लखनऊ, 29 जून । खाड़ी क्षेत्र में एक अभूतपूर्व साइबर विवाद ने वैश्विक स्तर पर हड़कंप मचा दिया है। ईरान ने इजराइल पर गंभीर आरोप लगाया है कि उसने भारतीय इंजीनियरों द्वारा विकसित सॉफ्टवेयर में जानबूझकर बनाए गए “बैकडोर्स” के जरिए संवेदनशील डेटा चुराया है। यह सॉफ्टवेयर खाड़ी देशों में हवाई अड्डों, पासपोर्ट कार्यालयों, नागरिक डेटा प्रबंधन और संभवतः रक्षा प्रणालियों में व्यापक रूप से उपयोग होता है। इस खुलासे ने क्षेत्रीय सुरक्षा को खतरे में डाल दिया है और भारत की तकनीकी विश्वसनीयता तथा खाड़ी देशों के साथ उसके व्यापारिक संबंधों पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
ईरान के आरोपों का विवरण
ईरानी अधिकारियों का दावा है कि भारतीय टेक कंपनियों द्वारा बनाए गए सॉफ्टवेयर, जो खाड़ी देशों में बुनियादी ढांचे का हिस्सा है, में छिपे कोड्स (बैकडोर्स) थे। इन बैकडोर्स के जरिए इजराइल ने कथित तौर पर गोपनीय डेटा, जैसे हवाई अड्डों की सुरक्षा प्रणालियों, नागरिक डेटाबेस और संभवतः सैन्य संचार तक पहुंच हासिल की। ईरान का कहना है कि इस साइबर जासूसी ने उसके महत्वपूर्ण डेटा को निशाना बनाया, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा को गंभीर खतरा पैदा हुआ। यह सॉफ्टवेयर सऊदी अरब, कतर, संयुक्त अरब अमीरात और अन्य खाड़ी देशों में भी उपयोग में है, जिसके कारण क्षेत्रीय स्तर पर सुरक्षा चिंताएं बढ़ गई हैं।
साइबर सुरक्षा पर सवाल
साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि यदि ईरान के आरोप सही हैं, तो यह सॉफ्टवेयर आपूर्ति श्रृंखला की सुरक्षा पर वैश्विक स्तर पर सवाल उठाएगा। भारतीय सॉफ्टवेयर का खाड़ी देशों में व्यापक उपयोग होने के कारण यह मामला क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गंभीर चिंता का विषय बन गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की कमजोरियां जानबूझकर डाली गई हों या अनजाने में हुई हों, इनकी जांच के लिए गहन तकनीकी विश्लेषण जरूरी है।
क्या पड़ सकता है भारत पर प्रभाव ?
भारत के लिए यह विवाद एक गंभीर आर्थिक और कूटनीतिक चुनौती है। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के अनुसार, भारत का खाड़ी देशों के साथ लगभग 41.7 अरब डॉलर (3.6 लाख करोड़ रुपये) का व्यापार खतरे में पड़ सकता है। भारतीय सॉफ्टवेयर उद्योग, जो वैश्विक स्तर पर अपनी विश्वसनीयता के लिए जाना जाता है, इस विवाद से प्रभावित हो सकता है। खाड़ी देश अब अपने सिस्टम में भारतीय सॉफ्टवेयर की सुरक्षा की समीक्षा कर रहे हैं, जिससे भारत के तकनीकी निर्यात पर असर पड़ सकता है। खाड़ी देश में सऊदी अरब, कतर और यूएई जैसे देश अपने साइबर इंफ्रास्ट्रक्चर की जांच कर रहे हैं। भारतीय सॉफ्टवेयर पर निर्भरता के कारण ये देश अब वैकल्पिक समाधान तलाश सकते हैं।
इजराइल की इन आरोपों पर आधिकारिक तौर पर नहीं आई कोई प्रतिक्रिया
भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस साइबर विवाद पर अभी तक कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है। ईरान के इन आरोपों को भारत को अत्यंत गंभीरता से लेना चाहिए। इतिहास गवाह है कि ईरान के दावे अक्सर सटीक रहे हैं, और इस मामले को हल्के में लेना भारत के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकता है। यह संभव है कि इजराइल, जो भारत का मित्र देश है, इस दोस्ती का फायदा उठाकर साइबर जासूसी कर रहा हो। जैसा कि कहा जाता है, धोखा अपनों से ही मिलता है, क्योंकि गैरों (जैसे पाकिस्तान) से भारत हमेशा सतर्क रहता है। इजराइल के साथ दोस्ती के कारण भारत शायद लापरवाह रहा हो, और यह आरोप इसकी पुष्टि करता है। भारत को इस मामले की तत्काल और गहन जांच शुरू करनी चाहिए। साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों और तकनीकी विशेषज्ञों की एक स्वतंत्र टीम गठित कर इस सॉफ्टवेयर में बैकडोर्स की मौजूदगी की जांच की जानी चाहिए। यदि ये आरोप सही साबित हुए, तो यह भारत की तकनीकी विश्वसनीयता और खाड़ी देशों के साथ संबंधों के लिए गंभीर खतरा होगा।
यह साइबर विवाद वैश्विक साइबर सुरक्षा और सॉफ्टवेयर आपूर्ति श्रृंखला की कमजोरियों को उजागर करता है। भारत के लिए यह एक कूटनीतिक और आर्थिक चुनौती है, क्योंकि उसे अपनी तकनीकी विश्वसनीयता और खाड़ी देशों के साथ संबंधों को बचाने की जरूरत है। यह मामला खाड़ी क्षेत्र में साइबर सुरक्षा नीतियों को फिर से परिभाषित कर सकता है। इस मामले में जांच और सभी पक्षों की प्रतिक्रिया का इंतजार है।