HomeCrimeCRPF जवान के पाकिस्तान के लिए जासूसी मामले में नया खुलासा

CRPF जवान के पाकिस्तान के लिए जासूसी मामले में नया खुलासा

लखनऊ,1 जून । राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने पाकिस्तान के लिए जासूसी करने के आरोप में गिरफ्तार किए गए केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) के जवान मोती राम जाट के मामले में गोरखपुर के खजनी थाना क्षेत्र में छापेमारी की। यह कार्रवाई जाट की गिरफ्तारी के बाद उसके वित्तीय लेन-देन की जांच के सिलसिले में की गई। NIA को जानकारी मिली थी कि बैंकॉक के कारोबारी पन्नेलाल के बैंक खाते से जाट के खाते में हवाला के जरिए पैसे ट्रांसफर किए गए थे। इस संदेह के आधार पर NIA ने पन्नेलाल के खाते को सीज कर दिया और उनके गोरखपुर स्थित घर पर छापेमारी की, जहां उनके बच्चों से पूछताछ की गई। इसके साथ ही, पन्नेलाल के बेटे अमन को 4 जून को दिल्ली में NIA कार्यालय में तलब किया गया है।जांच में पता चला कि मोती राम जाट, जो CRPF की 116वीं बटालियन में सहायक उप-निरीक्षक (ASI) के पद पर तैनात था, 2023 से पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI को संवेदनशील जानकारी, जैसे सुरक्षा बलों की तैनाती, सैन्य ठिकानों का स्थान और अभियानों की जानकारी, पैसे के बदले में दे रहा था। जाट को 20 मई 2025 को दिल्ली से गिरफ्तार किया गया था और उसे 21 मई को CRPF से बर्खास्त कर दिया गया। दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने उसे 6 जून तक NIA की हिरासत में भेज दिया है।

सामाजिक और कट्टरपंथी प्रतिक्रिया पर सवाल

इस मामले ने एक महत्वपूर्ण सवाल उठाया है: अगर यह अपराध किसी मुस्लिम व्यक्ति द्वारा किया गया होता, तो कट्टरपंथी संगठनों और सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया कितनी तीव्र होती? आमतौर पर, जब कोई मुस्लिम व्यक्ति इस तरह के जासूसी के मामले में शामिल पाया जाता है, तो सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं, कार्रवाई की मांग, और कई बार व्यक्ति और उनके परिवार को निशाना बनाने की घटनाएं देखने को मिलती हैं। कट्टरपंथी संगठन और कुछ समूह तुरंत इसे धार्मिक आधार पर उछालते हैं, जिससे सामाजिक तनाव बढ़ता है।हालांकि, इस मामले में, जहां आरोपी एक गैर-मुस्लिम CRPF जवान है, वैसी तीव्र प्रतिक्रिया या कट्टरपंथी संगठनों की ओर से कोई बड़ा हंगामा देखने को नहीं मिला। यह दोहरा मापदंड सवाल उठाता है कि क्या अपराध की गंभीरता को व्यक्ति की धार्मिक पृष्ठभूमि के आधार पर अलग-अलग नजरिए से देखा जाता है?

पत्रकार का मामला और कट्टरपंथी संगठनों की चुप्पी

इसी तरह, एक अन्य मामले में एक पत्रकार, ज्योति मल्होत्रा, जो हरियाणा की रहने वाली हैं और जिनके यूट्यूब पर 3.77 लाख और इंस्टाग्राम पर 1.33 लाख फॉलोअर्स हैं, पर भी पाकिस्तान के लिए जासूसी करने का आरोप लगा। वह कथित तौर पर नवंबर 2023 से पाकिस्तानी उच्चायोग के कर्मचारी एहसान-उर-रहीम (उर्फ दानिश) के संपर्क में थीं। दानिश को 13 मई 2025 को भारत से जासूसी के आरोप में निष्कासित किया गया था। इस मामले में भी कट्टरपंथी संगठनों की ओर से कोई खास हंगामा नहीं हुआ, जो आमतौर पर ऐसे मामलों में मुखर रहते हैं।

यह मामला न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है, बल्कि यह सामाजिक प्रतिक्रियाओं में पक्षपात और दोहरे मापदंड को भी उजागर करता है। यदि कोई मुस्लिम व्यक्ति इस तरह के अपराध में शामिल होता, तो संभवतः सोशल मीडिया और कट्टरपंथी संगठनों द्वारा तीव्र प्रतिक्रिया देखने को मिलती। लेकिन इस मामले में, मोती राम जाट और ज्योति मल्होत्रा जैसे गैर-मुस्लिम आरोपियों के खिलाफ वैसी तीखी प्रतिक्रिया का अभाव विचारणीय है। यह समाज और जांच एजेंसियों दोनों के लिए एक गंभीर चिंतन का विषय है कि अपराध को अपराध के रूप में ही देखा जाए, न कि धार्मिक या सामुदायिक पहचान के आधार पर।NIA की जांच अभी जारी है, और यह देखना बाकी है कि इस जासूसी नेटवर्क में और कौन-कौन शामिल हैं। गोरखपुर में हुई छापेमारी इस मामले में और गहरे तार खोजने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

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