HomeArticleक्या वक्फ के नए कानून पर सुप्रीम कोर्ट लगाएगा रोक?

क्या वक्फ के नए कानून पर सुप्रीम कोर्ट लगाएगा रोक?

जकी भारतीय

लखनऊ 14 अप्रैल। वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में यूं तो कई याचिकाएं दायर की जा चुकी है। लेकिन केंद्र सरकार की ओर से भी कैविएट डाल दी गई है। ताकि सुप्रीम कोर्ट भी केंद्र सरकार के पक्ष को सुने बिना कोई आदेश न कर सके।
हालांकि इस बार सेकुलर लोगों की बात को अगर माना जाए तो उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट इस कानून की कमियों को देखते हुए या तो इस कानून को वापस लेने की बात कहेगा या फिर इसमें कुछ बिंदुओं पर संशोधन करने का आदेश दे सकता है । लोगों की माने तो ये कानून धार्मिक आजादी पर हमला है। पुरातत्व विभाग 100 वर्ष पुरानी संपत्तियों के संरक्षण के अलावा उसका प्रबंधन भी खुद करेगा और उसे वक़्फ़ नहीं मानेगा । ये कहां का इंसाफ है ?

इसे कैसे मुसलमानों के हितों का क़ानून कहा जा सकता है ?

यदि यूं ही पुरातत्व और कलेक्टर को असीमित अधिकार दिए गए तो इस तरह मुस्लिम वक़्फ़ संपत्तियों पर बोर्ड का अधिकार समाप्त हो जाएगा जो न्याय उचित नहीं है । क्योंकि वक़्फ़ करने वाले लोग अपनी संपत्ति को खरीदकर अल्लाह के नाम पर दान करते हैं, तो ऐसी संपत्तियां अगर सौ वर्ष पुरानी हो जाएं और वो पुरातत्व विभाग की देखरेख में आ जाएं तो क्या उसका मालिकाना अधिकार ख़त्म हो जायेगा ? हमारे लोकतांत्रिक देश मे ये क़ानून सिर्फ मुसलमानों के विरुद्ध लाया गया है , जो की किसी भी हाल में न्यायोचित नहीं है।

किसी संपत्ति के राजस्व विभाग में कागजात न मिलने पर उसे वक़्फ़ संपत्ति नहीं माना जाएगा, किसी संपत्ति पर कोई विवाद होने पर कलेक्टर से शिकायत करने पर कलेक्टर उस संपत्ति को तब तक वक़्फ़ नहीं मानेगा जब तक उस मामले का निपटारा नहीं हो जाएगा । सरकार ने ये कैसे कानून बनाए है , ये सरकार को खुद सोचना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट अयोध्या में राम मंदिर मामले में हिन्दुओं आस्था की बात को समझते हुए जिस तरह से फैसला कर चुका है,लोगों को आशा है,उसी तरह आस्था का ध्यान रखते हुए इस बार मुसलमानों की धार्मिक आज़ादी के पक्ष में फैसला करेगा।

याचिकाओं में उठाए गए प्रमुख बिंदु और संवैधानिक धाराएँ

याचिकाकर्ताओं ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) के तहत संवैधानिक प्रावधानों के उल्लंघन के आधार पर चुनौती दी है।

याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यह कानून मुस्लिम समुदाय के साथ भेदभाव करता है। उनका कहना है कि वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में सरकारी हस्तक्षेप अन्य धार्मिक संस्थाओं (जैसे हिंदू या सिख ट्रस्ट) के लिए लागू नहीं होता, जो समानता के सिद्धांत का उल्लंघन है।

अनुच्छेद 15 (धर्म, जाति आदि के आधार पर भेदभाव का निषेध)

याचिकाओं में दावा किया गया है कि यह कानून विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय को लक्षित करता है, जिससे यह संविधान के इस प्रावधान के खिलाफ है, जो धर्म के आधार पर भेदभाव को रोकता है।

अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता)

याचिकाकर्ताओं का कहना है कि वक्फ एक धार्मिक संस्था है, और इसमें सरकारी दखल धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को सीमित करता है। उनका तर्क है कि वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन मुस्लिम समुदाय का आंतरिक मामला है, जिसमें राज्य का हस्तक्षेप अनुचित है।

अनुच्छेद 26 (धार्मिक मामलों के प्रबंधन का अधिकार)

यह अनुच्छेद धार्मिक समुदायों को अपनी धार्मिक संस्थाओं के प्रबंधन का अधिकार देता है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि नया कानून वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता को कम करता है और गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने जैसे प्रावधान धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करते हैं।

अनुच्छेद 29 यानी अल्पसंख्यक अधिकार

याचिकाओं ने यह भी तर्क दिया है कि यह कानून मुस्लिम समुदाय की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को कमजोर करता है, जो अल्पसंख्यक समुदायों के संरक्षण के लिए संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों का उल्लंघन है।

अनुच्छेद 300A (संपत्ति का अधिकार)

याचिकाकर्ताओं ने दावा किया है कि वक्फ संपत्तियों पर सरकारी नियंत्रण और सर्वेक्षण के प्रावधान संपत्ति के अधिकार को प्रभावित करते हैं। विशेष रूप से, जिला कलेक्टर जैसे अधिकारियों को वक्फ संपत्तियों के स्वामित्व का निर्धारण करने का अधिकार देना समुदाय के संपत्ति अधिकारों का उल्लंघन माना गया है।

केंद्र सरकार की कैविएट और उसका महत्व

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल की है, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि याचिकाकर्ताओं की मांग (जैसे कानून पर रोक) पर कोई भी आदेश पारित करने से पहले सरकार का पक्ष सुना जाए। यह एक सामान्य कानूनी प्रक्रिया है, जो सरकार को अवसर देती है कि वह अपने तर्क प्रस्तुत कर सके।

