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छह दलित युवकों की पुलिस हिरासत में मौत, परिजनों ने लगाया हत्या का आरोप
लखनऊ, 6 नवंबर। उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में पुलिस हिरासत में छह निर्दोष दलित युवकों की क्रूर हत्या ने राज्यव्यापी आक्रोश पैदा कर दिया है। बुधवार रात को मोटीगंज थाने की पुलिस ने इन्हें फर्जी अवैध शराब के मामले में गिरफ्तार किया था, लेकिन गुरुवार सुबह शव पोस्टमार्टम हाउस पहुंचे तो वे इतने क्षत-विक्षत थे कि डॉक्टरों ने भी पहचानने में कठिनाई हुई। मृतकों में संजय कुमार सोनकर (28 वर्ष), रामू पासवान (32 वर्ष), छोटे लाल (25 वर्ष), राजेश कुमार (30 वर्ष), विष्णु दास (22 वर्ष) और बबलू महतो (27 वर्ष) शामिल हैं। ये सभी किन्की गांव के निवासी थे और मजदूरी का काम करते थे। परिवारों का आरोप है कि पुलिस ने रिश्वत के लालच में फर्जी केस बनाकर इन्हें पकड़ा और हिरासत में यातनाएं देकर मार डाला।
विस्तृत जानकारी के अनुसार, बुधवार शाम को थाना प्रभारी ने मुखबिर की सूचना पर छापेमारी की, लेकिन कोई शराब नहीं मिली। फिर भी, पुलिस ने इन छह युवकों को “शराब तस्करी” के नाम पर बिना वारंट गिरफ्तार कर लिया। परिवारों का कहना है कि युवक ट्रेन से सरसों का तेल चुराने के छोटे-मोटे मामले में फंस चुके थे, लेकिन इस बार शराब का फर्जी एफआईआर बनाकर रंगदारी वसूलने की कोशिश की गई। रात भर हिरासत में इन्हें बेरहमी से पीटा गया—इलेक्ट्रिक शॉक दिए गए, लाठियों से मारा गया और जलाया गया। सुबह थाने से शव गोंडा मेडिकल कॉलेज भेजे गए, जहां पोस्टमार्टम में सिर फटना, हड्डियां टूटना और जलने के निशान मिले। संजय कुमार सोनकर के पिता ने बताया कि बेटा शाम को घर लौटा ही था कि पुलिस ने घसीटकर ले लिया; रामू पासवान की पत्नी ने कहा कि पति पर 5 हजार रुपये की रिश्वत का दबाव था।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मामले को गंभीर बताते हुए उच्च स्तरीय जांच के आदेश दिए, जबकि डीजीपी ने दोषी एसआई समेत तीन पुलिसकर्मियों को सस्पेंड किया। विपक्षी दलों ने इसे “राज्य-प्रायोजित हत्या” करार देते हुए सीबीआई जांच और पीड़ित परिवारों को 50 लाख मुआवजे की मांग की। गोंडा में दलित संगठनों ने सड़क जाम कर दिया, जिसे भारी पुलिस बल से हटाया गया। यह घटना 1982 के गोंडा एनकाउंटर की याद दिलाती है, जहां पुलिस की मनमानी उजागर हुई थी। प्रभावित गांवों में तनाव व्याप्त है, और सुरक्षा बढ़ा दी गई है। परिवारों का कहना है कि युवक शराब से कोसों दूर थे—संजय ट्रेन चपरासी था, रामू किसान, छोटे लाल मजदूर, राजेश रिक्शा चालक, विष्णु छात्र और बबलू दुकानदार। यह मामला दलित उत्पीड़न और पुलिस सुधार की आवश्यकता पर जोर दे रहा है।
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