जकी भारतीय
लखनऊ,9 अप्रैल। भारतीय जनता पार्टी की केंद्र सरकार जिस तरह मुसलमानो की हितैशी बनकर उनके उत्थान,महिलाओं की भागीदारी और पारदर्शिता के नाम नए-नए कानून ला रही है जिससे लगता है कि भाजपा को देश में सबसे ज़्यादा फिक्र मुसलमानों की है। चाहे तीन तलाक़ का मामला हो या वक़्फ़ संशोधन बिल का दोनों मामलों में सरकार तटस्थ रही। हालांकि तीन तलाक़ क़ानून ने मुस्लिम महिलाओं को अपने पति के आक्रोश के शिकार से बचाया और तीन तलाक़ से छुटकारा प्रदान किया लेकिन वक़्फ़ संशोधन बिल की तर्ज़ पर हिंदू मंदिरों की बात करें, तो कुछ राज्यों में हिंदू रिलीजियस एंड चैरिटेबल एंडोमेंट्स (HRCE) डिपार्टमेंट्स काम करते हैं, जैसे तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और केरल। ये डिपार्टमेंट्स मंदिरों की आमदनी का एक हिस्सा (4-12% तक, राज्य के नियमों के मुताबिक) प्रशासनिक खर्चों के लिए लेते हैं। मिसाल के तौर पर , तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम्स जैसा बड़ा मंदिर हर साल 1,400-1,600 करोड़ रुपये कमाता है, और इसका एक हिस्सा सरकार के पास जाता है। लेकिन यह व्यवस्था हर राज्य में नहीं है, और कई मंदिर अभी भी प्राइवेट ट्रस्ट्स या सामुदायिक समितियों द्वारा चलाए जाते हैं।
मंदिरों की आमदनी से हो दलितों, पिछड़ों और निर्धन हिंदुओं की सहायता
मुस्लिम वक़्फ़ संपत्तियों की आय का लाभ वाकिफ की मंशा के अनुसार जिस तरह धार्मिक और निर्धन लोगों की सहायता के लिए होता है क्या ठीक उसी तरह मंदिरों की आमदनी से दलितों,पिछड़ों और निर्धन हिंदुओं की सहायता नहीं की जा सकती ? ये एक प्रश्न है जिसपर सरकार को विचार करना चाहिए।
उत्तर प्रदेश में मंदिरों, शमशान घाटों और अन्य धार्मिक स्थलों के प्रबंधन के लिए हिंदुओं के पास कोई एकीकृत या केंद्रीकृत ट्रस्ट व्यवस्था नहीं है, जैसी कि मुसलमानों के लिए वक्फ बोर्ड के रूप में मौजूद है। वक्फ बोर्ड एक सरकारी मान्यता प्राप्त संस्था है, जो मुस्लिम समुदाय के धार्मिक और सामाजिक संपत्तियों, जैसे मस्जिदों, कब्रिस्तानों और मदरसों, के प्रबंधन और संरक्षण के लिए काम करती है। यह व्यवस्था वक्फ अधिनियम, 1995 के तहत संचालित होती है।
हिंदुओं के मामले में, मंदिरों और शमशान घाटों का प्रबंधन ज्यादातर निजी ट्रस्टों, स्थानीय समितियों या व्यक्तिगत स्तर पर होता है।
ये अलग बात है कि भारत में मंदिरों की संख्या बहुत ज्यादा है (लगभग 20 लाख से ऊपर), और ये विभिन्न संप्रदायों और परंपराओं से जुड़े हैं। एक ही बोर्ड के तहत इन सब को लाना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि हर मंदिर की अपनी विशिष्टता और प्रबंधन होता है। दूसरा, HRCE जैसे डिपार्टमेंट्स पहले से मौजूद हैं, लेकिन इन पर अक्सर यह आरोप लगता है कि ये मंदिरों की आमदनी का गलत इस्तेमाल करते हैं या ब्यूरोक्रेसी से भरे हुए हैं।
नये बोर्ड बनने से आमदनी को परखा और उसका सही इस्तेमाल किया जा सकता है
इससे मंदिरों की कमाई का हिसाब रखा जा सकेगा और उसका इस्तेमाल मंदिरों के सुधार, पुरोहितों के कल्याण, या हिंदू समाज के लिए शिक्षा और सेहत जैसे कामों में भी किया जा सकेगा।
चोरी और दुरुपयोग पर रोक
एक मजबूत निगरानी व्यवस्था से मंदिरों के जेवर, दान और संपत्ति की चोरी को रोका जा सकता है।
इस मामले पर क्या कहता है सुप्रीम कोर्ट ?
सुप्रीम कोर्ट ने भी कई मामलों में यह कहा है कि मंदिरों का प्रबंधन उनके धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के तहत समुदाय को मिलना चाहिए, जैसा कि आर्टिकल 26 में दिया गया है।लेकिन ये स्वतंत्रता मुस्लिम वक़्फ़ बोर्ड से छीन ली गई है। बहरहाल पारदर्शिता लाने और जवाबदेही को मद्देनजर रखते हुए एक हिंदू टेम्पल बोर्ड बनाना चाहिए जिससे मंदिरों की आमदनी का सही इस्तेमाल हो, चोरी रुके और समुदाय को अपने धार्मिक स्थलों पर पूरा हक मिले। लेकिन इसके लिए एक विस्तृत कानूनी और सामाजिक सहमति बनानी होगी, ताकि यह व्यवस्था न सिर्फ कागज पर रहे, बल्कि अमल में भी लाई जा सके।
हिंदू ट्रस्ट की स्थापना के बाद उसमें भी महिलाओं वा अन्य धर्मों की भागीदारी जैसे मुस्लिम, दलित, बोहरे, सिख और बौद्ध धर्म के लोगों को भी शामिल किया जाना चाहिए। वरना ये कहना गलत ना होगा , मुस्लिम वक्फ बोर्ड में कमियां ढूंढ कर उसको दुरुस्त करने के नाम पर उसमें दूसरे को अधिकार देकर मुसलमान के साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है।
इस क़ानून के पूर्ण रूप से पास होने के बाद हिंदू ट्रस्ट की भी स्थापना करके सराहनीय कदम उठाना चाहिए। जैसे अन्य कई प्रदेशों में मंदिरों से होने वाली आय का कुछ अंशदान सरकार लेकर निर्धनों की सहायता करती है।