ये हो सकते हैं सरकार के संभावित तर्क

पारदर्शिता और सुधार:
सरकार का कहना है कि यह कानून वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता लाने और भ्रष्टाचार को रोकने के लिए लाया गया है। यह विशेष रूप से मुस्लिम महिलाओं और गरीब मुस्लिमों के हितों की रक्षा करता है।

संवैधानिक वैधता:

सरकार यह तर्क दे सकती है कि यह कानून संविधान के अनुरूप है और धार्मिक स्वतंत्रता पर अतिक्रमण नहीं करता, बल्कि केवल प्रशासनिक सुधार करता है। उदाहरण के लिए, गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करना समावेशिता को बढ़ावा देता है।

संसदीय अधिकार:

सरकार यह दावा कर सकती है कि संसद को वक्फ जैसे मामलों में कानून बनाने का पूर्ण अधिकार है, क्योंकि यह समवर्ती सूची में शामिल है।

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की स्थिति

सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाओं पर विचार करने और उन्हें सूचीबद्ध करने की सहमति दी है। समाचारों के अनुसार, 15 अप्रैल, 2025 को सुनवाई की संभावना है, हालांकि यह तारीख अभी आधिकारिक रूप से पुष्ट नहीं हुई है। सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार, और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन शामिल हैं, इस मामले को देख रही है। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता जैसे कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी जैसे वकील दलीलें पेश कर रहे हैं, जो इस मामले की गंभीरता को दर्शाता है।

क्या कोर्ट इस कानून को बरकरार रख सकता है?

अतीत में, सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में (जैसे आधार मामले या गोपनीयता के अधिकार) कानून के कुछ हिस्सों को रद्द किया है, जबकि बाकी को बरकरार रखा है। अगर केंद्र सरकार यह साबित कर देती है कि यह कानून धार्मिक स्वतंत्रता पर अतिक्रमण नहीं करता, बल्कि केवल वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही लाता है, तो कोर्ट इसे बरकरार रख सकता है। सरकार यह तर्क दे सकती है कि यह कानून अनुच्छेद 15 के तहत विशेष प्रावधान (जैसे मुस्लिम महिलाओं के लिए) के अनुरूप है।

सुनवाई में देरी या लंबी प्रक्रिया

चूंकि यह मामला संवेदनशील है और इसमें कई याचिकाएँ शामिल हैं, कोर्ट इसकी गहन जांच कर सकता है। इससे सुनवाई में समय लग सकता है, और अंतरिम आदेश (जैसे रोक) के बजाय कोर्ट पहले दोनों पक्षों की दलीलें विस्तार से सुन सकता है।

कानूनी विशेषज्ञों की राय

कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट किसी भी कानून की वैधता को तीन आधारों पर परखता है:
विधायी सक्षमता:

क्या संसद को यह कानून बनाने का अधिकार था? चूंकि वक्फ समवर्ती सूची में है, संसद को यह अधिकार है।

संवैधानिक उल्लंघन:

क्या यह मौलिक अधिकारों या संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करता है? यहाँ याचिकाकर्ताओं का तर्क मजबूत है, लेकिन सरकार इसे प्रशासनिक सुधार के रूप में पेश कर सकती है।

मनमानापन:
क्या कानून मनमाने ढंग से बनाया गया? चूंकि यह कानून संसद में बहस और वोटिंग के बाद पारित हुआ, इसे मनमाना साबित करना मुश्किल हो सकता है।

वर्तमान स्थिति और संभावित परिणाम

12 अप्रैल, 2025 तक, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कोई अंतरिम आदेश जारी नहीं किया है। सुनवाई की अगली तारीख (संभावित रूप से 15 अप्रैल) महत्वपूर्ण होगी।

अगर कोर्ट को लगता है कि कानून से मुस्लिम समुदाय के मौलिक अधिकारों को तत्काल नुकसान हो रहा है, तो वह कुछ प्रावधानों पर रोक लगा सकता है। और कोर्ट सरकार को कानून को लागू करने के लिए दिशानिर्देश जारी कर सकता है, ताकि धार्मिक स्वतंत्रता बनी रहे।

कानून को रद्द करना:

यह तभी संभव है, जब कोर्ट को लगे कि यह कानून संविधान की मूल संरचना या मौलिक अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन करता है। हालांकि, यह सबसे कम संभावित परिणाम है, क्योंकि कोर्ट संसद के विधायी अधिकार का सम्मान करता है।
वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाएँ गंभीर संवैधानिक सवाल उठाती हैं, विशेष रूप से धार्मिक स्वतंत्रता और समानता के अधिकार को लेकर। केंद्र सरकार की कैविएट यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी फैसला दोनों पक्षों को सुनने के बाद ही होगा। वर्तमान में, कानून पर तत्काल रोक की संभावना कम है, लेकिन कोर्ट कुछ प्रावधानों पर दिशानिर्देश जारी कर सकता है या उनकी वैधता पर सवाल उठा सकता है। अंतिम फैसला कोर्ट द्वारा दोनों पक्षों की दलीलों, कानून के उद्देश्य, और संवैधानिक सिद्धांतों की गहन जांच पर निर्भर करेगा।
यह मामला न केवल कानूनी, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक रूप से भी संवेदनशील है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट सावधानीपूर्वक और संतुलित दृष्टिकोण अपनाएगा। अगली सुनवाई तक स्थिति स्पष्ट नहीं होगी, लेकिन यह मामला संवैधानिक व्याख्या और धार्मिक स्वतंत्रता के सवालों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Must Read