ज़की भारतीय
लखनऊ, 27 जून। पुराने लखनऊ की घनी आबादी में स्थित बुनियाद बाग एक ऐसा मैदान है, जो वर्षों से खाली पड़ा हुआ है। इस मैदान की लगभग 1 लाख स्क्वायर फीट से अधिक भूमि पर अब तक न जाने कितने ही भू-माफियाओं और प्रॉपर्टी डीलरों ने नीयत खराब की, कब्जे किए, एग्रीमेंट किए, और प्लॉटिंग के प्रयास किए। लेकिन, न्यायालयों द्वारा एक-दूसरे के विरुद्ध दिए गए आदेशों ने किसी को स्थायी रूप से ठहरने नहीं दिया। यह मामला अब एक बार फिर सुर्खियों में तब आया, जब इस बेशकीमती भूमि पर कब्जा होने लगा। अचानक हो रहे कब्जे से क्षेत्रवासी हैरान थे, लेकिन बाद में पता चला कि किसी सोसाइटी ने निचली अदालत से आदेश पारित करवाकर कब्जा किया है। सूत्रों के अनुसार, अदालत ने जमीन पर कब्जा किए जाने का कोई आदेश नहीं दिया था, बल्कि केवल सफाई और रखरखाव में दखल न देने का आदेश पारित किया था।
जानिए क्या है बुनियाद बाग का इतिहास ?
इस जमीन के पुराने दावेदारों में बश्शु का नाम भी लिया जाता है। कहा जाता है कि बश्शु ने भूमि पर खेती करने वाले किसानों को पैसे देकर एक अनुबंध किया और अपनी सोसाइटी, लोक सेवा सहकारी समिति, में भूमि को शामिल कर लिया। लेकिन, इसी बीच हसन इमाम नामक एक अधिवक्ता ने भी उन्हीं किसानों में से कुछ से एग्रीमेंट कर लिया और स्कूल के नाम से लीज़ करवा ली। इस बात पर बश्शु ने हसन इमाम के एग्रीमेंट को अदालत में चुनौती दी, और कहा कि जब हम किसानों से एग्रीमेंट कर चुके हैं, तो इन्हें किसने अधिकार दिया कि यह भी उन्हीं किसानों से एग्रीमेंट करके स्वामी बन जाएँ।
इस मुद्दे पर विवाद विभिन्न अदालतों में 20 से 25 वर्षों तक चलता रहा। फिर, बश्शु ने मुकदमों से परेशान होकर मुन्ने और नब्बन नामक दो भाइयों से समिति का एग्रीमेंट कर दिया, यानी समिति को मुन्ने और नब्बन के हाथों बेच दिया। क्योंकि बश्शु लखनऊ के रहने वाले थे, लेकिन महाराष्ट्र के मुंबई में रहते थे, इसलिए वे मुकदमे की पैरवी नहीं कर सके। उनके बाद मुन्ने और नब्बन ने भी कई लोगों से एग्रीमेंट किए। लेकिन, इसी बीच जोसेफ शॉट के वारिस इस भूमि पर स्वामित्व को लेकर कूद पड़े। उनका कहना था कि 1862 में यह भूमि उनके पूर्वज जोसेफ शॉट के नाम से दर्ज थी, और यह बात सत्य भी है कि 1862 के रिकॉर्ड में जोसेफ शॉट का नाम स्पष्ट रूप से अभिलेखों में मिलता है। जोसेफ शॉट के वारिसों ने भी अलग-अलग प्रॉपर्टी डीलरों से जमकर एग्रीमेंट किए, और जिन्होंने भूमि के एग्रीमेंट किए, वे भी विवाद में फंस गए।
कैसे हुआ बुनियादबाग की भूमि पर कब्ज़ा और क्यों की शिया वक़्फ़ बोर्ड ने कार्रवाई?
मौजूदा खरीदार ने सिविल कोर्ट में एक वाद दायर किया, जिसमें उसने तमाम मुकदमों को छिपाते हुए एक स्थगनादेश प्राप्त किया, जिसमें इस पक्ष ने माँग की थी कि उनके काम में कोई हस्तक्षेप न करे। सिविल कोर्ट द्वारा इस मामले में स्थगनादेश दे दिया गया, और मौजूदा पक्ष ने अस्थायी कब्जा कर लिया।
इस संबंध में जब खबर प्रकाशित हुईं और बुनियाद बाग को वक्फ संपत्ति बताया गया, तो शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड हरकत में आया। बोर्ड के सीईओ ने एक शिकायती पत्र का संदर्भ गृहण करते हुए एक पत्र जारी कर इस बात को स्वीकार किया कि शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के रजिस्टर 37 में बुनियाद बाग वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज है।
1862 में जोसेफ शॉट इस भूमि के स्वामी थे, लेकिन 1917 में, 55 वर्ष बाद, इस जमीन को वक्फ घोषित कर दिया गया। यह वक्फ खुद जोसेफ शॉट के वंशज शहजादा क़मर कदर बहादुर ने किया था, जो शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अभिलेखों में दर्ज है।
इस मामले ने नया मोड़ तब लिया, जब हबीब हैदर ने शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड को लिखित शिकायत की, जिसमें दावा किया कि यह संपत्ति शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड की है और इसका उल्लेख रजिस्टर 37 में दर्ज है। शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने इस शिकायत के बाद एक पत्र जारी किया, जो जिलाधिकारी और अन्य अधिकारियों को भेजा गया। पत्र में बोर्ड ने स्पष्ट किया कि यह जमीन उनकी संपत्ति है, लेकिन कब्जा करने वालों का दावा है कि यह वक्फ की संपत्ति नहीं, बल्कि वक्फ की भूमि टापे वाली गली में कहीं और स्थित है।
बुनियाद बाग, जिसे बोर्ड ने वक्फ माना है, वर्तमान में इस जमीन की कीमत 6 से 7 हजार रुपये प्रति स्क्वायर फीट आँकी जा रही है, जो इसे बेहद मूल्यवान बनाती है। इस जमीन पर कब्रिस्तान या इमामबाड़ा बनाने की मांग भी चर्चा में है, क्योंकि लखनऊ में शिया संप्रदाय के लिए कब्रिस्तान की जगह तेजी से कम हो रही है। इमामबाड़ा गुफरान माब, कर्बला अब्बास बाग, कर्बला तालकटोरा, कर्बला मलका जहां, और कर्बला इमदाद हुसैन खान जैसे स्थानों में मय्यत दफनाने की जगह नहीं बची है। लोग अब 3 से 5 लाख रुपये तक खर्च करने को मजबूर हैं। यदि इस जमीन पर वक्फ बोर्ड की दावेदारी मज़बूत होती है और मुकदमे के बाद इसका स्वामित्व साबित हो जाता है, तो इसे कब्रिस्तान, इमामबाड़ा, या मस्जिद के लिए विकसित किया जा सकता है। इससे शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड की आय बढ़ेगी और शिया समुदाय को दफनाने की सुविधा मिलेगी, जो मौजूदा समय में एक गंभीर आवश्यकता बन चुकी है।
इस जमीन का विकास शिया समुदाय के लिए न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण हो सकता है। लखनऊ में बढ़ती आबादी और शहरीकरण के कारण कब्रिस्तान की कमी एक बड़ी चुनौती बन गई है। इस संपत्ति का उपयोग करके न केवल समुदाय की धार्मिक जरूरतें पूरी की जा सकती हैं, बल्कि वक्फ बोर्ड की आर्थिक स्थिति भी मजबूत होगी, जो अन्य सामाजिक कार्यों के लिए संसाधन उपलब्ध करा सकती है।