहले, भारत को संयुक्त राष्ट्र, जी7, और अन्य वैश्विक मंचों पर पाकिस्तान के दावों का खंडन करने के लिए एक मजबूत कूटनीतिक अभियान चलाना चाहिए। दूसरा, भारत को अपनी खुफिया और साइबर निगरानी क्षमताओं को बढ़ाना चाहिए, ताकि पाकिस्तान के दावों को तथ्यात्मक रूप से चुनौती दी जा सके। तीसरा, भारत को अपनी आंतरिक सुरक्षा को और मजबूत करना चाहिए, ताकि भविष्य में होने वाले किसी भी हमले को पाकिस्तान भारत के खिलाफ न इस्तेमाल कर सके। इसके साथ ही, भारत को अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ मिलकर काम करना चाहिए, ताकि पाकिस्तान पर आतंकवादी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करने का दबाव बढ़े।
पाकिस्तान का भारत पर खैबर पख्तूनख्वा में हुए आत्मघाती हमले का आरोप लगाना एक खतरनाक कूटनीतिक रणनीति का हिस्सा है, जिसका मकसद भारत की वैश्विक छवि को धूमिल करना हो सकता है। भारत ने इन आरोपों को सख्ती से खारिज किया है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से इसकी जांच की मांग की है। यह घटना दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ा सकती है, और इसे रोकने के लिए भारत को कूटनीतिक, रणनीतिक, और तथ्यात्मक स्तर पर जवाब देना होगा। यदि पाकिस्तान इस तरह के आरोप लगाना जारी रखता है, तो यह न केवल द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित करेगा, बल्कि दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता के लिए भी खतरा पैदा करेगा।