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अमेरिका-ईरान तनाव ने लिया खतरनाक मोड़, अब ईरान देगा इंट का जवाब पत्थर से 

लखनऊ, 22 जून । इजरायल और ईरान के बीच छिड़ी जंग ने अब वैश्विक संकट का रूप ले लिया है। जहां एक ओर अमेरिका शुरूआत में इजरायल को पृष्ठभूमि से समर्थन दे रहा था, वहीं इजरायल को ईरान के हमलों से बुरी तरह तबाह होते देख अमेरिका खुलकर मैदान में कूद पड़ा है। सूत्रों के अनुसार, 22 जून की सुबह-सुबह अमेरिका ने ईरान के तीन प्रमुख परमाणु ठिकानों—फोर्डो, नतांज और इस्फहान—पर बंकर बस्टर बमों से भीषण हमला किया। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया कि सभी हमलावर विमान सुरक्षित वापस लौट आए हैं और फोर्डो ठिकाना पूरी तरह तबाह हो चुका है।

ईरान की उग्र प्रतिक्रिया, अमेरिका पर जवाबी हमले की योजना?

ईरान ने इस हमले को अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन बताते हुए कड़ा रुख अपनाया है। ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराग़ची ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर के उल्लंघन का आरोप लगाया, जबकि सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह अली खामेनेई के प्रतिनिधि हुसैन शरियतमदारी ने सरकारी अखबार ‘कायहान’ में लिखा, “अब हमारी बारी है। हमें बहरीन में अमेरिकी नौसैनिक बेड़े पर मिसाइल हमला करना चाहिए और हॉर्मुज जलडमरूमध्य को बंद कर देना चाहिए।” ईरान की रिवोल्यूशनरी गार्ड्स ने भी युद्ध शुरू होने की घोषणा करते हुए कहा, “उन्हें जहां देखो, मार डालो।” सूत्रों के मुताबिक, ईरान ने मध्य पूर्व में अमेरिकी सैन्य ठिकानों, विशेष रूप से इराक, कुवैत, कतर, और यूएई में तैनात ठिकानों को निशाना बनाने के लिए मिसाइलें और ड्रोन तैयार किए हैं। इसके अलावा, ईरान के समर्थित हूती विद्रोही लाल सागर में अमेरिकी युद्धपोतों पर हमले शुरू कर सकते हैं, जैसा कि उन्होंने 2023 में किया था। ईरान तेल और गैस के प्रमुख प्लांट्स को भी निशाना बना सकता है, जैसा कि 2019 में सऊदी अरब पर हुए ड्रोन हमले में हुआ था।इजरायल पर ईरान के हमले तेजअमेरिकी हमलों के जवाब में, ईरान ने इजरायल पर ‘ऑपरेशन ट्रू प्रॉमिस-3’ के तहत मिसाइल और ड्रोन हमले शुरू कर दिए हैं। कई इजरायली शहरों में विस्फोटों की खबरें हैं। 13 जून से शुरू हुए इस युद्ध में दोनों पक्षों को भारी नुकसान हुआ है, लेकिन अमेरिका की प्रत्यक्ष भागीदारी ने इसे और जटिल बना दिया है। इजरायल ने भी ईरान के पश्चिमी इलाकों पर जवाबी हमले शुरू किए हैं।

जंग की जड़: फिलिस्तीन और क्षेत्रीय तनाव

इस युद्ध की शुरुआत इजरायल और ईरान के बीच लंबे समय से चले आ रहे तनाव से हुई। इजरायल द्वारा फिलिस्तीन पर कथित अत्याचारों और सीरिया में मुस्लिम-विरोधी गतिविधियों ने ईरान को आक्रामक रुख अपनाने के लिए उकसाया। ईरान ने हिजबुल्लाह और हूती विद्रोहियों जैसे प्रॉक्सी समूहों को सक्रिय कर इजरायल पर दबाव बनाया। दूसरी ओर, इजरायल ने हिजबुल्लाह के नेता हसन नसरुल्लाह की हत्या कर और सीरिया में अपने प्रभाव को बढ़ाकर जवाब दिया। अमेरिका का यह कदम क्षेत्रीय अस्थिरता को और बढ़ाने वाला माना जा रहा  है।

अमेरिका की भूमिका और वैश्विक आलोचना

पाकिस्तान, सऊदी अरब, क्यूबा, और चिली जैसे देशों ने अमेरिकी हमलों की निंदा की है। रेड क्रॉस ने चेतावनी दी है कि यह युद्ध विश्व को तीसरे विश्व युद्ध की ओर धकेल सकता है। संयुक्त राष्ट्र की परमाणु निगरानी संस्था IAEA ने कहा कि हमले वाले ठिकानों से रेडियोधर्मी विकिरण का कोई संकेत नहीं मिला, लेकिन क्षेत्र में रेडियोधर्मी खतरे की आशंका बनी हुई है।भारत में बढ़ता सामाजिक तनावइस युद्ध ने भारत में भी सामाजिक तनाव को हवा दी है। सोशल मीडिया पर कुछ कट्टरपंथी समूहों द्वारा मुस्लिम-विरोधी और अयातुल्लाह खामेनेई के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट्स वायरल हो रही हैं। ये पोस्ट्स न केवल धार्मिक वैमनस्य फैलाने का काम कर रही हैं, बल्कि भारत की एकता को भी खतरे में डाल रही हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे समय में भारतीयों को एकजुट रहने और नफरत फैलाने वाली पोस्ट्स से बचने की जरूरत है।

ईरान की जवाबी कार्रवाई और अमेरिका की धमकियों ने मध्य पूर्व को युद्ध के मुहाने पर ला खड़ा किया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह संघर्ष अब केवल ईरान और इजरायल तक सीमित नहीं, बल्कि वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति और शांति व्यवस्था के लिए खतरा बन चुका है। भारत को इस स्थिति में तटस्थ रहते हुए अपनी ऊर्जा सुरक्षा और क्षेत्रीय हितों की रक्षा के लिए सतर्क रहने की जरूरत है।

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